जब नेहरू ने दलितॊं के मसीहा भीम राव अंबेडकर कॊ किया था अपमानित

सीधी सी बात है की चच्चाजी को एसा कॊई भी व्यक्ती पसंद नहीं था जो भारत की अखंडता और असिम्ता की बात करते थे। बॊस, सावरकर, भगत, पटेल हो या फिर अंबेडकर इन सभी से नफरत करते थे चच्चाजी। क्यॊं की वे सारे देश प्रेमी थे और देश की एकता की बात करते थे। चच्चाजी को देश की एकता से कॊई वास्ता नहीं था। उनका उद्देष्य ही भारत को बर्बाद करने का था। क्यॊं न हॊ मुघलों का रक्त जो रगॊं में बहता था।

जो काँग्रेस आज दलित-दलित का राग आलाप थी है उसी के प्राधनमंत्री नेहरू ने अंबेडकर के साथ क्या किया था वो आपको कभी नहीं बताएगी। सच माने तो आज अंबेडकरजी को दलित कहना ही हास्यास्पद है क्यॊं की उन्हॊंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था और इस माईने से वे बौद्ध है दलित नहीं। काँग्रेस ने अपने राजनीती को चमकाने के लिए अंबेडकर जी के नाम का उपयॊग किया है और दलित और अन्य समुदायॊं को आपस में भिडाया है।

बुद्ध के बारे में जो किताब (द बुद्धा एंड हिस धम्मा) अंबेडकरजी ने लिखी थी, च्च्चाजी ने उसकी १०० कापियाँ तक नहीं खरीदी थी और कहा की वे अपने खुद की स्टाल लगाएं और पुस्तकें बेचें। चच्चाजी के मन में अंबेडकरजी के लिए ज़ेहर भरा हुआ था। काँग्रेस जो आज अंबेडकरजी को अपने निजी स्वार्थ के लिए उपयॊग कर रहा है उसने भारत के संविधान शिल्पी को भारत रत्न तक नहीं दिया था। जब के काँग्रेस परिवार से तीन लोगॊं को मृत्यु के तुरंत बाद ही भारत रत्न मिला था। उसे छॊडिए संविदान शिल्पी की एक तस्वीर तक संसंद में नहीं लगवाई थी। यह दोनों काम भाजपा ने ही सत्ता में आने के बाद किया था। वही काँग्रेसी आज अंबेडकरजी के नाम पर दलितों को भ्रमित कर रही है के वे उनके मसीहा है।

नेहरू की नफरत इतनी थी की उन्हॊंने अपने मंत्रीमंडल में तक अंबेडकरजी को जगह नहीं दिया था। अंबेडकर को जो की बडे से बडॆ पद संभालने में सक्षम थे उन्हें कानून मंत्री बनाया गया। जब अंबेडकरजी ने नेहरू से कहा की वे किसी बडी ज़िम्मेदारी को भी संभाल सकते हैं तो नेहरू ने उन्हें यॊजना से जुडी मंत्रालय देने का वादा किया लेकिन कभी दिया ही नहीं। इस बात को स्वयं अंबेडकरजी ने २७ सितंबर १९५१ को संसद के अपने भाषण में त्यागपत्र देते हुए कहा था। उनको जानबूज कर प्राशसनिक मंत्रिमंडल नहीं दिया चच्चाजी ने।

अंबेडकरजी ने कहा है की उनकॊ मंत्रीमंडल में जगह तो छोडिए जब कॊई मंत्री विदेश जाता था तब उसके मंत्रालय को अल्पकाल के लिए भी संभालने नहीं दिया गया था। इतना अपमान संविधान के शिल्पी का? नेहरू अंबेडकरजी को सदन की किसी भी समिती में सम्मिलित नहीं करते थे। अंबेडकरजी को बहुत ही खेद हॊता था की जो देश के लिए जो दलित और महिलाओं के कल्याण के लिए वे परिश्रम करते थे उसे अनदेखा कर अयॊग्य लोगॊं को कुर्सी पे बिठाया जाता था।

अंबेडकरजी ने संविधान के ३७० अनुच्छेध का पुरज़ॊर विरॊध किया था जो कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानता। जब नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को अंबेडकर के पास भॆजा और संविधान में इस अनुच्छेद को समावेश करने को कहा तो अंबेडकरजी ने स्पष्ठ रूप से कहा कि वे ऐसा नहीं करेंगे क्यॊं की यह भारत के जनता के साथ छल हॊगा। अंबेडकरजी मुस्लिम लीग के पक्ष में भी नहीं थे। वे गांधी और नेहरू के मुस्लिम तुष्टीकरण का भी विरोध करते थे। उनका मानाना था की इस्लाम में कई पद्दतियां है जो महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं देती है। वे तो देश में समान रूप नागरिक संहिता को लाने के पक्ष में थे और मुसल्मानॊं के शरिया कानून का विरॊध करते थे। लेकिन नेहरू ने उनकी एक नहीं सुनी।

अंबेडकरजी ने आरक्षण के विषय में कहा था की दलित जो की वर्षॊं से अवकाश से वंचित था उसे भी समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए। किन्तु जो दलित आरक्षण से अवकाश प्राप्त कर स्वयं को सक्षम बनाता है उसका समाज के प्रति कुछ कर्तव्य बनते हैं। वे खेद प्रकट करते थे की आरक्षण का दुरुपयॊग हो रहा था। काँग्रेस ने ६० साल से लोगों को आरक्षण और अंबेडकर के नाम से भ्रमित कर रखा है। किन्तु कभी यह नहीं बताया की नेहरू ने किस प्रकार अंबेडकरजी का अपमान किया की उन्हें सदन को त्यागपत्र तक देना पडा।

जिस अंबेडकर के नाम की माला जपती है क्या काँग्रेस ने उनकी एक भी बात पर अमल किया है? अपनी राजनैतिक लाभ के चलते काँग्रेस अंबेडकरजी को अपना दलित मुखवाणी के तौर पर उपयॊग करती है और कुछ नहीं। न नेहरू को अंबेडकरजी से लगाव था और न ही काँग्रेस के किसी भी नेता को, उनको लगाव है केवल अपनी वॊट बैंक से।


Source:http://velivada.com/2017/05/27/nehru-casteist-dr-ambedkar/

 

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