तेजी से एकजुट होने वाले विपक्ष के लिए 2019 में बीजेपी को हराना क्यों ‘टेढ़ी खीर’ साबित होगा?

नई दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग आठ महीनों का वक्त बचा है. ऐसे में विपक्ष ब्रांड मोदी को टक्कर देने की तैयारियों में जुटा है. 2019 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को टक्कर देने के लिए विपक्षी पार्टीयों के बीच महागठबंधन की सुगबुगाहट तेज हो गई है. हाल ही में कर्नाटक के सीएम कुमार स्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मंच पर लगभग सभी विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने एक साथ आकर बेंगलूरु से दिल्ली में बैठे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी सहित देश को महागठबंधन की पहली तस्वीर दिखाई.

2019 से पहले देश के राजनीतिक घटनाक्रम को देखें तो ये बीजेपी के पक्ष में ज्यादा और विपक्ष के पक्ष में कम लगता है. बीजेपी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीएन) के उम्मीदवार ने राज्यसभा उप सभापति पद का चुनाव सदन में बहुमत का आंकड़ा ना होने के बाद भी जीत लिया. तीन बड़ी गैर-एनडीए पार्टी एआईएडीएमके, बीजेडी और टीआरएस ने एनडीए के पक्ष में वोटिंग करके ये जीत बेहद आसान बना दी.

यूं तो सदन में कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए और एनडीए दोनों के ही पास बहुमत के लिए जरुरी आंकड़ा नहीं था. एनडीए के पास 115 वोट और यूपीए के पास 113 वोट ही रहे लेकिन एनडीएन को उन पार्टियों ने जीत दिलाई जो इस गठबंधन का हिस्सा तक नहीं है, वहीं यूपीए के वोट मार्जिन को आप आदमी पार्टी और वीईएसआर कांग्रेस के वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा ना लेने का खामियाज़ा भुगतना पड़ा. ये बीजेपी के लिए बड़ी राजनीतिक औैर कूटनीतिक जीत मानी जा रही है. इसके साथ ही 2019 में एंटी बीजेपी महागठबंधन के प्रभाव को कमतर आंका जा रहा है. हालांकि अभी से 2019 के समीकरण और मूड को भांपना थोड़ी जल्दबाजी हो सकती है लेकिन मौजूदा वक्त की स्थिति महागठबंधन के लिए हल्की जान पड़ती है. सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

कांग्रेस का नेतृत्व और 2019 की जंग
एंटी बीजेपी गठबंधन राज्यों के लिए बेहतर साबित हो हुए हैं और आगे भी हो सकते हैं. गोरखपुर, फुलपुर और कैराना उपचुनाव इस बात को प्रमाणित भी करते हैं. लेकिन एक बात जो इन जीत में अहम रही है वो ये कि कहीं भी कांग्रेस के नाम पर महागठबंधन ने चुनाव नहीं जीता है. कांग्रेस नीत यूपीए की सहयोगी एनसीपी के नेता शरद पवार ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कांग्रेस अपना प्रभाव भारतीय राजनीति से खोती जा रही है.

कांग्रेस के सामने महागठबंधन के साथ ही कई तरह की नई परिस्थितियां उभरेंगी. कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय पार्टियों के आने से बीजेपी के सामने काउंटर पोलराइजेशन की स्थिति बनेगी. इसे ऐसे समझना होगा कि दक्षिण राज्य तमिलनाडु में कांग्रेस का डीएमके साथ गठबंधन है और एनडीए को उप सभापति चुनाव में सहयोग करने के बाद से एआईएडीएम के इस गठबंधन में शामिल होने की उम्मीदें तेज हो गई हैं. राज्य में ये दोनों पार्टी अपने-अपने मतदाताओं का ध्रुवीकरण करेंगी. वहीं उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा और कांग्रेस का साथ भी कुछ यही स्थिति बनाएगा.

धुर-विरोधी पार्टियों का संगम होगा महागठबंधन
महागठबंधन को लेकर सबसे बड़ा सवाल जो उठता रहा है वो है राज्य स्तर पर इनका एक दूसरे के विरोधी होने की छवि. एक ऐसा गठबंधन जिनमें वो पार्टियां साथ आएंगी जो अपने ही क्षेत्र में आमने – सामने हैं. पश्चिम बंगाल की ही बात करें तो यहां टीएमसी और लेफ्ट आमने-सामने है. स्थानीय स्तर पर इन दोनों ही पार्टियों की विचारधारा एक दूसरे से बेहद अलग है. ऐसा विपरीत विचारधाराओं वाला ये गठबंधन लंबी अवधि में छोटी पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकता है.

इसे समझने का दूसरा उदाहरण दिल्ली है . दिल्ली में अगर गैर बीजेपी गठबंधन की बात करें तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का नाम सबसे आगे आता है. अगर यहां कांग्रेस और आप एक साथ आते हैं और वर्तमान वक्त को देखते हुए कांग्रेस राज्य में अगर आप को आगे करके खुद बैकफुट पर आता है तो ये कांग्रेस का बड़ा नुकसान होगा. कांग्रेस के पीछे जाने से वह खुद को तीसरे नंबर की पार्टी घोषित कर देगी. ये बात भी याद रखनी होगी आप का उदय कांग्रेस के विरोध के साथ हुआ है और इनका साथा आना दोनों के लिए लॉन्ग-टर्म में कोई बेहतरीन विकल्प बनकर सामने नहीं आएगा.

एनडीए के नए और पुराने सहयोगियों का साथ

बीजेपी भी नए एनडीए पार्टनर तलाशने में जुटी हुई है. की नए राज्यों में बीजेपी नए साथियों के साथ की संभावना तलाश रही है. बीजेडी और टीआरएस बीजेपी के नए सहयोगी हो सकते हैं. अगर बीजेपी इन दोनों पार्टी के साथ आती है तो तेलंगाना और ओडीसा में एनडीए इस महागठबंधन को पीछे छोड़ सकती है.

टीआरएस और बीजेडी की एनडीए के साथ बढ़ती नज़दीकियां ज़ाहिर हैं. दोनों ही पार्टीयों के सांसदों ने विपक्ष के द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में हिस्सा नहीं लिया और उप सभापति चुनाव में बीजेडी और टीआरएस ने एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में वोट डाला. सबसे बड़ी मुसीबत पार्टी के सामने ये होगी कि बीजेपी का इस राज्यों में गठबंधन पार्टी में आंतरिक कलह को जन्म दे सकता है. अहर बीजेपी बीजेडी या टीआरएस से गठबंगधन करती है तो उसके स्थानीय नेताओं के कुछ त्याग करने होंगे जो पार्टी के भीरत असंतोष को जन्म दे सकता है.

वहीं दूसरी ओर एनडीए का हिस्सा शिवसेना लंबे वक्त से मोदी सरकार पर हमले कर रही है लेकिन हाल ही में नाराज़गी के बाद भी शिवसेना ने राज्यसभा उप सभापति के चुनाव में एनडीए के पक्ष में वोट डाला. इससे साफ होता है कि अभी शिवसेना बीजेपी का दामन छोड़ने के मूड में नहीं है. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि राज्य में अगर कांग्रेस और एनसीपी के बीच 2019 चुनाव पहले गठबंधन हो जाता है तो शिवसेना के लिए स्थिति काफी खतरनाक साबित हो सकती है. चुनाव में इस गठबंधन और बीजेपी से शिवसेना के वोटों को बड़ा नुकसान हो सकता है. हालांकि हाल ही में टीडीपी ने एनडीए का साथ छोड़ा है और साफ किया है कि 2019 में भी टीडीपी एनडीए का हाथ नहीं थामेगी.

उप सभापति चुनाव से जो तस्वीर उभरी

एनडीए और 2019 में संभावित सहयोगी

एआईएडीएम- तमिलनाडु में बन सकती है हिस्सा
बीजेडी- ओडीसा में बन सकती है हिस्सा
टीआरएस-तेलंगाना में बन सकती है हिस्सा
आईएनएलडी- हरियाणा में बन सकती है हिस्सा
जेडीयू- बिहार में सहयोगी
एनपीएफ- नागालैंड में सहयोगी
आरपीआई-महाराष्ट्र में सहयोगी
अकाली दल- पंजाब में सहयोगी
शिवसेना-महाराष्ट्र में सहयोगी
एसडीएफ-सिक्किम में सहयोगी

यूपीए और 2019 में संभावित सहयोगी

बीएसपी-यूपी में बन सकती है सहयोगी
सपा-यूपी में बन सकती है सहयोगी
सीपीआई- बंगाल में साथ आ सकती है
सीपीआई(एम)-बंगाल में साथ आ सकती है
टीएमसी- बंगाल में साथ आने की खबरें
डीएमके-तमिलनाडु में साथ आ सकती है
आईयूएमएल- गठबंधन का हिस्सा
केसीएम-गठबंधन का हिस्सा
जेडीएस- बिहार में गठबंधन का हिस्सा
आरजेडी- बिहार में गठबंधन का हिस्सा
टीडीपी- आंघ्र में बन सकती है सहयोगी

हालांकि इन मुद्दों के इतर इन बचे हुए महीनों में ये राजनीतिक पार्टियां, आंकड़े और गठबंधन को लेकर कई तरह के बदलाव होंगे. ऐसे में इतनी जल्दी 2019 का अनुमान लगाना थोड़ी बेईमानी होगी. हालांकि लोकसभा चुनाव के नजरिए से कई बड़े राज्यों में महागठबंधन की सूरत काफी साफ है. जैसे यूपी में कांग्रेस-सपा-बसपा का साथ आना, कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस का साथ और बिहार में आरजेडी और कांग्रेस की दोस्ती. लेकिन इन सबके बावजूद ये कह पाना कि 2019 चुनाव में ये महागठबंधन बीजेपी नीत एनडीए को हरा सकेगा, थोड़ा मुश्किल जरुर है लेकिन असंभव नहीं.

 

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