डोवाल ने पकड़ी चीन की दुखती रग, भारत के आगे झुकने को कर दिया मज़बूर

नई दिल्ली। तेज़ी से बढ़ती अपनी ताकत के बदौलत चीन, जिस तरह भारत को कमज़ोर करने में लगा था उस ‘साज़िश’ का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने जबरदस्त जवाब दिया है. डोभाल की बलोचिस्तान को लेकर आक्रमक रणनीति ने चीन को भारत के आगे झुकने पर मज़बूर किया है. डोभाल के इस नए पेंतरे में उलझे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अब मज़बूर होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी को गले लगाना पड़ा है.

सच ये है कि पिछले कुछ वर्षों से चीन बड़ी तेज़ी से पाकिस्तान के भीतर अपनी पैठ बढाकर भारत को अप्रत्यक्ष चुनौती दे रहा था. चीन ने अपना मेगा प्रोजेक्ट “सिल्क रुट” हाईवे, जानबूझकर पाक अधिकृत कश्मीर से निकाला जिसका भारत ने विरोध भी किया था. चीन अभी अपना दबाव बढ़ा ही रहा था कि डोभाल ने बलोचिस्तान में नया दांव चलकर चीन की दुखती रग पकड़ ली. यही वजह है कि हाल ही के कज़ाकिस्तान सम्मलेन में चीन के सुर बदले हुए थे. इस सम्मलेन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पुराने दोस्त नवाज़ शरीफ से कहीं ज्यादा मोदी को महत्व दिया.

पेंटागन की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान से चीन तक जाने वाली सिल्क रुट जिसे ‘चीन-पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर’ के नाम से भी जाना जाता है… अब चीन के लिए चुनौती बनी हुई है. चीन और पाकिस्तान के इस मेगा प्रोजेक्ट की लागत 3762 अरब रूपए बतायी जा रही है. इस प्रोजेक्ट के तहत चीन का ना सिर्फ पाकिस्तान के ग्वादार बंदरगाह पर कब्ज़ा हो जायेगा बल्कि आने वाले समय में चीन वहां 34 बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट भी लगाने की तैयारी कर रहा है. चीन के कोई 10 हज़ार इंजीनियर और कारीगर अरबों रूपए के इन प्रोजेक्ट्स में लगे हुए हैं. लेकिन मुश्किल ये है कि बंदरगाह से लेकर हाईवे तक इकनोमिक कॉरिडोर का एक बड़ा हिस्सा बलोचिस्तान से होकर गुजरता है. और बलोचिस्तान के हालात इस वक़्त ‘आज़ादी’ को लेकर बद से बदतर हुए जा रहे हैं.

आज़ादी की लड़ाई के ज्यादातर बड़े नेता भारत की मदद चाहते हैं. सार्वजनिक तौर पर इन नेताओं को मदद देने के लिए पहली बार भारत की तरफ से अजित डोभाल ने हाथ बढ़ाया था. यही नहीं इन नेताओं के साथ हो रही ज्यादती के बारे में भी भारत ने खुलकर पाकिस्तानी सेना के दमन का विरोध किया था. डोभाल की इस कूटनीति के चलते बलोचिस्तान में भारत के पक्ष में ऐसा माहौल बना कि चीन तक दंग रह गया. कुल मिलाकर स्थिति ये है कि खरबों डालर का चीन का प्रोजेक्ट आज बलोचिस्तान में फंसा हुआ है और बलोच नेताओं की चाबी डोभाल के पास है.

बलोचिस्तान में ‘डोभाल की नीति’ के प्रतिकार के लिए पाकिस्तान ने कई प्रयास किये लेकिन हर बार उसके हाथ निराशा लगी है. अब तो अमेरिकी एजेंसियां भी मानती हैं कि भारत के पूर्व नौ सेना कमांडर कुलभूषण जाधव को जिस तरह पाकिस्तान ने ईरान से अगवा कर उन्हें बलोचिस्तान में हिंसा फ़ैलाने का दोषी ठहराया है वो कदम बलोच मुद्दे को लेकर भारत पर दबाव बनाने के लिए उठाया गया था. लेकिन जल्दबाज़ी में पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI ने जाधव पर जिस तरह फ़र्ज़ी केस बनाया उसकी पोल अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में खुल गयी.

यानी डोवाल को पाकिस्तान के खिलाफ इस मोर्चे पर भी सफलता मिली. बलोच मुद्दे पर भारत को मनोवैज्ञानिक तौर पर हावी होता हुआ देखकर अब चीन ने अपनी रणनीति को बदला है. चीन को अहसास है कि अगर बलोचिस्तान और ग्वादर बंदरगाह में उसके खरबों के प्रोजेक्ट और संसाधन सही सलामत रहने है तो भारत से सीधे तौर पर उलझना उसके लिए सामरिक दृष्टि से गलत होगा. फिलहाल सच ये है कि अजित डोवाल को कश्मीर के हालात काबू करने में कामयाबी अब तक नहीं मिल पायी है लेकिन बलोचिस्तान को लेकर उनकी नीति चीन पर दबाव बढ़ाने में ज़रूर कामयाब हो रही है.

 

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