जिहादियों ने दी थी धमकी,’ इस्लाम अपनाओ, भागो या मरो’: अपने ही देश में निर्वसितों की तरह जी रहे कश्मीरी पंडितों की दुख भरी कहानी..

एक कश्मीरी पंडित कभी नहीं भूलेगा 1989 का वो दिन जिस दिन उन्हें अपने ही घर से निकाल कर दर दर भटकने को मजबूर कर दिया था। 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ये-इस्लामी ने कश्मीरी पंडितों पर कहर बरसाया । जमात-ये-इस्लामी ने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया, उसने नारा दिया ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो’। अपने ही देश में सौतेला व्यवहार कश्मीरी पंडितों के साथ किया गया। अपनी जान बचाने के लिए पंडितों ने घाटी छोड़ दी और करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी ज़मीन जायदाद छोड़कर अनाथ की तरह रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए।

कश्मीरी पंडितों पर कहर बरसने की शुरुआत सितम्बर 14, 1989 से हुई। पहले भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी। उसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। जिहादियों ने हिंदू नेताओं को ढूंड-ढूंड कर मार डाला। 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषो की हत्या कर दी गयी। एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ भीड़ ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार मार कर उसकी हत्या कर दी। घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कीयों के अपहरण किए गए।

कश्मीर घाटी में मुघल काल के शासन लागू हुए हों ,ऐसा प्रतीत होने लगा। एक स्थानीय उर्दू अखबार ने हिज्बल- मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञापन जारी किया- ‘सभी हिन्दू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जायें’। एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र अल सफा ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया। मस्जिदों में भारत एवं हिन्दू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं। कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया जिसमे लिखा था ‘या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो’। पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधान मंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया। उसके बाद सारे कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आए जिसमें कश्मीर के सारे आम मुस्लिम भी शामिल थे। पंडितों पर अत्याचार इतना बड़ गया की वे रातों रात अपना सबकुछ छोड़ जान बचाकर भाग चले।

कश्मीरी पंडितों पर कहर 1947 भारत विभाजन काल से ही टूट गया था। पाकिस्तान ने कबाइलियों के साथ मिलकर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और बड़ी बेरहमी से कई दिनों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किया। मुघल प्रेमी नेहरू ने सेना को आदेश देने में इतनी देरी कर दी की पकिस्तान ने कश्मीर के एक तिहाई भू-भाग पर कब्जा कर लिया, वहीं उसने कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम कर उसे पंडित विहीन कर दिया। पंडितों पर दुबारा कहर टूटा जब अलगाववादी संगठन ने कश्मीरी पंडितों से केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा लेकिन जब पंडितों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उनका नरसंहार किया जाने लगा। 4 जनवरी 1990 को कश्मीर का यह मंजर देखकर कश्मीर से 1.5 लाख हिंदू पलायन कर गए।1947 से ही गुलाम कश्मीर में कश्मीर और भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस आतंकवाद के चलते जो कश्मीरी पंडित गुलाम कश्मीर से भागकर भारतीय कश्मीर में आए थे उन्हें इधर के कश्मीर से भी भगाया गया। आज कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं।

कैसा दुर्भाग्य है, कैसी विडंबना है की “सेक्यूलरिस्म” भारत में एक हिन्दू अपने ही देश में निर्वासित की तरह जीने को मजबूर होता है। गद्दार नेहरू और शेख अब्दुल्ला के गंदी राजनीति के चलते आज कश्मीरी पंडित दर दर भटक रहे हैं। हमारे देश में रोहिंग्या मुसलमानों की पैरवी  करनेवाले बुद्दीजीवी, दलाल पत्रकार और अवार्ड वापसी गैंग नज़र आते हैं, मुसलमानों पर हल्की चॊट भी हो तो मानावाधिकार वाले भागे दोड़े आते हैं, जानवरों के लिए आंसू बहानेवाले संगठन देश में पाए जाते हैं। लेकिन जब बात कश्मीरी पंडितों की आती है तो उन्हे सांप सूंग जाता है। यही है सेक्यूलरिस्म? हिन्दू को अपने ही देश में अपने ही अधिकारॊं से वंचित रखॊ; उसे अपने घर से निर्वासित कर दो और जिहादियों को बुला बुलाकर उनकी आरती उतारो। यही है भारत का “सेक्यूलरिस्म”! पता नहीं हिन्दू कब समझेंगे। भारत का सेक्यूलरिस्म उस दिन चमकेगा जिस दिन कश्मीर से विस्थापित हिन्दुओं को पूरे सम्मान के साथ कश्मीर में पुनः स्थापित किया जाएगा।

 

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