डेनमार्क में पहली बार महिला इमाम ने दी अजान

womenकोपेनहेगन। डेनमार्क में शुक्रवार का दिन ऐतिहासिक रहा। इस दिन पहली बार किसी महिला इमाम ने मस्जिद में अजान दी। कोपेनहेगन सिटी सेंटर स्ट्रीट स्थित मरियम मस्जिद में इस अजान के बाद 60 से अधिक महिलाओं ने प्रवेश किया। इनमें से ज्यादातर गैर मुस्लिम महिलाएं थीं।

खुद पढ़ा खुतबा
स्कैंडिनेवियाई मूल की शेरिन खानकन और सलीहा मैरी फेतह इस मस्जिद की इमाम हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शेरिन ने अजान दी और सलीहा ने ‘इस्लाम और मॉडर्न वल्र्ड में मुस्लिम महिलाएं’ मुद्दे पर खुतबा पढ़ा। मरियम मस्जिद वैसे तो अनौपचारिक रूप से फरवरी में खुल गई थी लेकिन, शुक्रवार को यहां पहली बार अजान दी गई। शुक्रवार को इस मस्जिद की ओपनिंग सेरेमनी थी।

महिला इमाम ही अदा करवाएंगी नमाज
– यह मस्जिद पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए खुली रहेगी लेकिन,शुक्रवार की नमाज सिर्फ महिला इमाम ही अदा करवाएंगी।
– 19वीं शताब्दी में चीन में हुई थी महिला इमाम बनाए जाने की शुरुआत।
– 2016 में लॉस एंजिलिस में महिला मस्जिद खोली गई।
– 2009 में पहली बार अमीना वदूद ने शुक्रवार की नमाज अदा करवाई थी।
– 2000 में कोपेनहेगन आ गई थीं सलीहा।
– बता दें कि कई मस्जिदों में महिलाओं के नमाज पढ़ने के लिए अलग जगह होती है। इनकी एंट्री मेन गेट से न होकर दूसरी जगह से होती है।

मस्जिद ने जारी किया छह पेज का घोषणापत्र
– मस्जिद में छह पेज का मैरिज चार्टर (घोषणापत्र) पेश किया गया। इसमें शादी के लिए चार नियमों का जिक्र है।

ये नियम हैं: व्यभिचार कोई विकल्प नहीं; महिलाओं को तलाक का अधिकार है; किसी भी तरह के मानसिक और शारीरिक अत्याचार पर निकाह रद्द कर दिया जाएगा और तलाक की कंडीशन में बच्चों को लेकर महिलाओं के पास समान अधिकार है।

अरब देशों की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं
– शेरिन खानकन ने बताया कि मस्जिद का मुख्य उद्देश्य धार्मिक संस्थानों में पुरुष वर्चस्वता को चुनौती देना है। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान, ईरान, यूरोप, तुर्की और अरब देशों से मस्जिद में महिला अजान को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं।

कई लोगों ने की फैसले की खिलाफत
शेरिन और सलीहा के लिए यह राह आसान नहीं थी। खानकन ने बताया कि इमाम बनने के लिए उनके परिवार ने काफी सपोर्ट किया हालांकि, कुछ दोस्त और रिश्तेदार उनके इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने बताया कि सीरियाई सरकार ने उनको काफी प्रताड़ित किया जिसके बाद उनका पूरा परिवार डेनमार्क आ गया।

– खानकम के पिता सीरियाई रिफ्यूजी हैं। सीरियाई गवर्नमेंट ने उन्हें काफी टॉर्चर किया, जिसके बाद वे डेनमार्क आ गए।
– उनकी क्रिश्चियन मां बतौर नर्स काम करने के लिए फिनलैंड से कोपेनहेगन आई थीं।
– उन्होंने बताया, “मैं अलग-अलग रिलिजन और कल्चर में पली-बढ़ी और मेरे इस फैसले के लिए यह काफी मददगार रहा।
– दमिश्क में एक साल तक मास्टर डिग्री की पढ़ाई के बाद वे 2000 में कोपेनहेगन आ गई थीं।

 

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