चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंसे राहुल गांधी क्या मोदी विरोधी मोर्चे के नेता बन पाएंगे ?

नई दिल्ली। सियासी संकट के सबसे बड़े दौर से गुजर रही कांग्रेस का तीन दिनों का अधिवेशन दिल्ली में चल रहा है. जिसमें खास बात ये है कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस का पहला अधिवेशन हो रहा है. इसमें पूरी पार्टी बदली हुई नजर आई. नया नारा दिया गया है. वक्त है बदलाव का. आज बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सिर्फ 4 मिनट का भाषण दिया. ये बताते हुए कि समापन सत्र में पार्टी के लिए नई दिशा वाला भाषण दूंगा. राहुल गांधी कहते हैं कि देश को बांटा जा रहा है, गुस्सा फैलाया जा रहा है. कांग्रेस का हाथ लोगों को जोड़ेगा. लेकिन सवाल ये कि जिस पार्टी के पास देश में सिर्फ चार राज्य बचे हैं, क्या वो मोदी लहर के खिलाफ कोई बड़ा बदलाव कर पाएगी? कांग्रेस को अपने दम पर अकेले लड़ाकर राहुल क्या मोदी को रोक पाएंगे या फिर मोदी विरोधी मोर्चे के सर्वमान्य नेता राहुल गांधी बन पाएंगे? चुनौतियों के चक्रव्यूह में राहुल गांधी इस वक्त दिख रहे हैं, लेकिन क्या वह इसे भेद पाएंगे ?

देश की सबसे पुरानी पार्टी, सबसे बड़ी राजनीतिक संकट काल से गुजर रही है. तब राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार हो रहे पार्टी के अधिवेशन में बहुत कुछ बदला हुआ नजर आया. कांग्रेस के अब तक के अधिवेशन में जहां नेता परंपरातगत रूप से मंच पर गद्दों के ऊपर मसनद लगाए बैठे दिखते थे. लेकिन राहुल राज वाली कांग्रेस के पहले अधिवेशन में तेवर, कलेवर बदला हुआ नजर आया. मंच पर किसी की तस्वीर नहीं सिर्फ पार्टी का निशान और सारे नेता मंच से नीचे बैठे दिखे.

शायद ये जताने की कोशिश की अब कमांडर राहुल ही हैं और आजादी से पहले बनी कांग्रेस नये नारे के साथ आजादी के आंदोलन से बड़ी चुनौती को जीतने राहुल की अगुवाई में उतर रही है. राहुल गांधी ने कहा कि जाति, धर्म के नाम पर देश में नफरत, गुस्सा फैलाया जा रहा है. देश को बांटा जा रहा है, देश हर धर्म, जाति का है, कांग्रेस हर एक को साथ रखने का काम करेगी. दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में देशभर से आए कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा, ”देश को सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही रास्ता दिखा सकती है. कांग्रेस पार्टी प्यार और भाईचारे का प्रयोग करती है जबकि विपक्ष क्रोध का इस्तेमाल करती है. कांग्रेस पार्टी देश के प्रत्येक व्यक्ति के लिए काम करेगी.”

उन्होंने कहा, ‘हमारा काम जोड़ने का है. यह हाथ का निशान (कांग्रेस का चुनाव चिन्ह) ही देश को जोड़ सकता है. देश को आगे ले जा सकता है. कांग्रेस के इस निशान की शक्ति आप पार्टी प्र​तिनिधियों के भीतर है. हम सबको, देश की जनता को मिलकर देश को जोड़ने का काम करना होगा.’ पूरी खबर यहां पढ़ें

कहा कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ जैसे नारे सिर्फ नाटक थे और सत्ता हथियाने की चाल थी. उन्होंने कहा ,‘मैं राजनीति में नहीं आना चाहती थी, परिस्थितियों के कारण आई.’ पूरी डिटेल खबर यहां पढ़ें

स्टेडियम में बैठकर अपने ही कार्यकर्ताओं के सामने हुंकार भरना आसान होता है. लेकिन राहुल गांधी के सामने चुनौती बड़ी है. कांग्रेस अब सिर्फ देश के 2 बड़े और 2 छोटे राज्यों में सत्ता पर मौजूद है. देश की सिर्फ 7% आबादी पर कांग्रेस पार्टी की सरकार का राज है. और राहुल उन नरेंद्र मोदी के सामने खड़े हैं, जिनकी अगुवाई में बीजेपी राज्य दर राज्य जीत हासिल करती जा रही है.

फिलहाल पार्टी 84वें अधिवेशन में 2019 का रोडमैप तय कर रही है और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की बातें कह रहे हैं. अब सवाल ये है कि राहुल कैसे नरेंद्र मोदी को रोक पाएंगे ? क्या राहुल गांधी अपने दम पर कांग्रेस को लड़ाई कर मोदी को रोक सकते हैं ? क्या राहुल गांधी NDA में हो रही टूट का फायदा उठा सकते हैं ? क्या राहुल UPA में और सहयोगियों को लाने में कामयाब होंगे ? राहुल गांधी UPA को मजबूत करेंगे या तीसरे मोर्चे के साथ खड़े होंगे ? क्या राहुल मोदी विरोधी मोर्चे के नेता बन पाएंगे ?

 

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