…जब अटल जी बोले, ये बहुत ताकतवर आदमी हैं, इनके आदेश पर मुझे सोते-सोते जागकर लिखना पड़ा है

लखनऊ। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने विनम्र व्यक्तित्व के कारण हर किसी के प्रिय रहे हैं। उनकी कविताओं से उनके संवेदनशील व्यक्तित्व का पता चलता है। वो लंबे समय तक सार्वजनिक जीवन में रहे। उत्तर प्रदेश उनका कर्मक्षेत्र रहा है। उनसे जुड़े हुए कई ऐसे किस्से हैं जिनसे उनके विशाल व्यक्तित्व का पता चलता है।
यहां पढ़ें, उनसे जुड़े लोगों द्वारा बताए गए किस्से-

‘ये रुके तो मेरी कलम रुकी’
छोटेलाल जायसवाल, अटल बिहारी वाजपेयी के संपादन में निकली पत्रिका राष्ट्रधर्म में फोरमैन थे। फोरमैन मतलब, संपादकीय और छपाई का काम करने वाले प्रेस के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी। पत्रिका समय से निकले। उसे पूरी सामग्री समय से मिल जाए, इसकी भी पूरी जिम्मेदारी फोरमैन की।

जायसवाल के पुत्र रामचंद्र जायसवाल बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो उनके पिताजी (छोटेलाल जायसवाल) ने दिल्ली जाकर उनसे मुलाकात करने का फैसला किया। वो अटलजी के बंगले पर पहुंचे और अंदर जाने लगे। सुरक्षाकर्मियों ने रोक दिया तो पिताजी बोले, ‘अंदर कहला तो दो। अटल जी तुरंत बुला लेंगे। पर, सुरक्षाकर्मी टस से मस नहीं। बिना वाजपेयी जी की इजाजत के वह कैसे अंदर जाने दें।

इसी बीच, अटल जी ने शायद अंदर से कहीं से यह देख लिया। बाहर निकलते हुए बोले,  ‘आने दो भाई। यह बहुत ताकतवर आदमी हैं। कई बार इनके आदेश पर मुझे फिर दफ्तर में बैठना पड़ा है। बेमन कलम निकालकर लिखना पड़ा है। सोते-सोते जागकर लिखना पड़ा है। यह रुके तो मेरी कलम रुकी। यह नहीं रुके तो मेरी कलम भी नहीं रुकी। इन्हें रोक दोगे मेरी कलम रुक जाएगी। चाल और रफ्तार भी रुक जाएगी।

इस बीच सुरक्षाकर्मी पिताजी को गेट के अंदर जाने की इजाजत दे चुके थे। गेट से बंगले के दरवाजे के बीच अटल जी ने मेरे पिताजी को गले से लगाया। अंदर ले गए। रामचंद्र जायवाल कहते हैं, ‘धरती को बौनों की नहीं, ऊँचे कद के इन्सानों की जरूरत है।’ कविता अटल जी ने सिर्फ लिखी नहीं बल्कि इसे जीते भी रहे हैं।

अटल से पूछा, खत्म हो गया पेट का दर्द

अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे राजनेता हैं जिनका विरोधी विचारधारा के लोगों से भी काफी मेलजोल रहा है। समाजवादी चिंतक दीपक मिश्र बताते हैं कि उन्होंने कहीं एक प्रसंग पढ़ा था। जिसके अनुसार, ‘अटल जी एक बार गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में जनसंघ के सम्मेलन में थे। संयोग से उस दिन डॉ. राममनोहर लोहिया भी लखनऊ में थे।

सम्मेलन में अटल जी के कानों में एक व्यक्ति ने कुछ कहा तो अटल जी ने नाना जी देशमुख से कहा, ‘मेरे पेट में दर्द हो रहा है। मैं बोल नहीं पाऊंगा। इसलिए जाना चाहता हूं।’ अटल जी वहां से चले आए। पर, नाना जी भी कम नहीं, उन्होंने अटल जी के निकलते ही किसी को उनके पीछे भेज दिया। अटल जी वहां से निकलकर काफी हाऊस पहुंचे जहां लोहिया जी बैठे थे। उन्होंने लोहिया जी से बात की। कुछ देर बाद लोहिया जी उठे उन्हें दिल्ली जाना था। अटल जी भी उनके साथ चारबाग स्टेशन तक गए। लोहिया जी को गाड़ी में बैठाकर वह लौटे तो दारुलशफा में उनका सामना नाना जी से हो गया। नाना जी ने जैसे ही अटल जी को देखा तो बोले, ‘अब तुम्हारे पेट का दर्द कैसा है।’

अटल जी सवाल सुनकर मुस्करा दिए। नाना जी ने साथ मौजूद जनसंघ की नेता पीतांबर दास से कहा, ‘देखो मैं कह रहा था न कि अटल का पेट कभी खराब नहीं हो सकता। इनके पेट में मरोड़ दर्द से नहीं बल्कि लोहिया जी से मिलने की हो रही थी।’ नाना के इतना कहते ही अटल जी ने भी ठहाका लगाया और बोले, ‘आप सचमुच में नाना है।’

अटल व दीनदयाल का ईंट का तकिया चटाई का गद्दा

देश के साथ 22 राज्यों में सत्ता संभालने वाली भाजपा के नेताओं के लिए आज भले ही चार्टर प्लेन से चलना भी कोई समस्या न हो लेकिन इस पार्टी के जड़े जमाने वाले पं. दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी को प्रांरभिक दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा। बेल को भूनकर भूख मिटाना, लोगों तक विचार पहुंचाने के लिए पत्रिका के प्रकाशन की जिम्मेदारी तो उसे कंधे पर लादकर दुकानों तक पहुंचाने का भी दायित्व। बचे वक्त में संघ और जनसंघ का आधार बढ़ाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर कई-कई घंटे पैदल चलकर लोगों से संपर्क और संवाद। संघ की पत्रिका राष्ट्रधर्म के प्रथम प्रकाशक राधेश्याम प्रसाद ने एक प्रसंग में जो कुछ लिखा है, उससे इसका पता चलता है।

राधेश्याम लिखते हैं, ‘एक दिन नाना जी देशमुख मेरी दुकान पर आए और बोले, ‘प्रेस आकर हिसाब-किताब तो देख लो।’ उन दिनों राष्ट्रधर्म का प्रकाशन सदर बाजार से होता था। दुकान बंद करके रात में प्रेस गया। वहां देखा कि हॉल में दोनों ओर तार लगाकर कपड़े के परदों से केबिन बना दिए गए हैं। अंदर एक मेज और बरामदे में एक तख्त। गर्मियों के दिन थे। रात में काम खत्म हुआ तो दीनदयाल जी ने मुझे दरी, चादर और तकिया दे दिया।

मुझे उन लोगों से पूछने का भी ध्यान नहीं रहा और तख्त पर सो गया। प्रात: काल नींद खुली तो वहां के दृश्य देख अचंभित रह गया। आंखों में आंसू भी आ गए। दृश्य यह था कि मेरे ही बराबर नीचे जमीन पर दीनदयाल जी और अटल जी चटाई पर सो रहे थे। तकिया के स्थान पर दोनों लोगों ने अपने सिर के नीचे एक-एक ईंट लगा रखी थी। मैं हड़बड़ा कर उठा और दोनों लोगों को जगाया। फिर कहा, ‘आप लोगों ने तो बड़ा अनर्थ कर दिया। ऊपर सोइए।’ पं. दीनदयाल उपाध्याय बोले, ‘आदत न खराब करिये।’ अटल जी ने हंसते हुए कहा, ‘जमीन छोड़ दी तो पैर कहां ठहरेंगे।’

 

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