जमात के लोगों देश आपसे सवाल पूछ रहा है जवाब दीजिए

राजेश श्रीवास्तव

आज का आलेख पढ़ने से पहले आपको थोड़ा पीछे ले जाना चाहता हूं। आप याद कीजिये 28 मार्च की तारीख जब महज 75० लोग भारत में कोरोना से संक्रमित थ्ो और एक की भी मौत नहीं हुई थी। माना जा रहा था कि भारत जल्द ही कोरोना से मुक्ति पा लेगा। लेकिन महज पांच दिन में जो कुछ हुआ उसने भारत की तस्वीर और तकदीर ही बदल कर रख दी। पांच दिनों में 75० से बढ़कर भारत में कोरोना के मरीजों की संख्या 3००० के आसपास पहुंच गयी और तकरीबन 75 लोगों की मौत हो चुकी है। यह सब कुछ है दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में जुटे तबलीगी जमात के लोगों के कारण। इसके बावजूद आज तक एक भी मुस्लिम धर्मगुरू सामने नहीं आया जिसने यह कहा हो कि हां चूक हुई है।

एक भी जमाती सामने नहीं आया कि उसने यह कहा हो कि हां मैं वहां गया था मैं कोरेंटाइन होना चाहता हूं। स्थिति तो यहां तक आ गयी कि इन लोगों को निजामुद्दीन मरकज से निकालने के लिए रात के दो बजे एनएसए के अजित डोभाल को जाना पड़ा। खुद गृह मंत्री अमित शाह को दखल देना पड़ा। इन सबके बावजूद तथाकथित लोग यह कह रहे हैं कि लोग हिंदू-मुस्लिम कर रहे हैं। लेकिन इन मुस्लिमों से आज कुछ सवाल उठ रहे हैं क्या इस्लाम धर्म कानून तोड़ने की बात करता है। क्या इस्लाम धर्म देश को धोखा देने की बात करता है। क्या इस्लाम धर्म झूठ बोलने के लिए कहता है।

अगर नहीं तो फिर भारत को कोरोना वायरस के नए खतरे की तरफ धकेलने वाले तबलीगी जमात ने धर्म के नाम पर यह सब क्यों किया है। तबलीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज से 1548 लोग निकाले गए हैं। अन्य सभी को देश के विभिन्न हिंस्सों से उठाया जा रहा है। क्यों इन्होंने झूठ बोला, टूरिस्ट वीजा से भारत आकर जमात में हिस्सा लिया, क्या इस्लाम इसकी सीख देता है। क्यों इन सबका आयोजन करने वाले मौलाना साद अब तक अपने आप को कानून के हवाले नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं अपने घर पर कोरेंटाइन हूं लेकिन जब पुलिस वहां गयी तो उनके परिजनों ने कहा कि वह घर पर नहीं हैं।

तबलीगी जमात से जुड़े 9०० लोग से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव हैं। यानी तबलीगी जमात ने देश को कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट बना दिया। तबलीगी जमात से जुड़े हज़ारों लोग देश के अलग अलग हिस्सों में गए हैं। इनकी पहचान करना, इनके संपर्क में आए लोगों की पहचान करना, इन्हें अलग करना। ये बहुत कठिन चुनौती है। जमात के विदेशी और घरेलू प्रचारक, इस जमात के कार्यकताã सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, लखनऊ, पटना, रांची जैसे शहरों में भी मिले।

कई जगहों पर इन्होंने खुद को छुपाया और इन्हें पकड़ने के लिए पुलिस को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। निजामुद्दीन मरकज की सफाई ये है कि पहले जनता कफ्यू लगा फिर लॉकडाउन का ऐलान हो गया इसलिए ये लोग यहीं फंसे रह गए। यहां ये बताना ज़रूरी है कि पुलिस के मुताबिक आयोजकों को दो दो बार नोटिस दिया गया था। देश में लगातार सोशल डिस्टेंसिग की बात हो रही थी। प्रधानमंत्री खुद लगातार ये कह रहे थे कि लोगों को घरों में ही रहना चाहिए। सबको भीड़ से दूर रहना चाहिए। देश ही नहीं पूरी दुनिया में यही बात हो रही थी लेकिन धर्म का चश्मा लगाए इन लोगों को कुछ दिखाई और सुनाई नहीं पड़ा।

लेकिन ऐसे वक्त में इस तरह के लोग अगर धर्म के नाम पर और धर्म के प्रचार के नाम पर भारत को एक बड़े खतरे की तरफ धकेलने में लगे हैं तो ऐसे लोगों पर सवाल उठाने ही चाहिए लेकिन जब ऐसे लोगों पर सवाल उठाए जाते हैं तो एक खास गैंग सवाल उठाने वालों पर ही आरोप लगाने लगता है कि कोरोना के नाम पर ध्रुवीकरण किया जा रहा है. हिदू-मुसलमान किया जा रहा है। हम ये मानते हैं कि देश के मुसलमान भी कोरोना के खिलाफ लड़ाई में देश के साथ खड़ा है।

लेकिन ये मुट्ठी भर लोगों में धार्मिक कट्टरता की ऐसी पट्टी बंधी है जो पट्टी ये लोग उतारना नहीं चाहते, जबकि ये देश का संकटकाल है। पूरी दुनिया पर खतरा है। यही लोग जब टीवी पर दोबारा से दिखाई जा रही रामायण का विरोध करते हैं तब क्या ये लोग धर्म निरपेक्षता की मिसाल पेश कर रहे होते हैं ? नहीं, बिल्कुल नहीं। बल्कि सच तो ये है कि ये लोग खुद हर चीज़ को धर्म के चश्मे से देखते हैं और धर्म की आड़ में कानून, नियमों और संविधान की धज्जियां उड़ाना चाहते हैं। क्योंकि इनके मन लॉकडाउन में है जिस पर वैचारिक ताला लटका है।

आज जमात के लोग जो कर रहे हैं निश्चित रूप से वह इस्लाम को बदनाम करने का ही काम कर रहे हैं। यह उन चिकित्सकों का भी अपमान कर रहे हंै जो पृथ्वी पर भगवान या खुद का रूप होते हैं। यह उन नर्सों का भी अपमान कर रहे हैं जो बहन का स्वरूप होती है। यह उन पुलिसकर्मियों का भी अपमान कर रहे हंै जो लोगों के लिए अपना घर-परिवार छोड़कर सड़कों पर जमे हैं और तो और यह लोग मीडिया पर भी मिथ्या आरोप लगा रहे हैं। समय गवाह रहा है कि इन लोगों ने कभी कानून का पालन नहीं किया। शाहीन बाग में मुट्ठी भर लोग जमे रहे। जब भी देश में आपत्ति काल आया तो इन्होंने हमेशा कानून के बजाय अपने धर्मगुरुओं के फतवों को ही माना न कि संविधान पर। फिर भी दावे हमेशा यही किए कि हम भी देश के वासी हैं। आखिर अगर देश आपका है तो फिर यह व्यवहार क्यों, देश आपसे सवाल पूछ रहा है और आपको इसका जवाब आज नहीं तो कल देना ही होगा।

 

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