देश की पहली सबसे बड़ी शवयात्रा थी ये, दस लाख लोग चल रहे थे साथ (2 अक्टूबर: महात्मा गांधी की जयंती पर विशेष)

gandhi1तहलका एक्सप्रेस
नई दिल्ली। इसे आजाद भारत की सबसे बड़ी शव यात्रा कहा गया था। महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार 31 जनवरी 1948 को दिल्ली में यमुना किनारे हुआ था। गांधीजी छोटे बेटे ने एक साक्षात्कार में बताया था कि दस लाख लोग साथ चल रहे थे और करीब 15 लाख लोग रास्ते में खड़े थे। 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती है।
गांधीजी की हत्या की खबर जैसे ही लोगों को मालूम चली, बिड़ला हाउस के सामने लोगों की भीड़ उमड़ने लगी। सड़कों पर आम लोगों का हुजूम उमड़ने लगा। लोग नारे लगाते हुए गांधीजी के दर्शन की मांग करने लगे। शव को किसी तरह बिड़ला हाउस की छत पर रख दिया गया और उस पर रोशनी डाली गई, जिससे लोग बापू के अंतिम दर्शन कर लें। 31 की सुबह एक बार फिर ऐसा ही किया गया। गांधीजी के तीसरे पुत्र रामदास 11 बजे हवाई जहाज से नागपुर से दिल्ली आए। उनके आने के थोड़ी ही देर बाद अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हो गई। सभी धार्मिक कर्म के बाद अर्थी पर तिरंगा झंडा डाल दिया गया था।
gandhi2रात में तैयार कर दिया था वाहन
15-हंडरवेट सैनिक हथियार-गाड़ी के फ्रेम पर एक नया ढांचा खड़ा कर दिया गया था, ताकि खुली अर्थी पर रखा हुआ शव सभी को दिख सके। शवयात्रा जैसे ही शुरू हुई लोग चीख-चीख कर रोने लगे। देश की तीनों सेनाओं के दो सौ जवान चार मोटे रस्सों से गाड़ी को खींच रहे थे। एक छोटा सैनिक अफसर मोटर के चक्के पर बैठा। नेहरू, पटेल, कुछ अन्य नेता तथा गांधीजी के कुछ युवा साथी इस वाहन पर सवार थे। शवयात्रा के संचालक मेजर जनरल राय बूचर थे। यह अंग्रेज थे, जिन्हें भारत सरकार ने आजादी के बाद अपनी सेना का प्रथम प्रधान सेनापति नियुक्त किया था।
gandhi3सबा चार बजे पहुंचा जमुना किनारे
बिड़ला भवन से दो मील लंबा जुलूस पौने बारह बजे रवाना हुआ। भीड़ के बीच एक-एक इंच आगे बढ़ता हुआ करीब सबा चार बजे जमुना किनारे पहुंचा। पंद्रह लाख जनता जुलूस के साथ थी और दस लाख दर्शक थे। कई लोग पेड़ और पोल पर चढ़े हुए थे। तीन डे कोटा हवाई जहाज जुलूस के ऊपर उड़ रहे थे। ये सलामी देने के लिए नीचे आते और गुलाब की पंखुडिय़ां बरसा जाते थे। चार हजार सैनिक, एक हजार वायु सैनिक, एक हजार पुलिस के सिपाही और सैनिक रंगबिरंगी वर्दियां पहने हुए अर्थी के आगे और पीछे चल रहे थे। लार्ड माउंटबेटन के अंगरक्षक लाल और सफेद झंडियां ऊंची किए हुए थे।
gandhi4श्मशान घाट पर सुबह से जमा हो गई थी भीड़
जमुना किनारे बने श्मशान घाट पर दस लाख लोग सुबह से ही आ गए थे। सभी लोग सफेद कपड़े पहने हुए थे। नदी से सौ फीट दूर नए बनाए गए चबूतरे पर धूप छिड़की हुई चंदन की लकड़ियां जमाई हुई थीं। पौने पांच बजे रामदास ने अपने पिता की चिता में अगिन दी। भीड़ बाढ़ की तरह चिता की ओर बढ़ी और उसने सेना के घेरे को तोड़ दिया। बमुश्किल लोगों को नियंत्रित किया गया।
gandhi5चिता पर हुए भजन
चिता चौदह घंटे तक जलती रही। सारे समय में भजन गाए जाते रहे और पूरी गीता का पाठ किया गया। सत्ताईस घंटे बाद, जब आखिरी अंगारे ठंडे पड़ गए, तब पंडितों, सरकारी पदाधिकारियों, मित्रों तथा परिवार के लोगों ने चिता के चारों ओर पहरा लगे हुए तार के बाड़े के भीतर विशेष प्रार्थना की और भस्मी तथा अस्थियों के वे टुकड़े जिन्हें आग जला नहीं पाई थी, एकत्र किए। भस्मी को थेलों में भरकर हाथ कते सूत के थैले में डाल दिया गया। भस्मी में एक गोली निकली। अस्थियों पर जमुना-जल छिड़ककर उन्हें तांबे के घड़े में बंद कर दिया गया। बाद में इनका इलाहाबाद में संगम में विर्सजन किया गया।
 

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