दिल्ली का बॉस कौन? संवैधानिक बेंच में 10 अक्टूबर से सुनवाई
नई दिल्ली। दिल्ली का प्रशासनिक बॉस कौन है इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुनवाई करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच 10 अक्टूबर से 5 महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करने जा रही है। इसमें दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार का मामला भी शामिल है जिसके तहत यह तय होगा कि दिल्ली का प्रशासनिक चीफ कौन है। इसके अलावा इच्छामृत्यु से सबंधित मामले की सुनवाई भी होने वाली है। कुल 5 मामले हैं जिनकी सुनवाई संवैधानिक बेंच 10 अक्टूबर से करने जा रही है।
दिल्ली सरकार बनाम केंद्र
पिछले दिनों दिल्ली सरकार के वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम और इंदिरा जय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के सामने यह मामला उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कावेरी जल विवाद मामले की सुनवाई खत्म होते ही इस अपील पर विचार के लिए तारीख तय की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई को दिल्ली सरकार को आश्वासन दिया था कि वह उनकी उस याचिका पर सुनवाई के लिए संवैधानिक बेंच के गठन पर विचार करेगा जिसमें हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है।
पिछले साल 4 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राजधानी दिल्ली अभी भी यूनियन टेरिटेरी है और संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत विशेष प्रावधान किया गया है और इस तरह से राजधानी दिल्ली में एलजी ऐडमिनिस्ट्रेटर हैं। दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान 2 फरवरी को दिल्ली सरकार ने दलील दी थी कि विधानसभा के दायरे में आने वाले मामलों के लिए उसके पास विशेष शासकीय शक्तियां हैं और इसमें केंद्र, राष्ट्रपति और राज्यपाल हस्तक्षेप नहीं कर सकते। इसके बाद मामले को संवैधानिक बेंच के लिए रेफर कर दिया गया था।
कॉमन कॉज बनाम भारत सरकार
इच्छामृत्यु का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु मामले को लीगलाइज्ड किए जाने की मांग के मुद्दे को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 25 फरवरी 2015 को पैसिव यूसनेजिया (Passive Euthanasia) यानी इच्छा मृत्यु से संबंधित मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो मरीज मरणासन्न अवस्था में हैं उनके मेडिकल सपॉर्ट वापस लेने के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं। यह मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है और देश में एक समान लॉ बनाने के लिए इसे कांस्टिट्यूशनल बेंच को रेफर किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम की अगुआई वाली बेंच ने इस मामले को संवैधानिक पीठ को रेफर करते हुए कहा था कि इस मामले में लॉ में स्पष्ट व्याख्या होना जरूरी है और ऐसे में इसे संवैधानिक बेंच को रेफर किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एस. के. सिंह की बेंच ने इस मामले को संवैधानिक बेंच को भेजते हुए कहा था कि कोर्ट इस मामले में तमाम पहलुओं को देखेगी और फिर इस बारे में गाइडलाइंस बनाए जाने के बारे में आखिरी फैसला लेगी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की गई थी। संवैधानिक बेंच पहले के उस आदेश पर भी रिव्यू करेगी जिसमें मेडिसिन के जरिए जान लेने के ऐक्टिव यूसनेजिया का आग्रह खारिज किया गया था। लाइलाज बीमारी से पीड़ित शख्स द्वारा मेडिकल उपकरणों की मदद से जीवन को लंबा खींचने से इनकार कर इच्छा मृत्यु की अनुमति देने के सवाल पर अब सुप्रीम कोर्ट का संवैधानिक बेंच फैसला लेगा।
इस मामले में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि लाइलाज बीमारी से ग्रसित शख्स को मेडिकल उपकरणों की सहायता से जिंदा रखने के बजाय उसे इच्छा मृत्यु दिया जाना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस अर्जी का विरोध करते हुए कहा था कि यह आत्महत्या के समान होगा और भारत देश में इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।
3 अन्य मामले भी
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच कल्पना मेहता बनाम भारत सरकार, स्टेट ऑफ झारखंड बनाम हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी और नैशनल इंश्योरेंस कंपनी बनाम पुष्पा और अन्य से संबंधित मामले की सुनवाई करेगी।
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