दिल्ली दंगों का आरोपित फैसल फारूक निकला मौलाना साद का बेहद करीबी, चार्जशीट में सामने आई दोनों के बीच कनेक्शन की बात

नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस द्वारा पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के संबंध में दायर चार्जशीट में एक और खुलासा हुआ है। जहाँ विवादास्पद इस्लामिक मौलवी और निजामुद्दीन मरकज का मास्टरमाइंड मौलाना साद दिल्ली दंगों के आरोपित राजधानी स्कूल के मालिक फैसल फारूक का बेहद करीबी निकला है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, चार्जशीट में तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना का नाम पहली बार लिया गया है। उसमें यह भी कहा गया कि, जहाँ एक तरफ मौलाना साद ने तबलीगी जमात के सत्ता को हासिल किया। वहीं राजधानी स्कूल के मालिक फैसल फारूक और हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपित ने पूर्वोत्तर दिल्ली में अपने रियल एस्टेट अधिग्रहण को भी बढ़ाया था।

चार्जशीट में मीडिएटर के रूप में मुस्तफाबाद के आप (APP) विधायक हाजी यूनुस का भी उल्लेख किया गया है।

जमाती मुखिया मौलाना साद मार्च में कोरोना वायरस के शुरुआती दौर में चर्चा में आया था। जब दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज़ में उसने तबलीगी जमातियों के लिए मजहबी कार्यक्रम का आयोजन किया था। जिसके बाद बड़ी तादाद में वहाँ से कोरोना वायरस संक्रमितों को निकाला गया था। जिसके बाद अब आरोप है कि उसका संबंध दिल्ली दंगों के मास्टरमाइंड फैसल फारूक से भी है।

चार्जशीट में 2014 में साद के मरकज की सत्ता में आने के बाद फारूक और उनके पिता द्वारा खरीदी गई संपत्तियों की एक सूची का उल्लेख किया गया है। जिसमें लिखा है, “मौलाना साद 2014 में तब्लीगी जमात में सत्ता में आए। फ़ारूक़ मरकज़ आने वाले नियमित प्रतिभागियों में से एक है। इसके साथ ही वह तबलीगी जमात के अब्दुल अलीम के बेहद करीबी भी है। वहीं अब्दुल अलीम मौलाना साद का खास सहयोगी था, जो उससे सीधे संपर्क में था।”

चार्जशीट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली दंगों में तबलीगी जमात से जुड़े संबंधों को मद्देनजर रखते हुए आगे की जाँच की जा रही है। इस बीच, आम आदमी पार्टी के विधायक यूनुस ने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज कर दिया है। और यह भी कहा है कि दिल्ली पुलिस द्वारा अभी तक उस पर लगाए गए आरोपो को साबित नहीं किया गया हैं।

मौलाना साद और फैसला फारूक का कनेक्शन

गौरतलब है कि राजधानी स्कूल के मालिक फैजल फारुख से पूछताछ के लिए कड़कड़डूमा कोर्ट ने पुलिस को एक दिन का रिमांड सोमवार (जुलाई 6, 2020) को दे दिया है। हालाँकि, इससे पहले मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने फारुख का पुलिस रिमांड देने से इनकार कर दिया था।

पुलिस ने रिमांड माँगते हुए कहा था कि आरोपित से यह पूछताछ करनी है कि दंगों में बड़ी गुलेल को राजधानी स्कूल की छत पर कैसे लगाया गया और इस गुलेल का प्रयोग इलाके में आगजनी के लिए कैसे किया गया।

करीब डेढ़ घंटे दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि इस मामले की जाँच जरुरी है और पुलिस के पास जाँच के लिए एक दिन का ही हिरासत लेने का अधिकार बचा है। उसके बाद कोर्ट ने फैसल फारुख को एक दिन की पुलिस हिरासत में भेजने का आदेश दिया था।

कथित तौर पर दिल्ली पुलिस ने अदालत में दायर चार्जशीट में फैजल फारुख को एक मुख्य साजिशकर्ता के रूप चिन्हित करते हुए कहा था कि जब पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे हो रहे थे, उस समय वो तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद के करीबी अब्दुल अलीम के संपर्क में था।

दंगे के दौरान फैजल फारुख के स्कूल की छत पर एक बड़ा गुलेल लगाया गया था। इसकी मदद से हिंदुओं और उनकी संपत्तियों और पेट्रोल बम से निशाना बनाया गया था। दंगों में इस स्कूल को कोई नुकसान नहीं पहुॅंचा था। लेकिन इसके ठीक बगल में स्थित डीआरपी पब्लिक स्कूल तबाह हो गया था। पुलिस को राजधानी स्कूल की छत की चारदीवारी पर लगाई गई गुलेल और अन्य ज्वलनशील पदार्थ बरामद हुए थे।

जाँच के दौरान यह पाया गया था कि हिंसा बड़ी साजिश के तहत हुई और राजधानी स्कूल का मालिक फैजल फारुख हिंसा के ठीक पहले पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के कई नेताओं, पिंजरा तोड़ ग्रुप, निज़ामुद्दीन मरकज़, जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी और देवबंद के कई मौलवियों-आलिमों के संपर्क में था। उसके मोबाइल से इस बात के सबूत मिले हैं।

चार्जशीट में अल हिन्द हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर एमए अनवर का नाम भी शामिल

बता दे इससे पहले दिल्ली में फरवरी में हुए हिंदू विरोधी दंगे के दौरान 20 वर्षीय दिलबर नेगी की हत्या मामले में दाखिल चार्जशीट से नया खुलासा हुआ था। इसमें मुस्तफाबाद में हुए दंगों का मास्टरमाइंड डॉक्टर एमए अनवर को भी बताया गया था।

पुलिस द्वारा दायर आरोप-पत्र के अनुसार फारुकिया मस्जिद में होने वाले विरोध-प्रदर्शन के आयोजक अरशद प्रधान और अल हिन्द हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर एमए अनवर थे। जिसमें दंगाइयों की भीड़ ने दिलबर को तलवार से काटने के बाद जलते हुए घर में आग के हवाले कर दिया था।

15 जनवरी के बाद से ही फारुकिया मस्जिद से कई वक्ताओं ने मुसलमानों को उकसाना शुरू कर दिया था। यहाँ पर अवैध रूप से CAA और NRC का विरोध चल रहा था, जिसमें अलग-अलग तारीख में भाषण देकर मुसलमानों को यह कहा जाता था कि NRC लागू होने के बाद उन्हें नागरिकता नहीं दी जाएगी, उन्हें डिटेंशन कैंप में डाल दिया जाएगा।

 

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