जे पी सेन्टर- LDA निर्माण कार्यो के घोटालो का जिम्मा शासन के अधिकारियों पर क्यो ?

लखनऊ। जे पी सेन्टर को लेकर मीडिया का इतना अधिक प्रभाव पड़ा है कि सूबे के राज्य मंत्री आवास को पुनः लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधीन बन रहे जे पी सेन्टर जाकर उसका निरीक्षण करना पड़ा।

“जे पी सेन्टर का निरीक्षण करने के उद्देश्य से मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने कल  निरीक्षण  का दायित्व लखनऊ से ही विधायक और सूबे के प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन व राज्य मंत्री आवास सुरेश पासी को सौप दिया है। इन दोनों मंत्रियो ने कल जे पी सेन्टर का निरीक्षण किया तो सबसे गंम्भीर मामला,बसपा सरकार की भांति पत्थरो की खरीद में पाया। भारत मे ही 10 रुपये में मिलने वाले पत्थर को विदेशो से 100 रुपये में खरीदे जाने की बात सामने आई। लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारी यह बताने में कन्नी काटते रहे कि किसके आदेश से और क्यो यह पत्थर विदेशो से मंगाया गया।

निरीक्षण के दौरान दोनों मंत्रियो ने अधिकारियों पर भी इस भ्र्ष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया और कहा कि अधिक घन का बजट बनाकर सरकार को लूटा गया है।जे पी सेन्टर में सामग्री के क्रय से संबंधी पत्रावलियों की भी मांग की गई पर अवकाश होने  के कारण  पत्रावलियां उपलब्ध न हो सकी।प्राविधिक शिक्षा मंत्री का मत था कि 834 करोड़ की इस परियोजना को आधी कीमत पर भी बनाया जा सकता था।दोनों मंत्रियो ने इसमें लिप्त दोषी अधिकारियों के विरुद्ध तत्काल कड़ी कार्यवाही के निर्देश दिए है। आशुतोष टंडन ने यह भी बताया कि निर्माण कार्य मे लगे अधिकारियों को चिन्हित कर उनके विरुद्ध तत्काल कार्यवाही सुनिश्चित करे जाये।”

4-5 दिन का समय व्यतीत हो जाने के बाद जब किसी अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नही हुई और न ही कोई आख्या प्रस्तुत की गई तो कल पुनः राज्य मंत्री आवास सुरेश पासी  ने जे पी सेंटर का निरीक्षण करना उचित समझा।इस बार राज्य मंत्री ने एक एक मंजिल पर बड़ी बारीकी से निर्माण कार्यो का निरीक्षण कर वहा उपस्थित प्राधिकरण के अधिकरियो से एक एक निर्माण के बारे में प्रश्न किया।

प्राधिकरण के अधिकारी उन्हें उत्तर देने से कतराते मिले या उन्होंने सभी बातों का ठीकरा तत्कालीन समाजवादी सरकार के सर, उसी प्रकार फोड़ दिया जिस प्रकार समाजवादी पार्टी ने अपनी शर्मनाक हार का ठीकरा EVM पर फोड़ा है।

जे पी सेन्टर में एक घंटे तक चले निरीक्षण में राज्य मंत्री लिफ्ट न होने की दशा में पैदल सीढ़ियों से ही बिल्डिंग की 18वी मंजिल तक पहुँच गये।

जे पी सेंटर की सबसे ऊपरी मंजिल पर बने हैलीपैड के बारे में उन्होंने प्रश्न किया कि इसे तो जमीन पर भी बनाया जा सकता था तो 1.5 करोड़ की लागत से उसे 18वी मंजिल पर बनाने का क्या औचित्य था ?

हैलीपैड के निर्माण के औचित्य पर वहा मौजूद अधिशासी अभियंता बी पी मौर्य ने बताया कि शासन ने ही इसकी डिज़ाइन को मंजूरी दी थी, LDA तो मात्र निमार्ण एजेंसी थी! बीपी मौर्य का यह उत्तर तो अपने मे अनेको प्रश्न पैदा करता है पर राज्य मंत्री ने इस पर कुछ नही कहा।

राज्य मंत्री ने  यह भी कहा कि 50 करोड़ में बनने वाले निमार्ण कार्य मे 864 करोड़ कैसे खर्च कर दिए गये, जिससे आम जनता को तो कोई लाभ नही होगा।राज्य मंत्री ने आश्वस्त किया कि जनता के पैसों का दुरुपयोग करने वाले अफसरों के विरुद्घ कार्यवाही जरूर होगी चाहे वह LDA का अधिकारी हो या शासन स्तर का।

निर्माण की टेंडर प्रक्रिया के बारे में पूछने पर यह बताया गया कि टेंडर की प्रक्रिया ऑनलाइन की गई थी। निर्माण में लगे लाल पत्थर के बारे में बताया गया कि यह 900 रुपये में  1′ x 2′ के प्रति पीस की दर से लिया गया है।यह पूछने पर की इसमें इतना महंगा पत्थर लगाने की क्या जरूरत थी तो बताया  गया कि इसका निर्णय   मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी ने लिया था। गौर करने वली बात यह है कि मुख्य सचिव की कमेटी के समक्ष प्रस्ताव किसने रखा,यह नही बताया गया।निर्माण का प्रस्ताव तो LDA ने ही बनाया होगा।

राज्य मंत्री के यह पूछने पर की किसके आदेश पर जेपी सेंटर बनाया गया।LDA अफसरों ने इसमें बड़ी गड़बड़ी की है,उपाध्यक्ष LDA सभी अफसरों को बचाते हुये बोले कि इसमें LDA की कोई गलती नही है,LDA तो मात्र निर्माण एजेंसी है।सारे निर्णय मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित परियोजना निगरानी समिति लेती है जिसमे प्रमुख सचिव वित्त,आवास और नियोजन होते है।

उल्लेखनीय है कि किसी भी परियोंजना निगरानी  समिति का गठन परियोजन के अनुमोदन के बाद किया जाता है।निगरानी समिति का दायित्व मात्र शासन द्वारा निर्गत धनराशि के समयबद्ध व्यय पर निगरानी रखने से  होता है,जैसा कि समिति के नाम से ही  स्पस्ट है। समिति में कोई तकनीकि विशेषज्ञ नही होता है जो निर्माण की सत्यता को परख सके।

इसी प्रकार स्विमिंग पूल के निर्माण का जिम्मा भी शासन के निर्देश पर डाल दिया गया।एयर कंडीशन के संबंध चीन जाने की बात पर भी राज्य मंत्री को यह बात दिया गया कि यह कार्य भी शासन का निर्देश पर हुआ था।

गौरतलब यह है कि 4-5 दिन पूर्व जब निरीक्षण हुआ था तब किसी ने भी शासन या उसके किसी अधिकारी की जिम्मेदारी नही बताई थी और आज सारा दायित्व शासन पर डाल दिया।

जहाँ तक शासन स्तर पर कार्यवाही का प्रश्न है,LDA का कोई भी निर्माण या प्रस्ताव हो,वह किसी निर्माण एजेंसी द्वारा तैयार कराया जाता है।इस मामले में LDA स्वम निर्माण एजेंसी है और उसी ने अपनी संस्तुति सहित प्रस्ताव आवास विभाग को भेजा होगा।आवास विभाग में कोई तकनीकि विशेषज्ञ नही होता है जो इसका परीक्षण करे।

LDA की संस्तुति के अनुरूप प्रस्ताव नियोजन विभाग के मूल्यांकन प्रभाग को भेज दिया जाता है जहाँ LDA के अधिकारी तकनीकी बातो के आधार पर उसपर उनका अनुमोदन प्राप्त कराते है।नियोजन विभाग सामान्यतः PWD की दरों पर प्रस्ताव पर सहमति देते है।कभी कभी विशिष्टता के आधार पर भी प्रस्ताव अनुमोदित होता है।पर कोई भी अधिकारी मौके स्थल पर काम का परीक्षण नही करता है।

नियोजन से अनुमोदन के बाद मामला वित्त व्यय समिति के अनुमोदनार्थ जाता है।समिति के अनुमोदन के बाद वित्त  विभाग परियोजना की स्वीकृति देता है ।इन सब के बाद मंत्री परिषद के अनुमोदन से परियोजना को अंतिम रूप मिलता है।

यह सब कार्यवाही शासन स्तर पर कागज़ों के आधार पर होती है।क्रय की जाने वाली सामग्री आदि का कोई नमूना पत्रावली पर नही चलता है। बाकी सब क्रियात्मक कार्य LDA  या निर्माण इकाई द्वारा ही किया जाता है।अतः घोटाला किस स्तर पर होता है,आम आदमी भी समझ लेगा।

जे पी सेन्टर में घोटाले बाज़ी अवश्य हुई है।यदि  भजपा सरकार की जगह पुनः सपा सफर बनती तो जे पी सेन्टर का STIMATE पुनः 500 करोड़ बढ़ सकता था।

अब तो ऐसा लगता है कि घोटाले की जांच किसी बड़ी जांच एजेंसी से कराई जाए तो ही वास्तविक घोटाले बाजो की पकड़ हो सकती है।

 

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