दो हफ्ते पहले अमिताभ बच्चन एक्सप्रेस के कटघरे में थे…अब एक्सप्रेस के चीफ गेस्ट हैं

84 साल से देश की दमदार आवाज़ बना इंडियन एक्सप्रेस अब अपनी धार खोते हुए साफ दिख रहा है. जिस एक्सप्रेस ने आजादी से लेकर आपातकालीन की लड़ाई अपने बहादुर कलम से लड़ी थी उस कलम की रोशिनी  आज अमिताभ बच्चन से लेकर अमित शाह जैसों के कदमो में गिरवी रखकर सिमटती दिख रही है.

बिग बी पर मेहरबान हुआ जर्नलिज्म ऑफ़ करेज 

6  नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस ने अमिताभ बच्चन के विदेश में बैंक खातों का खुलासा किया था और दो हफ्ते बाद बच्चन को मुंबई के अपने समारोह में विशेष अतिथि बना लिया. यानी इंडियन एक्सप्रेस ने एक इवेंट की खातिर, खुद अपनी खबर के नैतिक मूल्य का सौदा कर लिया. एक्सप्रेस के दफ्तर में नौजवान पत्रकार हैरान थे कि जिस अमिताभ बच्चन के कथित कालेधन का खुलासा करके एक्सप्रेस ने कुछ साख बटोरी थी उसी साख को एक पखवाड़े के भीतर ही तार तार कर दिया.

बेटे जयंत सिन्हा के खुलासे पर  बाप यशवंत के गले को दबा दिया 

यही नहीं एक्सप्रेस ने कालेधन के खुलासे में पीएम नरेंद्र मोदी के मंत्री जयंत सिन्हा के दस्तावेज़ भी सार्वजनिक किये थे. कुछ दिन बाद जयंत के पिता यशवंत सिन्हा ने जब पटना में एक्सप्रेस की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनके बेटे की जांच होनी चाहिए तो इतनी अहम खबर को एक्सप्रेस ने अपने हाथों दफ़न कर दिया. हैरत की बात ये है कि यशवंत सिन्हा के इसी बयान को टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने पहले पेज पर बैनर हैडलाइन में  जगह दी थी.इंडिया संवाद ने इस अनहोनी पर जब एक्सप्रेस के एक वरिष्ठ पत्रकार से पूछा कि उन्होंने अपनी ही खबर का फॉलो अप क्यों नहीं किया तो उन्होंने जवाब  दिया ,” हमारे रिपोर्टर ने पटना से खबर भेजी थी. लेकिन फिर भी ये खबर पहले पेज पर नहीं ली गयी. इस खबर को दूसरा रंग देकर अंदर के पन्नो में दबाया गया. कमाल की बात है कि यशवंत सिन्हा के इस अहम बयान..’ मेरे बेटे की जांच हो’  को अंदर के पेज  में हैडलाइन या सब हैडिंग के तौर पर भी नहीं लिया गया. शायद रामनाथ गोयनका की आत्मा पर ये बेशर्मी का सबसे बड़ा हमला था, ”

क्या  मैनेजमेंट नहीं चाहता  कि सत्ता से संबंध ख़राब हो ?

सूत्रों के मुताबिक अमिताभ बच्चन और जयंत सिन्हा के पैराडाइस पेपर्स में जब नाम आये तो ये खबर देखकर प्रबंधन खुश नहीं था. ” क्यूंकि हमारा खोजी पत्रकारों के अंतराष्ट्रीय संगठन , इंटरनैशनल कन्सॉर्शियम आफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स के साथ सम्पादकीय अनुबंध था इसलिए मज़बूरी में हमें खबर लिखनी पड़ी, ” एक्सप्रेस से जुड़े एक रिपोर्टर ने इंडिया संवाद को बताया. दरअसल पैराडाइस पेपर्स के सनसनीखेज खुलासों पर जो पैनापन  एक्सप्रेस को दिखाना  चाहिए था वो पैनापन उसने पुराने अंदाज़ में बिलकुल नहीं दिखाया.  लिहाजा,  जयंत सिन्हा से लेकर कई राजनेता दस्तावेजों  के सार्वजनिक होने के बाद भी जन पड़ताल से कुछ ही दिन में बरी हो गए.

वैसे भी इस मामले में भारत में मुद्दई की भूमिका में एक्सप्रेस था और जब मुद्दई ही धीरे से खामोश हो जाए या खुलासे के किसी संदिग्ध को मुख्य अतिथि बनाने लगे तो फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी खबर को दूसरा मीडिया समूह कितने दिन तक फॉलो करेगा.  ज़ाहिर है सवाल एक्सप्रेस के मुख्य संपादक राजकमल झा की भूमिका पर भी उठने लगे हैं. झा हमेशा से साफ़ सुथरी छवि वाले सम्पादकों  की लिस्ट में शुमार थे लेकिन आजकल ये चर्चा  है कि इस नए दौर में  उनकी निष्पक्षता भी संदेह के घेरे में है. झा वैसे भी पत्रकार से बड़े उपन्यासकार हैं. कल्पना उनकी मूल धार है. शायद इसलिए  गहरे काले तथ्यों से लड़ने के लिए रामनाथ गोयनका जैसे संपादक का जिगर चाहिए.

 

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