खत्म हुए कच्चे तेल की कीमतों के अच्छे दिन, सरकार को डर कहीं रुला न दे डेली प्राइसिंग फार्मूला

नई दिल्ली। देश में ‘मंहगाई’ कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से आने के संकेत मिलने के बाद केन्द्र सरकार ने ग्राहकों को कुछ राहत देने के काम किया है. ग्लोबल क्रूड ऑयल मार्केट में तेजी से बढ़ते कच्चे तेल की कीमत और हाल ही में मोदी सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल की कीमतों को प्रति दिन के आधार पर निर्धारित करने का फैसला आम आदमी की जेब पर भारी पड़ना शुरू हो चुका है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम आदमी को राहत पहुंचाने के लिए पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले बेसिक एक्साइज ड्यूटी में 2 फीसदी की कटौती करने का फैसला सुनाया. खास बात यह है कि 2014 में मोदी सरकार के गठन के समय तक कच्चे तेल की कीमतें अपने न्यूनतम स्तर पर थी. इसके चलते सरकार के राजस्व में बड़ी बचत हो रही थी. वहीं मोदी सरकार ने अभीतक के अपने कार्यकाल में 1 दर्जन बार एक्साइज ड्यूटी में इजाफा किया है.

गौरतलब है कि 2014 में प्रति लीटर पेट्रोल पर 9.48 रुपये और डीजल पर 3.56 रुपये लगती थी. मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान इसमें 226 फीसदी और 486 फीसदी क्रमश: का इजाफा करते हुए इसे 21.48 रुपये और 17.33 रुपये प्रति लीटर कर दिया था.

बीते एक महीने के दौरान ग्लोबल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतों में बढ़त देखने को मिल रही है. वहीं वैश्विक अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि कच्चे तेल की कीमतों में अब लगातार बढ़त देखने को मिल सकती है. लिहाजा मोदी सरकार के लिए पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमत से उसके राजस्व पर दोहरी मार पड़ने लगी थी.

लिहाजा महंगाई पर लगाम लगाने के लिए केन्द्र सरकार ने राहत पहुंचाने के लिए अपने टैक्स में कटौती की है. वहीं पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाने के फैसले से केन्द्र सरकार के खजाने को चालू वित्त वर्ष में 13,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. वहीं अगले वित्त वर्ष में उसे कुल 26,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा.

डेली प्राइसिंग व्यवस्था से पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करने के फैसले के बाद से लगातार पेट्रोल और डीजल की कीमत में इजाफा होने लगा था. इसके चलते दो महीनों में पेट्रोल और डीजल की कीमत दिल्ली में 2 अक्टूबर तक बढ़कर 70.83 रुपये और 59.07 क्रमश: पहुंच चुकी है.

अब मोदी सरकार को साफ हो चुका है कि बीते तीन साल के दौरान क्रूड ऑयल की कीमतों से चल रहे उसके अच्छे दिन खत्म हो चुके हैं. वहीं उसके सामने चुनौती वैश्विक स्तर पर बढ़ते कच्चे तेल की कीमत के साथ-साथ देश में बढ़ती महंगाई है.

 

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