दरअसल, ये है ‘गीता’ की वतन वापसी का असली मकसद !

pandit-jiअरुणेश कुमार शर्मा

गीता वतन वापस आ गई है। पाकिस्तान से भव्य विदाई के बाद भारत की इस मूक बधिर बेटी का यहां भी  अभूतपूर्व स्वागत हुआ है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अगवानी की और पलक पांवड़े बिछाए, तो शाम तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संग ‘बजरंगी भाईजान’ के एक पिक्चर से मिलती जुलती उसकी तस्वीर पीआईबी की वेबसाइट जारी हो गई। प्रधानमंत्री ने गीता का मनोबल बढ़ाया। उनका यह भरोसा गीता के लिए 15 सालों के वतन और अपनों से बिछोह पर हल्की सी मरहम सरीखा है। यह उसके मनोविज्ञान को सकारात्मकता से भरता है। उसके चेहरे की चमक और प्रधानमंत्री के कंधे से सटकर लगभग उनके पीछे जाकर छिप जाने  के भाव की यह तस्वीर उसके आत्मविश्वास को बढ़ाती है।

Modi-geeta

हालांकि अभी गीता का असली इम्तिहान बाकी है। और शायद केंद्र सरकार का भी, जिसने जल्दबाजी में गीता की वतन वापसी कराई। गीता को वतन तो मिल गया, लेकिन अब उसके द्वारा माता-पिता को पहचानने से इनकार करने के बाद अब उसके परिजनों का मामला पेंचीदा नजर आने लगा है।  प्रश्न यह उठता है कि जब गीता के पाकिस्तान में रहते हुए ही डीएनए टेस्ट सैंपल की जांच हो सकती थी और उसके जैविक माता-पिता के पुख्ता प्रमाण जुटाए जा सकते थे तो आखिर केंद्र सरकार ने उसकी वापसी में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई?

सीधे तौर पर इसका कारण बिहार विधानसभा चुनाव को माना जा सकता है। बिहार में तीसरे चरण का मतदान 28 अक्टूबर को है। संभवत: यह राज्य चुनाव का सबसे अहम् पड़ाव है। इसमें 50 सीटों के लिए मतदान होना है। करीब 1.45 करोड़ मतदाता हैं।  इसमें बिहार राज्य का मध्यक्षेत्र आता है। इसमें राजधानी पटना सहित सारण, वैशाली, नालंदा,  भोजपुर और बक्सर जिले शामिल हैं। यह क्षेत्र राज्य का प्रमुख भूभाग माना जा सकता है। यहां महागठबंधन के दोनों मुख्य घटक जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल का अच्छा खासा प्रभाव है।

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव की किस्मत का फैसला भी इसी चरण में होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए भी  यह क्षेत्र अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस चरण में भाजपा के कई प्रमुख चेहरे भी मैदान में हैं।

भाजपा को सर्वाधिक उम्मीद भी इसी क्षेत्र से है। चाहे जंगलराज का नारा हो या आरक्षण बनाए रखने की बात पर मोदी जी का बार-बार जोर देना। इनका सर्वाधिक प्रभाव इन्हीं क्षेत्रों में भुनाने की कोशिश है। लालू यादव ने भी जिस बैकवर्ड और फॉरवर्ड की लड़ाई के नारे को उछाला वह भी  संभवत: इसी क्षेत्र के लिए सर्वाधिक है। इतना ही नहीं युवा आबादी से उम्मीद साधे बैठे मोदी को इसी क्षेत्र में ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ से प्रेरित युवाओं की मतदाता फौज नजर आती है। इन सबके लिए युवा और मूक बधिर गीता जो किशोरवय में धोखे से पाकिस्तान पहुंच गई थी, की वापसी एक मार्मिक अपील सी प्रतीत होती है।

Geeta, Sushma Swaraj

इधर, काबिले गौर बात यह भी  है कि बिहार के सीमाई क्षेत्र से सटे जिलों में भी गीता की वापसी एक उद्वेलन पैदा कर सकती है। वहां के लोगों को मोदी जी का यह अप्रत्यक्ष आश्वासन सी देती नजर आती है। इनके भी इतर, मोहन भागवत के आरक्षण पर पुनर्विचार संबंधी बयान, गौवंश की हत्या और गौ मांस आरक्षण की बहस, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक गांव बिसाहड़ा (दादरी) में साम्प्रदायिक सद्भाव  को चुनौती देने वाली इखलाक अहमद की भीड़ द्वारा हत्या की घटना और महंगाई जैसे मुद्दों के बीच सहज खुशी भरने वाली गीता की वतन वापसी की हर एक मन को सुकून देती है।

मोदी जी और बिहार चुनाव भाजपाई शुभचिंतक भी यही चाहते हैं कि इस तीसरे अहम चरण में और शेष रहे दो चरणों में जनता जब वोट देने जाए तो उसकी आंखों में गीता का मासूमियत से भरा चेहरा नजर में हो।  वह ज्वलंत मुद्दों से हट सके। सहजता से वोट कर सके। इसे प्रधानमंत्री मोदी ने बाद में ट्वीट से स्पष्ट भी किया। यही नहीं उन्होंने यह लिखकर कि , तुम्हारी (गीता) घर वापसी पर बहुत अच्छा लग रहा है। तुम्हारे साथ आज समय गुजारना वाकई बहुत अच्छा रहा। उन्होंने गीता को आश्वासन दिया कि उसके परिवार का पता लगाने की हर संभव कोशिश की जाएगी और उसका पूरा ख्याल रखा जाएगा। भेंट के दौरान पीएम मोदी ने कहा भी कि पूरा भारत तुम्हारा ख्याल रखेगा।

 

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