दलित-पिछड़ों संग सवर्णों को थामने में जुटी बीजेपी

2017bjpwww.tahalkaexpress.com लखनऊ। अमूमन ब्राह्मण और वैश्यों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी की राजनीति के केंद्र में इस समय पिछड़ा और दलित वोट बैंक है। आंबेडकर प्रेम से लेकर पिछड़ी जाति से प्रदेश अध्यक्ष तक इसी की कड़ी बताई जा रही है। मगर इस कवायद में परंपरागत वोट झोली से खिसक न जाए, इसकी चिंता पार्टी को सताने लगी है। यही वजह है कि जिलों की कमान सौंपते समय सवर्णों को समुचित भागीदारी देने की कोशिश की गई है। बीजेपी के जिलाध्यक्षों में 60 फीसदी से अधिक सवर्ण हैं।

संगठनात्मक लिहाज से बीजेपी के जिलों की संख्या बढ़कर 92 हो गई है जो कि पहले 90 हुआ करती थी। कानपुर और इलाहाबाद में एक-एक नए जिले जोड़े गए हैं। जनवरी से घोषित किए जा रहे जिलाध्यक्षों के नाम की कड़ी बुधवार को आखिरी साल जिलों की घोषणा के साथ पूरी हो गई है।

92 जिलों में करीब 32 की कमान ब्राह्मणों को सौंपी गई है। 15 जिलों में वैश्य अध्यक्ष हैं जबकि 10 जिलों में अध्यक्ष ठाकुर हैं। ऐसे में करीब दो-तिहाई जिलों में अगड़ों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। वहीं, करीब 35 जिलों में ओबीसी और एससी नेताओं को बीजेपी ने अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी है।
मिशन 40+ पर नजर:
बीजेपी के रणनीतिकारों की नजर विधानसभा चुनाव में बहुमत पाने पर है। यूपी में 29 से 30 फीसदी वोट बटोरकर इसे पाया जा सकता है। ऐसे में बीजेपी की नजर करीब 40% वोटों के मिशन के साथ चुनावी अभियान में उतरने की है। इसके लिए सवर्ण वोटों की मजबूत जमीन के साथ, अति पिछड़ा और दलित वोटों में फुटकर हिस्सेदारी की रणनीति होगी।

अगर इसमें 30% वोट भी खाते में आ गए तो बीजेपी का सत्ता सुख का ख्वाब पूरा हो सकता है। प्रदेश प्रवक्ता डॉ़ चंद्रमोहन का कहना है कि ‘सबका साथ सबका विकास’ बीजेपी का मूल सिद्धांत है। इसलिए संगठन से लेकर सरकार और योजनाओं में हम सभी वर्गों की भागीदारी को लेकर सजग हैं।

क्षेत्रीय संतुलन का भी ध्यान:
जिलों का मुखिया तय करते समय क्षेत्रीय संतुलन पर भी ध्यान रखा गया है। बुंदेलखंड में जहां सवर्णों की तूती बोलती थी, वहां इस बार पिछड़ों और दलितों को भी तरजीह मिली है। यहां बीजेपी के पास विधानसभा की 19 में से महज एक सीट है। पिछड़ा और दलित वोट बुंदेलखंड में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए बीजेपी ने इस बार जिलाध्यक्षों के जरिए इस संतुलन को साधने की कवायद शुरू की है। चित्रकूट का जिलाध्यक्ष जहां पहली बार दलित को बनाया गया है, वहीं बांदा की कमान भी पिछड़ी जाति के नेता को दी गई है।

 

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