ट्रिपल तलाक की कुप्रथा को मुगल काल तक में नहीं थी मान्यता! पढ़ें क्या थे नियम…

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ट्रिपल तलाक की हजार से अधिक साल पुरानी कुप्रथा को अमान्य, असंवैधानिक और गैरकानूनी करार दिया. इससे देश की 9 करोड़ मुस्लिम महिलाओं तो लंबे अरसे बाद न्याय मिला. ट्रिपल तलाक का समर्थन करने वाले मुस्लिम विद्वानों, मौलवियों और राजनेताओं ने इसे कुरान और मुस्लिम समाज का अभिन्न हिस्सा बताते हुए कहा था कि यह 1000 साल पुरानी प्रथा है, जिसे खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन यदि इतिहास पर नजर डालें, तो मामला कुछ और ही नजर आता है. आइए जानते हैं कि भारत में मुस्लिमों के शासन मतलब मुगल काल में तलाक को लेकर क्या प्रावधान थे…

विश्व के कई मुस्लिम देशों ने ट्रिपल तलाक को काफी पहले खत्म कर दिया था. यहां तक कि पाकिस्तान में भी यह अवैध है. मतलब इस मामले में हमारा मुस्लिम समाज काफी पिछड़ा हुआ दिख रहा है. ट्रिपल तलाक के समर्थकों ने सुप्रीम कोर्ट में इसके हजारों साल पुरानी परंपरा होने का तर्क दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में यह नहीं टिका. वैसे यदि भारत में मुगल शासन काल को लेकर इतिहास में जो विवरण मिलते हैं, उसके अनुसार उस काल में तलाक के बहुत कम मामले देखने को मिलते थे. यहां तक कि जहांगीर ने तो तलाक पर रोक ही लगा दी थी.

बीबीसी में लिखे अपने कॉलम में इतिहासकार प्रोफ़ेसर शिरीन मूस्वी ने लिखा है कि मुगलकाल के प्रसिद्ध इतिहासकार, अकबर के आलोचक और उनके समकालीन रहे अब्दुल क़ादिर बदायूनी ने 1595 में तलाक को बुरा चलन बताया था. इस मामले में उन्होंने भारतीय मुसलमानों की सराहना करते हुए कहा था कि यह अच्छी बात है कि भारतीय मुस्लिम इस प्रथा को पसंद नहीं करते. बदायूनी ने तो यहां तक कहा था कि भारतीय मुसलमान तलाक से इतनी नफरत करते हैं कि यदि उन्हें तलाकशुदा कहा जाए, तो वे मरने-मारने पर उतारू हो जाएंगे.

मुगलकालीन इतिहासकार अब्दुल क़ादिर बदायूनी की बातों से लगता है कि भारतीय मुस्लिम समाज मुगलकाल में अन्य मुस्लिम देशों से ज्यादा जागरूक था, क्योंकि अन्य देशों में तलाक की कुप्रथा जारी थी. इससे वर्तमान में ट्रिपल तलाक का समर्थन करने वालों की यह बात सिरे से खारिज हो जाती है कि यह हजारों साल पुरानी परंपरा है.

जहांगीर ने लगाई थी रोक

इतिहासकारों के अनुसार ‘मजलिस-ए-जहांगीरी’ में बादशाह जहांगीर ने तलाक को लेकर सख्त कदम उठाए थे. 1611 में जहांगीर ने एक आदेश जारी करते हुए कहा था कि बीवी की ग़ैर-जानकारी में शौहर द्वारा तलाक़ की घोषणा अवैध होगी.

यह थे निकाहनामे के नियम

मुगलकालीन इतिहासकारों की ओर से दिए गए अलग-अलग विवरणों का सार निकालें, तो ऐसा लगता है कि उस दौर में चार नियम प्रचलित थे, जिनका उल्लेख निकाहनामों में होता था-

1. मौजूदा बीवी के रहते शौहर दूसरी शादी नहीं करेगा
2. वह बीवी से मारपीट नहीं करेगा
3. वह बीवी से लंबे समय तक दूर नहीं रहेगा, इस दौरान उसे बीवी के गुजर बसर का इंतज़ाम करना होगा.
4. शौहर को पत्नी के रूप में किसी दासी को रखने का अधिकार नहीं होगा.

खास बात यह कि पहली तीन शर्तों के टूटने की स्थिति में, शादी को ख़त्म घोषित किया जा सकता था. हालांकि चौथी शर्त के संबंध में ये अधिकार बीवी के पास होता था कि वो उस दासी को ज़ब्त करने के बादआज़ाद कर दे या उसे बेच दे और शौहर से मिलने वाले मेहर के बदले ये राशि रख ले.

ये चार नियम या शर्तें अकबर के समय से लेकर औरंगज़ेब शासनकाल तक की किताबों और दस्तावेजों में मिलते हैं और इसलिए उस दौर में ये पूरी तरह स्थापित थे. लेकिन निकाहनामा या लिखित समझौता सम्पन्न और शिक्षित वर्ग का विशेषाधिकार होता था या ये चलन इसमें ज़्यादा था.

वैसे उस दौर में कानून और समझौते के इन मामलों के अलावा शाही परिवार को असीमित अधिकार हासिल थे, जो समय-समय पर नियमों में बदलाव करते रहते थे.

 

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