जब धर्मांतरण का व्यापार और षड्यंत्र पर हुई चोट, तो पादरी को राष्ट्रवादीयो से लगा भय

अब तक आपने ‘राम भरोसे हिंदु होटल’ तो सुना होगा, लेकिन आज ‘ईशा मसीह भरोसे गुजरात के ईसाई वोटर’ सुन लिजिये। “भारतवर्ष मे बसे ईसाईयों को यहाँ के राष्ट्रवादी ताक़तों से ख़तरा है,” ऐसा कहते हुऐ गांधी नगर के प्रधान पादरी थॉमस मैक्वेन ने ठीक गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले ईसाईयों से राष्ट्रवादी ताक़तों को हराने की अपील की और कहा कि उनके प्रभु ईशा मसीह उनकी मदद करेंगें। प्रधान पादरी थॉमस मैक्वेन ने अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी को हराने की अपील की है।

सर्वप्रथम थॉमस मैक्वेन ने अपने बयान से, पुरी ईसाई समुदाय को राष्ट्रविरोधी क़रार दिया है। सही भी है, किसी भी देश का ऐसा कौन सा समुदाय है जिसे राष्ट्रवादी ताक़तों से ख़तरा हो सकता है? इस प्रश्न का जबाब चौथी क्लास का विद्यार्थी भी दे सकता है, कि सिर्फ राष्ट्रविरोधी ताक़तों को ही राष्ट्रवादी ताक़तों से भय होता है। प्रधान पादरी थॉमस मैक्वेन को राष्ट्रवादी ताक़तों का डर क्यों है?

‘कम्पैशन्स ईस्ट इंडिया,’ (Compassion East India), पूरे विश्व में ईसाई धर्मांतरण कराने वाली सबसे बड़ी अमेरिकी ऐजेंसी है जो विदेशों से फ़ंड लेकर भारतवर्ष में बड़े पैमाने पर गरीबों और आदिवासियों का धर्मांतरण कर रही थी। मोदी सरकार ने इसके विदेश से फंड लेने पर पहले से अनुमति लेने की शर्त लगा दी। इसके तुरंत बाद ‘कम्पैशन्स ईस्ट इंडिया’ ने भारत में अपना दफ्तर और सारे ऑपरेशन बंद करने का एलान कर दिया। इतना ही नही मोदी सरकार ने देश में काम कर रहे तमाम एनजीओ का ऑडिट करवाया, जिसमें यह पाया गया कि ‘कम्पैशन्स ईस्ट इंडिया’ भारत में हर वर्ष 292 करोड़ रुपये विदेशों से लाती थी, और इसे 344 छोटे-बड़े एनजीओ में बांट दिया जाता था। ये सभी एनजीओ देशविरोधी और धर्मांतरण की गतिविधियों बुरी तरह से लिप्त थे।

जब राष्ट्रवादी मोदी सरकार ने उस लिंक पर चोट किया जहाँ चर्च द्वारा बड़े पैमाने पर हिंदुओं का धर्मांतरण किया जा रहा है तो थॉमस मैक्वेन जैसे पादरी ने राष्ट्रवादी ताक़तों को ख़तरा बताना शुरू कर दिया। ज़हरीले पादरी ने ये भी कहा, “ऐसा एक दिन भी नहीं जाता जब हमारे चर्चों, चर्च के लोगों या अन्य संस्थानों पर हमला ना हो।”

दिल्ली पुलिस के रिपोर्ट के अनुसार, सन 2014 में 206 मंदिर, 30 गुरुद्वारा, 14 मस्जिद और तीन चर्च मे तोड़फोड़ की घटना दर्ज हुई फिर भी हिंदुओं ने थॉमस मैक्वेन जैसे ज़हर नहीं उगला। ख़बरों मे अगर कुछ दिखाया गया तो सिर्फ तीन चर्च मे की गई तोड़ फोड़।

पादरी थॉमस मैक्वेन का ये ज़हरीला संदेश गुजरात से ज़्यादा दक्षिण भारत मे रह रहे इसाईयों के लिये है जहाँ चर्चों की संख्या कुकुरमुत्तों की तरह बढ रही है। अगला चुनाव कर्नाटक में होने वाला है, बाकि के गणित की व्याख्या करने की ज़रूरत नहीं है। सवाल ये है कि एक चर्च का पादरी ईसाईयों से राष्ट्रवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ वोट माँग रहा है। क्या ये सेक्युलरिज्म की हत्या नहीं है? अगर यही किसी हिन्दु धर्म गुरू ने हिंदुओं को राष्ट्र के हित मे मत देने के लिये आह्वान किया होता तो अब तक देश असहिष्णु हो गया होता और सेक्युलरिज्म ख़तरे मे आ जाता।

 

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