…..तो ‘कप्तान’ का हुआ पाकिस्तान !

नई दिल्ली/इस्लामाबाद। 25 मार्च, 1992. ऑस्ट्रेलिया का मेलबर्न. पाकिस्तान बनाम इंग्लैंड, वर्ल्ड कप फाइनल. बस ये कुछ चीजें हैं जो आज हर पाकिस्तानी एक बार फिर अपने जहन में याद कर रहा है. क्योंकि पाकिस्तान को इकलौता वर्ल्ड कप जिताने वाला और उनकी टीम को जीत का जज्बा सिखाने वाला कप्तान अब उनके मुल्क का वजीर-ए-आजम बनने की चौखट पर है.

जी, बुधवार को पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. अभी गिनती पूरी नहीं हुई है लेकिन इमरान बहुमत से दूर भी नहीं हैं. ऐसा शायद पहली बार ही होगा जब कोई अंतरराष्ट्रीय दर्जे का इतना बड़ा खिलाड़ी किसी देश का प्रमुख बनेगा. पाकिस्तान की आवाम ने एक बार फिर अपने कप्तान पर भरोसा दिखाया है.

1996 में राजनीति में कदम रखने वाले इमरान खान ने लगातार विपक्ष में आक्रामक राजनीति की. वह अपने देश में पॉपुलर तो पहले से ही थे जिसका उन्होंने राजनीतिक फायदा भी उठाया. लेकिन पिछले कुछ साल में जिस तरह से उन्होंने फ्रंट पर आकर सड़क की लड़ाई लड़ी उसी ने इमरान को प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार बना दिया.

इमरान खान ने साल 2014 में देशभर में नवाज शरीफ सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर प्रदर्शन किए थे और इस्तीफे की मांग की थी. इस दौरान इमरान खान अपने समर्थकों के साथ करीब 100 दिन से भी अधिक तक सड़कों पर जमे रहे और जबतक आश्वासन नहीं मिला इमरान नहीं हटे.

बीते 5 सालों से पीटीआई खैबर पख्तूनवा प्रांत में सरकार चला रही है और इस बार पूरे देश में किस्मत आजमा रही है. अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में इमरान खान सोशल मीडिया पर भी काफी चर्चित माने जाते हैं. इमरान खान गरीबों को घर, बिजली आपूर्ति, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति सुधारना और सरकार में भ्रष्टाचार पर कार्रवाई जैसे कुछ वादों के साथ चुनाव लड़ रहे हैं, जो पाकिस्तान की बदहाली की सबसे बड़ी वजहें हैं.

आंदोलन के अलावा इमरान ने जिस तरह कैंसर अस्पताल के लिए लंबी लड़ाई लड़ी उसने भी पाकिस्तानियों के दिलों में उनके लिए इज्जत और भी बढ़ा दी. चुनाव से ठीक पहले इमरान खान की पर्सनल जिंदगी से जुड़े कई खुलासे हुए लेकिन इसके बावजूद वह चुनाव प्रचार में लगे रहे. और जनता ने उन विवादों को भूलते हुए इमरान पर पूरा भरोसा जताया.

बड़ी सियासी चाल, 5 सीटों पर आजमाई किस्मत

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान इस बार देश के 5 अलग-अलग संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. पाक के पंजाब प्रांत से वह 3 सीटों पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इसके अलावा खैबर पख्तूनख्वा और सिंध प्रांत से भी एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं.

इमरान ने कराची (एनए-243), लाहौर (एनए-131), रावलपिंडी (एनए-61), बन्नू (एनए-26) और मियांवाली (एनए-95) से मैदान में ताल ठोक रखा है. माना जा रहा है कि उनके 5 जगहों से चुनाव लड़ने के पीछे देश के हर तरफ से अपने पक्ष में माहौल बनाना है जिससे उनके प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो जाए.

पहले भी कर चुके हैं ऐसा

ऐसा नहीं है कि इमरान पहली बार एक साथ इतने चुनाव लड़ रहे हैं. 2013 के आम चुनाव में इमरान 4 सीटों पर चुनाव लड़े थे और इस बार उन्होंने एक सीट बढ़ाते हुए कराची से भी वह चुनाव लड़ रहे हैं.

हालांकि 2013 के चुनाव में इमरान के लिए अनुभव अच्छा नहीं रहा था क्योंकि वह लाहौर, रावलपिंडी, पेशावर और मियांवाली से चुनाव लड़े थे, जिसमें लाहौर में उन्हें शिकस्त मिली थी और 3 में जीत हासिल हुई थी. लेकिन बाद में उन्होंने पेशावर और मियांवाली सीट छोड़ दी और उपचुनाव में उन्हें इन दोनों ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ गया.

पूरा क्रिकेट जगत कप्तान के साथ

एक ओर इमरान खान जनता के बीच अपना समर्थन बढ़ा रहे थे, तो वहीं उनके साथी क्रिकेटरों ने भी अपने फैंस से अपने कप्तान का साथ देने की अपील की. आजतक से बात करते हुए पूर्व पाकिस्तानी दिग्गज खिलाड़ी जावेद मियांदाद ने कहा कि इमरान ने हमें वर्ल्ड कप जितवाया. पिछले 15-20 साल में उन्होंने समाज के लिए काफी काम किया है, उनके द्वारा बनाया गया कैंसर अस्पताल का फायदा पूरे देश को हो रहा है. वह हमारे मुल्क के बढ़िया प्रधानमंत्री साबित होंगे.

सिर्फ जावेद मियांदाद ही नहीं पाकिस्तान क्रिकेट टीम मे इमरान खान के पुराने साथी रहे वसीम अकरम और वकार यूनुस ने भी पीटीआई का समर्थन किया है. सभी क्रिकेटरों ने सोशल मीडिया के जरिए इमरान के लिए समर्थन मांगा.

इमरान के सिर सेना का हाथ

चुनावों में इमरान की जीत के पीछे सेना का भी हाथ बताया जा रहा है. लगातार ऐसा कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना की पहली पसंद इमरान खान ही हैं, इसलिए सेना इमरान को जीताने के लिए पूरा जोर लगा रही है. पाकिस्तान सेना नहीं चाहती कि कोई स्थ‍िर नागरिक सरकार सत्ता में आए, क्योंकि इससे प्रशासन पर उसका प्रभाव कम होगा. ऐसे में वह इमरान खान की पार्टी को बढ़ावा दे रही है. इमरान खान की सोच सेना की सोच से काफी मिलती जुलती है.

इमरान खान आतंकी ग्रुपों के साथ बातचीत का रास्ता अपनाने की सोच रखते हैं. साथ ही कट्टरपंथी संस्थाओं और आतंकी संगठन के साथ म‍लिकर चलने में विश्वास रखते हैं. ऐसे में कई बार विपक्षी उनको तालिबानी खान कहकर भी विरोध करते हैं.

पाकिस्तानी सेना इसलिए भी इमरान पर दांव खेल रही है क्योंकि पूर्व में नवाज शरीफ की पार्टी (पीएमएल-एन)  और पाकिस्तान पिपल्स पार्टी दोनों ही भारत के साथ रिश्ते सुधारने पर जोर दे चुके हैं.

 

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