गुजरात दंगों की झूठी कहानी की रचैता तीस्ता सीतलवाड़ को सर्वोच्च न्यायलय ने दिया झटका, कहा अकाउंट पर लगे प्रतिबंद नहीं हटेंगे

भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को बड़ा झटका दिया है। सर्वोच्च न्यायलय ने तीस्ता सीतलवाड़, उनके पति और एनजीओ के फ्रीज किए गए बैंक खातों को खोलने की याचिका को खारिज कर दिया।सर्वोच्च न्यायलय को तय करना था कि बैंक खाते डीफ्रीज होंगे या नहीं।  गुजरात के दंगों मे गुलबर्ग सोसाइटी में पीड़ितों के लिए मेमोरियल बनाने के लिए चंदे में हेरफेर की आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके ट्रस्ट को फ्रीज करने के मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने यह याचिका खारिज की है। साल 2015 में अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने तीस्ता, उनके पति जावेद आनंद और उनके एनजीओ के 6 अकाउंट फ्रीज किए थे।

2002 के गुजरात दंगॊं के समय गुलबर्ग सॊसाईटी के पीडीतों के मदद के लिए मेमोरियल बनाने के लिए तीस्ता ने चंदे इकठ्ठा किए थे। लेकिन पैसों की हेराफेरी चलते उसकी NGO प्रतिबंद लगा था। 2015 में अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने तीस्ता, उनके पति जावेद आनंद और उनके एनजीओ के 6 अकाउंट फ्रीज किए थे। अपने अकाउंट के ऊपर लगे प्रतिबंद को हटाने की मांग करते हुए तीस्ता ने उच्छ न्यायालय और सर्वोच्छ न्यायलय दोनों का दरवाज़ा खट खटाया है। लेकिन दोनों जगह से उसे ना ही सुनने को मिला है।

अक्टूबर 2015 में गुजरात के उच्छ न्यायालय ने भी तीस्ता के बैंक अकाउंट खोलने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया था। तीस्ता सीतलवाड़ ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को सर्वोच्छ न्यायलय में चुनौती दी थी। तीस्ता का कहना था कि 2002 दंगों के पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए न्याय मांगने की वजह से ही उन्हें, उनके पति और एनजीओ को निशाना बनाया जा रहा है।

विदेशों से आए धन के दुरुपयोग से लेकर धोखाधड़ी के आरोपों के कारण गुजरात पुलिस और सीबीआई जाँच कर रही है। गिरफ़्तारी से बचने के लिए ये दोनों अदालत का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं और फ़िलहाल उन्हें राहत भी मिल गई है। तीस्ता सीतलवाड़ के ख़िलाफ़ आरोपों की शुरुआत लगभग दो साल पहले एक ख़त से हुई।

साल 2013 में अहमदाबाद स्थित गुलबर्ग सोसाइटी के 12 निवासियों ने पुलिस आयुक्त को ख़त लिखकर तीस्ता के ख़िलाफ़ जांच की अपील की थी। गुलबर्ग सोसाइटी के एक निवासी फिरोज खान पठान ने सीतलवाड़ एवं अन्य के खिलाफ शिकायत दर्ज कराया था। 2002 में गुलबर्ग सोसाइटी में हुए दंगों में 69 लोग मारे गए थे जिनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री भी थे। गुलबर्ग सोसाइटी में रहने वाले लोगों का आरोप है कि तीस्ता ने गुलबर्ग सोसाइटी में एक म्यूज़ियम बनाने के लिए विदेशों से लगभग 1.5 करोड़ रुपए जमा किए लेकिन पैसे उन तक कभी नहीं पहुंचे। जनवरी 2014 में तीस्ता ,उनके पति जावेद आनंद, एहसान जाफ़री के पुत्र तनवीर जाफ़री और दो अन्य के ख़िलाफ़ अहमदाबाद क्राइम ब्रांच में एफ़आईआर दर्ज की गई| जांच के बाद पुलिस ने दावा किया कि तीस्ता और जावेद ने उन पैसों से अपने क्रेडिट कार्ड के बिल चुकाए थे। पुलिस के अनुसार क्रेडिट कार्ड से उन्होंने गहने और शराब ख़रीदी थी।

अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के प्रमुख ए के शर्मा 2015 में से सीबीआई के संयुक्त निदेशक हैं। सीबीआई ने तीस्ता और उनके पती के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर उनके ज़रिए चलाए जा रहे दो एनजीओ ‘सबरंग ट्रस्ट’ और ‘सिटीजन्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस’ के दफ़्तरों पर छापे मारे हैं। सीबीआई का केस भी उसी आरोप पर आधारित है कि उन्होंने म्यूज़ियम बनाने के लिए पैसे लिए और उनका ग़लत इस्तेमाल किया। आरोपों के चलते गुजरात सरकार ने केंद्रीय गृहमंत्री को एक ख़त लिखकर तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद के एनजीओ की जांच करने की अपील की थी।

गुजरात सरकार का आरोप है कि अमरीका स्थित फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन से तीस्ता ने अपने एनजीओ के लिए जो पैसे लिए उनका इस्तेमाल उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने और विदेशों में भारत की छवि ख़राब करने के लिए किया। गुजरात सरकार के ख़त के केवल एक सप्ताह बाद गृह मंत्रालय ने फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन को निगरानी सूची में डाल दिया और इस केस को सीबीआई के हवाले कर दिया गया। सीबीआई ने जुलाई में तीस्ता, जावेद आनंद और उनके एक सहयोगी ग़ुलाम मोहम्मद के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज किया और उनके दफ़्तर और घर की तलाशी भी ली थी। दस्तावेज़ों से यह जानकारी प्राप्त हुई की करोड़ों के घॊटाले किए गये हैं। इसी के चलते तीस्ता और उनके पती के अकाउंट को फ्रीज़ किया गया था।

ये वही तीस्ता है जिसने गोध्रा कांड की सच्चाई को छुपाकर, गुजरात दंगों की रंग बिरंगी, झूठी कहानी रच कर जनता को गुमराह किया था। जब भी मौका मिला उसने मोदी जी के खिलाफ ज़हर उगला है। गुजरात दंगों का फायदा अपने निजी स्वार्थ के लिए करने का आरॊप तीस्ता पर है। उसने गुजरात दंगॊ को लेकर जिस प्रकार के झूठ फैलाए थे वे सारे SIT के जांच में पकड़े गये थे और उसे न्यायालय से फटकार भी मिला था।

1) कौसर बानो नामक गर्भवती महिला का कोई गैंगरेप नहीं हुआ, न ही उसका बच्चा पेट फ़ाड़कर निकाले जाने की कोई घटना हुई।
2) नरोडा पाटिया के कुँए में कई लाशों को दफ़न करने की घटना भी झूठी साबित हुई।
3) ज़रीना मंसूरी नामक महिला जिसे नरोडा पाटिया में जिंदा जलाने की बात कही गई थी, वह कुछ महीने पहले ही TB से मर चुकी थी।
4) ज़ाहिरा शेख ने भी अपने बयान में कहा कि तीस्ता ने उससे कोरे कागज़ पर अंगूठा लगवा लिया था।
5) तीस्ता के मुख्य गवाह रईस खान ने भी कहा कि तीस्ता ने उसे गवाही के लिये धमकाकर रखा था।
6) सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि सारे एफ़िडेविट एक ही कम्प्यूटर से निकाले गये हैं और उनमें सिर्फ़ नाम बदल दिया गया है।
7) विशेष जाँच दल ने पाया कि तीस्ता सीतलवाड़ को धमकाया, गलत शपथ-पत्र दाखिल किये, कोर्ट में झूठ बोला।

तीस्ता ने मोदी जी और भाजपा सरकार को बदनाम करने में कोई कमी नहीं रखी । लेकिन झूठ एक न एक दिन पकड़ा ही जाता है और सच एक दिन झूठ की छाती चीर कर बाहर आता है। तीस्ता की असलीयत और गुजरात दंगों के इर्द गिर्द रची हुई उसकी मनगडंत कहानी का उजागर तो वर्षों पूर्व हो चुका है। अब तीस्ता को सर्वोच्छ न्यायलय से भी राहत नहीं मिली यह देश की जनता के लिए राहत की बात है।

 

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