‘तीन तलाक पर बने कानून, अगला नंबर बहुविवाह और हलाला का’

नई दिल्ली। ‘काजियों और मौलानाओं ने लंबे समय तक कुरान की गलत व्याख्या कर मुस्लिम समुदाय को बहकाया है. इस्लाम या कुरान में कभी भी महिलाओं को दोयम दर्जा नहीं दिया गया है. लेकिन गलत व्याख्या का प्रचार कर इन लोगों ने महिलाओं के साथ हो रही नाइंसाफी को रोकने की जगह उसे बढ़ावा दिया.’ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर कहती हैं अगर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारी निभाई होती तो औरतों को कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ता.

दरअसल 28 दिसंबर गुरुवार को मुस्लिम वुमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज बिल, 2017 लोकसभा में पेश होना है. ऐसे में हंगामा तो कटना ही है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस बिल का शुरू से ही विरोध कर रहा है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य सज्जाद नोमानी के अनुसार ट्रिपल तलाक के खिलाफ बिल लाने से पहले सभी संबंधित पक्षों से बातचीत नहीं की गई है. बोर्ड के दूसरे सदस्य मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर इस बिल का रिव्यू करने की गुजारिश करेंगे.

इस्लाम में मिले हकों से औरतों को मौलानाओं ने रखा महरूम

शाइस्ता अंबर कहती हैं, ‘कुरान में तलाक-ए-बिद्दत जैसा कोई कानून नहीं है. यानी एक बार में तीन तलाक कहकर तलाक लेने की प्रक्रिया का जिक्र कहीं नहीं है. तलाक लेने की बाकायदा एक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में तीन माह लगते हैं. इस अवधि को तुह्र कहते हैं. इस दौरान यह पक्का किया जाता है कि कहीं औरत गर्भवती तो नहीं. यह अवधि इसलिए भी रखी गई कि कहीं गुस्से या आवेग में आकर कोई फैसला न हो जाए. इसके बाद मुस्लिम धर्मगुरुओं के हस्तक्षेप और काउंसलिंग के बाद तलाक होता है.’

अंबर कहती हैं कि यह मजहब का हिस्सा नहीं बल्कि सामाजिक बुराई है. जिसे खत्म करने का जिम्मा समुदाय की जिम्मेदार संस्थाओं का होता है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यह बताए कि उसने कितनी बार इस तरह के तलाक को नाजायज ठहराया? यह भी बताए कि मुस्लिम समुदाय की औरतों को जागरूक करने के लिए कितनी बार मस्जिदों में सभाएं की गईं? इश्तिहार निकाले गए. मुस्लिम समुदाय में निकाह एक कांट्रेक्ट है यह मजहब का हिस्सा नहीं है. लेकिन लगातार इसे मजहब से जोड़कर मौलानाओं ने मुस्लिम मर्दों की मनमानी चलने दी.

1986 में शाह बानो मामले के बाद मेंटिनेंस एक्ट आया था, जिसमें वक्फ बोर्ड द्वारा तलाकशुदा औरतों को खाना खर्चा देने की बात कही गई थी. लेकिन औरतों को इसके बारे में पता ही नहीं है. यह काम ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का था कि वह इस अधिकार के बारे में इश्तिहार के जरिए, मस्जिदों में एनाउंसमेंट के जरिए इसका प्रचार करे. तो क्या ऐसा किया गया?

इस्लाम में यह भी कहा गया कि तलाक के लिए मिली पॉवर का दुरुपयोग करने पर कोड़ों की सजा है. लेकिन यह साबित करना होता है कि दुरुपयोग हुआ है तो फिर तलाक की पॉवर का बेजा इस्तेमाल कर औरतों को तलाक देने वाले कितने मर्दों को कोड़ों की सजा हुई? ज्यादातर औरतों को यह पता ही नहीं है. फोन पर, व्हाट्सअप पर, चिट्ठी के जरिए, पानी पर लिखकर तलाक देना हराम है. इस पर काजियों ने चुप्पी क्यों नहीं तोड़ी.

अभी तो और लंबी चलेगी लड़ाई

वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर कहती हैं, ट्रिपल तलाक पर कानून बनने के बाद भी यह लड़ाई जारी रहेगी. वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में डाली गई याचिका में ट्रिपल तलाक, हलाला और बहुविवाह पर रोक लगाने की मांग की गई थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक के अलावा बाकी दोनों मामलों को फिलहाल अभी नहीं छुआ है. लेकिन वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड ने तैयारी शुरू कर दी है हलाला और बहुविवाह के खिलाफ दोबारा याचिका दाखिल करने की.

क्या है हलाला?

शरीयत कानून में हलाला एक तरह से तीन तलाक देने के बाद शौहर के लिए हराम हो चुकी उसी बीवी को दोबारा हासिल करने का तरीका है. यानी तीन तलाक देने के बाद अगर फिर शौहर अपनी बीवी को वापस अपने साथ रखना चाहे तो पहले उस औरत का निकाह किसी दूसरे मर्द से करवाया जाता है. एक रात उसके साथ गुजराने के बाद औरत का दूसरा शौहर उसे तलाक दे देता है. और फिर  वह अपने पहले पति से निकाह कर लेती है. यह पूरी प्रक्रिया हलाला है.

बहुविवाह

शरीयत कानून मुस्लिम पुरुष को चार विवाह करने की इजाजत देता है. लेकिन इस इजाजत के पीछे जो शर्त है वह बेहद कठिन है. शाइस्ता अंबर कहती हैं, कुरान के अनुसार दूसरा विवाह तभी किया जा सकता है जब शौहर अपनी पहली पत्नी को बराबर हक दे सके. उसकी रजामंदी हासिल कर सके. जबरदस्ती हराम है. अगर दोनों औरतों को तराजू की नोंक की तरह इंसाफ न दे सको तो दूसरा विवाह करने पर रोक है. अंबर पूछती हैं क्या आज के जमाने में ऐसा करना मुमकिन है. बिल्कुल कुरान में इतनी कड़ी शर्तें लगाने के पीछे भी यह मकसद था कि बहुविवाह करने से पहले दस बार सोचा जाए. लेकिन क्या ऐसा होता है? इसलिए अपने आप में यह कड़ी शर्तें ही हमारी याचिका का आधार बनेंगी.

क्या है, प्रस्तावित ट्रिपल तलाक कानून?

कैबिनेट में 15 दिसंबर को मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल पास किया हुआ था. प्रस्तावित कानून के अनुसार एक बार में तीन तलाक देना गैर कानूनी होगा. जो व्यक्ति इस कानून का उल्लंघन करेगा उसे तीन साल की सजा का भी विधान किया गया है.

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button