जेएनयू का बवाल ही क्यों बनती हैं सुर्खियां, विश्वविद्यालय तो और भी हैं

नई दिल्ली। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जेएनयू एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार कारण अज्ञात हमलावरों द्वारा छात्रों पर किया गया हमला है। हर बार की तरह इस बार भी मुद्दे पर खूब राजनीति हो रही है। विपक्ष के तमाम बड़े नेता एक-एक करके जेएनयू का रुख कर चुके हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, कम्युनिस्ट नेता वृंदा करात, कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, पूर्व विधायक आसिफ अहमद खान, अल्का लंबा और स्वराज पार्टी के नेता योगेंद्र यादव जैसे तमाम विपक्ष के नेता छात्रों के समर्थन में जेएनयू पहुंच गए। यही नहीं बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण भी जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष के साथ खड़ी दिखीं। इस पर विवाद भी हुआ। उन्हें और उनकी फिल्म को आलोचना भी झेलनी पड़ी।

स्टेट, सेंट्रल और डीम्ड यूनिवर्सिटी को मिला लें, तो 500 से ज्यादा विश्वविद्यालय इस देश में हैं। इनमें करीब 46 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। कई विश्वविद्यालयों में समय-समय पर हमें विवाद या प्रदर्शन भी देखने को मिलते रहते हैं। मगर कभी भी वो देश की अस्मिता पर सवाल बनकर खड़े होते नहीं दिखते।

मगर जेएनयू में उठी एक छोटी सी चिंगारी भी भीषण आग का रूप ले लेती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष ही नहीं आमजन को भी इसकी तपिश महसूस होती है।

22 अप्रैल, 1969 को इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। विश्वविद्यालय का नाम भले ही देश के पहले प्रधानमंत्री व कांग्रेस नेता जवाहर लाल नेहरू के नाम पर है, लेकिन सच यह भी है कि करीब 50 साल के इतिहास में यहां वामपंथ का ही वर्चस्व रहा है।

जेएनयू छात्र संघ चुनावों की बात करें तो 1974 से 2008 और 2012 से अब तक सिर्फ एक बार ही भाजपा समर्थित छात्र संघ एबीवीपी को जीत मिली है। जबकि करीब 23 बार आइसा (आल इंडिया स्टुडेंड एसोसिएशन) और 12 बार एसएफआई (स्टुडेंट फेडरेशन आफ इंडिया) का ही राज रहा है।

  • जेएनयू में वामपंथी और अन्य विचाराधाराओं का टकराव भी विवाद का प्रमुख कारण माना जा सकता है।
  • यहां छात्र साफ तौर पर लेफ्ट विंग और राइट विंग के रूप में दो धड़ों में बंटे रहते हैं
  • विशेषज्ञों की मानें तो देश में वामपंथ का आधार लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में जेएनयू की छोटी से छोटी घटना बड़ा रूप ले लेती है।
  • देश में सिर्फ अब केरल में ही वाम सरकार है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के आने के बाद से उनका आधार कम होता जा रहा है।
  • जब भी चुनाव होता है तो ऐसा लगता है राजनीतिक दल चुनाव लड़ रहे हैं।
  • जेएनयू विचारों की आजादी के लिए जाना जाता है और छात्र यहां खुलकर अपने विचार रखते हैं
  • कभी कभी विचार इस स्तर पर चले जाते हैं कि देश की एकता और अखंडता पर ही सवाल खड़े कर देते हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय

  • पिछले साल अक्तूबर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में खूब बवाल हुआ।
  • छात्र-छात्राओं ने छात्र परिषद भंग कर छात्र संघ बहाली की मांग को लेकर जमकर बवाल मचाया।
  • पूरा परिसर पुलिस छावनी में बदल गया। मगर पूरा विवाद छात्रों के इर्द-गिर्द ही रहा, इसे सियासी रंग नहीं चढ़ा।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

  • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में डॉक्टर फिरोज खान की नियुक्ति पर काफी दिनों तक विराध चला छात्रों ने संकाय में तालाबंदी कर धरना दिया।
  • विरोध इतना बढ़ा कि कई छात्रों ने परीक्षा में बैठने से इनकार कर दिया। मगर यहां भी कोई बड़ा नेता नहीं दिखा।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

  • अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में छात्रों का प्रदर्शन चलता ही रहता है।
  • नागरिकता कानून को लेकर यहां बड़ा बवाल हुआ और हजारों की संख्या में छात्र सड़कों पर उतरे।
  • जेएनयू विवाद भी यहां मुद्दा बना, लेकिन सियासत नदारद रही।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया

  • जामिया में नागरिकता कानून के विरोध में खूब बवाल हुआ।
  • पुलिस पर कैंपस के भीतर घुसकर छात्रों को पीटने के आरोप भी लगे।
  • जल्द ही यह विरोध कैंपस से बाहर निकल आम लोगों तक पहुंच गया।
 

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