‘तीन तलाक पर पति को जेल नहीं, उसकी संपत्ति में हमें हिस्सेदारी मिले’

नई दिल्ली। मोदी सरकार ने तीन तलाक को जुर्म घोषित कर इसके लिए सजा मुकर्रर करने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली है. केंद्र सरकार ने गुरुवार को ‘द मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज एक्ट’ बिल लोकसभा में पेश किया. इस विधेयक को लेकर मुस्लिम संगठन नाराज हैं, तो मोदी सरकार इसे मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए ऐतिहासिक कदम बता रही है. मुस्लिम महिलाएं एक सुर में तीन तलाक की मुखालफत करती हैं, लेकिन पति को जेल जाते भी नहीं देखना चाहती है. लेकिन तीन तलाक पर पूरी तरह से पाबंदी लगे इसके लिए कानून बनाने की पक्ष में जरूर खड़ी नजर आ रही हैं.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढ़ी और दिल्ली के एनजीओ में काम कर रहीं उजमा परवीन कहती हैं, ‘ मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी के लिए सरकार नया कानून ला रही है, तो खुशी की बात है. सरकार कोमुस्लिम महिलाओं की मदद के लिए कानून बनाना चाहिए न कि मुश्किलें पैदा करने वाला. बिना विचार विमर्श के अगर कोई कानून लाया जा रहा है, तो वो सिर्फ थोपने जैसा है.’

उजमा परवीन ने कहा कि विधेयक में जिस तरह के प्रावधानों की बात सामने आ रही है, उसमें कई चीजों पर अपत्ति है. थर्ड पार्टी की शिकायत पर एक्शन की बात कही गई है. इसके अलावा कोई पति अगर तीन तलाक दे देता है, तो शादी खत्म नहीं होगी. लेकिन पति को सजा होगी. ऐसे कंडिशन में पत्नी और बच्चों की देखभाल कैसे होगी. सरकार अगर वाकई मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी चाहती है, तो ओपन चर्चा करने के बाद कानूनी अमलीजामा पहनाया जाए.

पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही नेहा फरहीन कहती है कि मुस्लिम महिलाओं के हक में तीन तलाक एक बुराई की तरह है. मुस्लिम समाज में छोटी-छोटी बातों पर लोग अपनी पत्नियों को तलाक दे रहे हैं. ऐसे में तीन तलाक पर कड़ा कानून बनाया जाना चाहिए, ताकि पूरी तरह से इस पर रोक लग सके. इसके अलावा महिलाओं को बराबरी का हक मिले, जिससे वो पूरे सम्मान के साथ समाज में जी सके.

हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्ट कारोबार कर रहीं राना खान कहती हैं, तीन तलाक इस्लाम का हिस्सा ही नहीं है. सरकार जो कानून बना रही है. इससे पति पत्नी के बीच तलाक के बाद जो सुलह की गुजाइंश रहती है, वो भी खत्म हो जाएगी. सरकार को हमारे शरीयत में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए. मुस्लिम महिलाओं के उत्थान के लिए सरकार कदम उठाए, न कि राजनीतिक लाभ के लिए.

उत्तर प्रदेश के ऊंचाहार की रहने वाली अफरोज जहां कहती हैं कि तीन तलाक शरीयत के खिलाफ है. इस पर पूरी तरह से पाबंदी लगनी चाहिए. इसके लिए कानून बनाया जाना चाहिए, लेकिन मुस्लिम समुदाय की महिलाओं और उलेमाओं से बातचीत करने के बाद मोदी सरकार कोई कदम उठाए.

रायबरेली की रहने वाली पेशे से टीचर सबीहा परवीन अंसारी कहती हैं कि तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी बर्बाद हो रही है. इस पर रोक लगाई जानी चाहिए. इसके लिए कानून बनाए जाना चाहिए, लेकिन शरीयत की रोशनी में हो न की शरीयत के खिलाफ.

नजीबाबाद की अतिकुनिशा कहती हैं कि तीन तलाक पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि इस्लाम भी इसे सही नहीं मानता है. कानून के बजाए सामाजिक जागरूकता के जरिए इस तरह की जो खामियां हैं, उन्हें दूर किया जाए. सरकार जो कानून ला रही है, उसमें तीन तलाक कोई देता है तो उसे जेल हो जाए. ऐसे में परिवार के सामने दिक्कतें खड़ी होंगी. सजा से बेहतर ये हैं कि पति की संपत्ति में पत्नी को हिस्सेदार बनाया जाए.

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से एमए कर रही सदफ जावेद कहती हैं कि तीन तलाक इस्लामिक शरीयत के खिलाफ है. मोदी सरकार जिस तरह से विधेयक पेश कर रही है, ये भी सही नहीं है. इस मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित सभी से चर्चा होनी चाहिए. जल्दबाजी में बिल पेश कर देने से समस्याएं हल होने की बजाए और जटिल हो जाएंगी.

 

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