गुजरात में राहुल की ‘यूथ पॉलिटिक्स’, मोदी से टक्कर लेने में कितनी मिलेगी मदद?

नई दिल्ली। गुजरात विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. बीजेपी सत्ता को बचाने की जद्दोजहद में लगी है तो कांग्रेस उसी के तीरों से उसे घेरकर बनवास खत्म करने में. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद गुजरात में मोर्चा संभाला है. पहले सीधे मोदी पर वार और अब युवा शक्ति के सहारे गुजरात की सियासी जंग को फतह करने में जुट गए हैं. चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी ने गुजरात के युवा त्रिमूर्ति को अपने साथ लाकर राज्य के सियासी माहौल को कांग्रेसमय करने की कवायद की है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल यूथ पॉलिटिक्स के जरिए कांग्रेस के 22 साल के सत्ता के वनवास को तोड़ पाएंगे?

क्या है युवा त्रिमूर्ति की ताकत?

गुजरात में 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम उम्र की है. यही वजह है कि कांग्रेस गुजरात में युवा शक्ति के नाव पर सवार होना चाहती है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी लगातार युवाओं से जुड़े मुद्दों को उठा रहे हैं. राहुल ने अमेरिका से लेकर गुजरात यात्रा के दौरान बेरोजगारी के मुद्दे को उठाकर युवाओं को साधने की कोशिश की है. कांग्रेस ने गुजरात में युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी ने पिछले दिनों 10वीं पास बेरोजगार को 3000, स्नातक को 3500 और पीजी 4000 को देने की बात कही थी. गुजरात में करीब 30 हजार युवा बेरोजगार हैं.

गुजरात में युवाओं से जुड़े मुद्दों के सहारे अपनी पहचान बनाने वाले युवा नेता हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ इन दिनों मोर्चा खोले हुए हैं. अल्पेश ठाकोर तो बकायदा कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं, वहीं हार्दिक और जिग्नेश मेवानी कांग्रेस के प्रति नरम रुख अख्तियार किए हुए हैं.

अल्पेश की सियासी ताकत

गुजरात में 54 फीसदी ओबीसी यानी अति पिछड़े वर्ग की आबादी है और सूबे की करीब 70 विधानसभासीटें हैं. इनमें ज्यादातर सीटें देहात क्षेत्र की है. मध्य गुजरात में ओबीसी मतों का बड़ा प्रभाव है. गुजरात में ओबीसी चेहरा के तौर पर पहचान बनाने वाले ओबीसी चेहरा अल्पेश ठाकोर कांग्रेस के संग हो गए है. अल्पेश ठाकोर गुजरात क्षत्रिय-ठाकुर सेना के अध्यक्ष के साथ-साथ ओबीसी एकता मंच के संयोजक भी है. अल्पेश ने नशा मुक्ति अभियान के साथ गुजरात में बड़ी संख्या में युवकों के बेरोजगार होने के मुद्दे को भी साथ ले लिया. अल्पेश ने साथ ही ठाकोर सेना का दायरा बढ़ाते हुए पूरे ओबीसी समाज को भी इसमें जोड़ दिया.

गुजरात में ओबीसी समाज की 146 जातियां हैं. अल्पेश ने गुजरात के करीब 80 देहात की विधानसभा सीटों पर बूथ स्तर पर प्रबंधन का काम किया है. कांग्रेस गुजरात में एक लंबे समय तक ओबीसी मतों के सहारे सत्ता पर काबिज रही है. राहुल ने गुजरात की सियासी जंग को जीतने के लिए अल्पेश को अपने साथ मिलाकर बड़ी कामयाबी हासिल की है.

गुजरात में पाटीदार किंगमेकर

गुजरात के सियासत में किंगमेकर माने जाने वाला पाटीदार समुदाय की आबादी करीब 18 फीसदी है, जो राज्य की करीब 50 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं. मौजूदा सरकार में करीब 40 विधायक और 7 मंत्री पटेल समुदाय से हैं. पाटीदार समाज बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है. 2014 में नरेंद्र मोदी के गुजरात के सीएम से देश का पीएम बन जाने के बाद से पाटीदारों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई है. आरक्षण की मांग को लेकर पटेल समुदाय फिलहाल बीजेपी से नाराज माने जा रहे हैं.

कांग्रेस के प्रति हार्दिक का सॉफ्ट रुख

पटेल आरक्षण आंदोलन के जरिए हार्दिक पटेल को प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में नई पहचान मिली. हार्दिक पटेल ने आंदोलन के जरिए गुजरात की तस्वीर को बदल कर रख दिया. हार्दिक पटेल ने  25 अगस्त,2015 को अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड में रैली की. इस रैली में 5 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ हार्दिक के फऱमान पर सड़कों पर उतर आई थी. पिछले दिनों राहुल गांधी के सौराष्ट्र यात्रा के दौरान स्वागत किया था. हार्दिक फिलहाल कांग्रेस ज्वाइन करने से हार्दिक साफ मना रहे हैं, लेकिन बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस को बेहतर बता रहे हैं.

दलित चेहरा जिग्नेश के दिल में कांग्रेस

गुजरात में दलित समुदाय महज 7 फीसदी है. दलित गुजरात में भले ही सियासी तौर पर कम हो, लेकिन उसके जुड़ने से जीत की राह आसान हो जाती है. गुजरात में युवा दलित नेता के तौर पर पहचान बनाने वाले जिग्नेश मेवानी का दिल कांग्रेस के लिए नरम और बीजेपी के लिए कड़ा रुख अख्तियार किए हुए है.

ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के खिलाफ हुए आंदोलन जिग्नेश ने नेतृत्व किया था. जिग्नेश ने वो काम कर दिखाया, जिससे दलित समाज सदियों से मुक्त होना चाहता था. ‘आजादी कूच आंदोलन’ में जिग्नेश ने 20 हजार दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई. जिग्नेश की अगुवाई वाले दलित आंदोलन ने बहुत ही शांति के साथ सत्ता को करारा झटका दिया. इस आंदोलन को हर वर्ग का समर्थन मिला. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जिग्नेश को कांग्रेस में आने का न्यौता दिया है.

गुजरात का सियासी गणित

गुजरात में कुल 182 विधानसभा सीटें हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल की थी. राज्य की 182 सीटों में से बीजेपी ने 115, कांग्रेस 61 और अन्य को 4 सीटें मिली थी.अगस्त में हुए राज्यसभा चुनाव में कई कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. लेकिन बदले सियासी माहौल में अल्पेश, हार्दिक और जिग्नेश का दावा है कि तीनों मिलकर गुजरात की 120 सीटों पर किसी भी पार्टी को हराने की क्षमता रखते हैं. वहीं कांग्रेस गुजरात में मिशन 125+ का टारगेट रखा है.

गुजारत के 2012 विधानसभा चुनाव में मिले वोटों पर नजर डालें तो बीजेपी को 47 फीसदी और कांग्रेस को 38 फीसदी वोट मिले थे. 2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 49 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2012 में उसे 2 फीसदी कम वोट मिले थे और 2 सीटों का भी नुकसान उठाना पड़ा था. जबकि कांग्रेस के वोट फीसदी में किसी तरह की कोई बढ़ोतरी नहीं हुई. कांग्रेस महज 9 फीसदी वोटों से बीजेपी से पीछे रही. ऐसे में अलग अलग समुदाय के  तीनों युवा  अगर मिलकर कांग्रेस के लिए 5 फीसदी मतों की बढ़ोतरी करते हैं, तो बीजेपी के लिए सत्ता को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा.

 

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