जनाब, कोरोना तो ठीक लेकिन उसके बाद की तो कल्पना कीजिये

राजेश श्रीवास्तव

एक तरफ जहां पूरी दुनिया सहित भारत कोरोना वायरस से निपटने की जद्दोजहद में जुटा है । भारत के सामने लोगों की जिंदगी बचाने की प्राथमिकता है तो अब लोग आने वाले भय से भी आशंकित हैं और यह चर्चा अब होने लगी है कि जब लॉक डाउन खुलेगा तो देश कितने पीछे होगा और देश के लोगों का क्या हाल होगा। यह अनजाना भय लोगों को आशंकाओं से घ्ोरे हैं । यह आशंकाएं भी निर्मूल नहीं हैं । कोरोना का कहर भारत की अर्थव्यवस्था को भारी झटका देने जा रहा है। ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैक्श ने यह गंभीर चेतावनी दी है कि कोरोना के प्रकोप और लॉकडाउन की वजह से इस वित्त वर्ष यानी 2०2०—21 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में बढ़त दर महज 1.6 फीसदी रह जाएगी।
आर्थिक तरक्की के लिहाज से देश कई दशक पीछे चला जाएगा। सैक्श ने अपने पहले के अनुमान में भारी कटौती की है। इसके पहले उसने अनुमान लगाया था कि भारत की अर्थव्यवस्था में इस वित्त वर्ष में 3.3 फीसदी की बढ़त होगी। कंपनी के अनुसार वर्ष 2०2० में अमेरिका में -6.2 फीसदी की बढ़त होगी यानी वहां इतने की गिरावट आएगी। यह बढ़त 7०,8० और 2००9 के दशक में देखी गई मंदी के दौर से भी कमजोर है। हाल में रेटिग एजेंसी मूडीज ने भारत के जीडीपी अनुमान को कैलेंडर वर्ष 2०2० के लिए 5.3 फीसदी से घटाकर महज 2.5 फीसदी कर दिया है।
वहीं संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में कोरोना की महामारी 2.5 करोड़ लोगों का रोजगार छीन लेगी। कोरोना वायरस का अभी तक भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर नहीं पड़ा है, लेकिन निर्यात क्षेत्र को आहट महसूस होने लगी है। कई खरीदारों ने अगले निर्देश तक निर्यात ऑर्डरों की डिलीवरी रोकने के लिए कहा है। ऐसे में हमारा अनुमान है कि आने वाले दिनों में ऐसे निर्देशों की संख्या बढ़ेगी और बाद में ये ऑर्डर कभी भी मंगाए ही नहीं जाएंगे। सेंटर फॉर मॉनिटरिग इंडियन इकोनॉमी के साप्ताहिक सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, 15 मार्च तक देश की बेरोजगारी दर 8.4 फीसदी थी जो कि 5 अप्रैल तक बढ़कर 23 फीसदी हो गई है। वहीं, भारत में इस साल मार्च में जॉब हायरिग में 18 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। लीडिग जॉब पोर्टल नौकरी डॉट डॉम के मुताबिक ट्रैवेल, एविएशन रिटेल और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में जॉब हायरिग में सबसे ज्यादा 56 फीसद की गिरावट दर्ज की गयी है।
गौरतलब है कि देश की लगभग एक-तिहाई नौकरियां अस्थाई होती है, जिनके पास इकोनॉमिक सेफ्टी और सिक्योरिटी नहीं होती है। इससे अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। ऐसे में सरकार को लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए उचित कदम उठाने होंगे। कोरोना से कई दशक पीछे चला जाएगा भारत, इस साल बस 1.6% रहेगी । कोरोना का कहर भारत की अर्थव्यवस्था को तरक्की के लिहाज से कई दशक पीछे ले जाएगा।
लेकिन, इस बीच कोरोना वायरस के चलते पैदा हुए हालात ने जैसे अर्थव्यवस्था का पहिया जाम कर दिया है। ना तो कहीं उत्पादन है और ना मांग, लोग घरों में हैं और दुकानों पर तले लगे हैं। लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा असर अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़ेगा और हमारी अर्थव्यवस्था का 5० प्रतिशत जीडीपी अनौपचारिक क्षेत्र से ही आता है। ये क्षेत्र लॉकडाउन के दौरान काम नहीं कर सकता है। वो कच्चा माल नहीं ख़रीद सकते, बनाया हुआ माल बाज़ार में नहीं बेच सकते तो उनकी कमाई बंद ही हो जाएगी। हमारे देश में छोटे-छोटे कारखाने और लघु उद्योगों की बहुत बड़ी संख्या है। उन्हें नगदी की समस्या हो जाएगी क्योंकि उनकी कमाई नहीं होगी। ये लोग बैंक के पास भी नहीं जा पाते हैं इसिलए ऊंचे ब्याज़ पर क़र्ज़ ले लेते हैं और फिर क़र्ज़जाल में फंस जाते हैं। अनौपचारिक क्षेत्रों में फ़ेरी वाले, विक्रेता, कलाकार, लघु उद्योग और सीमापार व्यापार शामिल हैं। इस वर्ग से सरकार के पास टैक्स नहीं आता। लॉकडाउन के इतर कोरोना वायरस के प्रभाव से भी कंपनियों को नुक़सान पहुंच सकता है। जो लोग बीमार हैं वो काम नहीं कर सकते। कितने ही लोग सेल्फ़ आइसोलेशन में हैं। जिनका अपना कारोबार या दुकान है वो बीमारी के कारण उसे चला नहीं पाएंगे, जो ख़र्चा बीमारी के ऊपर होगा वो बचत से ही निकाला जाएगा। अगर ये वायरस नियंत्रण में नहीं आया तो ये असर और कहीं ज़्यादा हो सकता है। लॉकडाउन से लोग घर पर बैठेंगे, इससे कंपनियों में काम नहीं होगा और काम न होने से व्यापार कैसे होगा और अर्थव्यवस्था आगे कैसे बढ़ेगी। लोग जब घर पर बैठते हैं, टैक्सी बिज़नेस, होटल सेक्टर, रेस्टोरेंट्स, फ़िल्म, मल्टीप्लेक्स सभी प्रभावित होते हैं। जिस सर्विस के लिए लोगों को बाहर जाने की ज़रूरत पड़ती है उस पर बहुत गहरा असर पड़ेगा।
जो घर के इस्तेमाल की चीज़ें हैं जैसे आटा, चावल, गेहूं, सब्ज़ी, दूध-दही वो तो लोग ख़रीदेंगे ही लेकिन लग्ज़री की चीज़ें हैं जैसे टीवी, कार, एसी, इन सब चीज़ों की खपत काफ़ी कम हो जाएगी। इसका एक कारण तो ये है कि लोग घर से बाहर ही नहीं जाएंगे इसलिए ये सब नहीं खरीदेंगे। दूसरा ये होगा कि लोगों के दिमाग़ में नौकरी जाने का बहुत ज़्यादा डर बैठ गया है उसकी वजह से भी लोग पैसा ख़र्च करना कम कर देंगे।
जानकारों की मानें तो लॉकडाउन और कोरोना वायरस के इस पूरे दौर में सबसे ज़्यादा असर एविएशन, पर्यटन, होटल सेक्टर पर पड़ने वाला है। एविएशन सेक्टर का सीधा-सा हिसाब होता है कि जब विमान उड़ेगा तभी कमाई होगी लेकिन फ़िलहाल अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर रोक लगा दी गई है। घरेलू उड़ानें भी सीमित हो गई हैं। लेकिन, कंपनियों को कर्मचारियों का वेतन देना ही है। भले ही वेतन 5० प्रतिशत कम क्यों न कर दो। हवाई जहाज़ का किराया देना है, उसका रखरखाव भी करना है और क़र्ज़ भी चुकाने हैं। ’’वहीं, पर्यटन जितना ज़्यादा होता है हॉस्पिटैलिटी का काम भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ता है। लेकिन, अब आगे लोग विदेश जाने में भी डरेंगे। पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र को बहुत बड़ा धक्का पहुंचेगा। सबसे बड़ी बात है कि ये महीने बच्चों की छुट्टियों के हैं लेकिन लोग कहीं घूमने नहीं जाएंगे। कई लोगों का क़र्ज़ लौटाना भी मुश्किल हो सकता है जिससे बैंकों का एनपीए भी बढ़ जाए।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइज़ेशन ने कहा था कि कोरोना वायरस सिर्फ़ एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट नहीं रहा, बल्कि ये एक बड़ा लेबर मार्केट और आर्थिक संकट भी बन गया है जो लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा। हालांकि, सरकार ने कंपनियों से नौकरी से ना निकालने की अपील है लेकिन इसका बहुत ज़्यादा असर नहीं होगा।
संभव है ये दौर 2००8 की मंदी से भी ख़राब दौर हो सकता है। उस समय एयर कंडिशन जैसी चीज़ों पर टैक्स कम हुए थे। तब सामान की कीमत कम होने पर लोग उसे ख़रीद रहे थे लेकिन लॉकडाउन में अगर सरकार टैक्स ज़ीरो भी कर दे तो भी कोई ख़रीदने वाला नहीं है। जानकार इन स्थितियों को सरकार के लिए भी बहुत चुनौतीपूर्ण मान रहे हैं। अचानक ही उसके सामने एक विशाल समस्या आ खड़ी हुई है। 2००8 के दौर में कुछ कंपनियों को आर्थिक मदद देकर संभाला गया। लेकिन, आज अगर सरकार ऋण दे तो उसे सभी को देना पड़ेगा। हर सेक्टर में उत्पादन और ख़रीदारी प्रभावित हुई है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति मिडिल क्लास की है। यह वर्ग सरकार की किसी भी योजना से आच्छादित नहीं है। न ही धनराशि के लिहाज से न राशन के लिहाज से। इस वर्ग का बड़ा हिस्सा छोटे से मंझोले उद्योग में जुड़ा है। यह सभी बंदी की कगार पर हैं। ऐेसे में इस वर्ग को तो अपनी आंखों के सामने अंध्ोरा ही अंध्ोरा दिखायी पड़ रहा है। इसलिए यह तय है कि कोरोना का असली डर तो अभी लॉक डाउन के बाद आने वाला है। तभी पता चलेगा कि जो भयावह स्थिति कोरोना ने पैदा की, उसके बाद की स्थितियां कोरोना वायरस के संक्रमण से भी ज्यादा खतरनाक हैं। ऐसे में नोटबंदी, जीएसटी आदि के बाद खड़े होेने की कोशिश में जुटा आम आदमी इस समय कराह रहा है।

 

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