नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बाद अब इंद्रजीत सरोज की बारी है…….

लखनऊ। दलितों के वोट बैंक की राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती अब अपने ही तिलस्मी मायाजाल में बुरी तरह से फंस गयी हैं।  जिसके चलते पार्टी के जादूगर की जादूगरी के चलते बसपा सुप्रीमो मायावती का मायावी मायाजाल तेजी से टूट रहा है। मात्र 11 साल में अम्बेडकरी मिशन के तहत खड़ा किया गया किला अब भरभरा कर गिरने लगा है। बसपा संस्थापक मान्यवर कांशीराम की तैयार की गई बिग्रेड के सिपाहियों को एक-एक करके बसपा के चाणक्य सतीश चंद्र मिश्र ने मायावती को मोहरा बनाकर निकलवा दिया। गौरतलब है कि अभी तक अमुक नेता या फिर पदाधिकारी को बसपा सुप्रीमो मायावती के निर्देश पर पार्टी से निकाल दिया गया। लेकिन आयरन लेडी अपने इसी दांव से मात खाती नजर आ रही हैं।

सूत्रों के मुताबिक ऐसी खबर आपको जल्दी ही मिलेगी कि बसपा के चाणक्य ने मायावती को उनकी ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। फिलहाल अब बसपा के चाणक्य की नजर इंद्रजीत सरोज पर है। बताते चलें कि बसपा संस्थापक कांशीराम जी के कंधे से कंधा मिलकर चलने वाले पार्टी के पहले प्रदेश अध्यक्ष जंग बहादुर पटेल, राम लखन वर्मा, सोने लाल पटेल, बरखूराम वर्मा, आर.के. चौधरी, श्रीराम यादव, कैप्टन सिंकदर रिजवी, दीनानाथ भास्कर, राजबहादुर, बलिहारी बाबू, ईसम सिंह, रामरती बिन्द, सरदेश अम्बेडकर, अहमद मसूद, मोहम्मद अरशद, दद्दू प्रसाद, राम प्रसाद, प्रमोद कुरील, जगन्नाथ राही, अशोक वर्मा, प्रमोद कुरील, आर.के. पटेल, मायावती (माया प्रसाद) निकाल दिए गए थे। बसपा का मुख पत्र बहुजन संगठनक के सम्पादक राम प्रसाद और दिल्ली बीएसपी कार्यालय के प्रभारी अशोक कुमार को बेइज्जत करके पार्टी से निकाल दिया था।  इनमें से आर.के. चौधरी, दीनानाथ भास्कर, दद्दू प्रसाद, स्वामी प्रसाद मौर्य, गंगा राम अम्बेडकर, कमलाकांत गौतम बहुजन विरोधी नीतियों के चलते पार्टी से किनारा कर लिया है।

अब निकाले जाने वालों में एक नया नाम नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी शुमार हो गया है। इसका असर भी बसपा पर पडऩा निश्चित है। बसपा सूत्रों का कहना है कि अधिकतर पुराने और मिशनरी नेताओं को पार्टी से निकाला जा चुका है। जिसका असर यह रहा है कि 2009 से हुए लोकसभा और विधान सभा के चुनाव में बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। इससे बसपा सुप्रीमो मायावती की पकड़ काफी हद तक कमजोर हुई है। बसपा के चाणक्य माने जाने वाले सतीश चंद्र मिश्र की पार्टी में काफी प्रभाव बढ़ा है। सबसे खास बात यह है कि भले ही सतीश चंद्र मिश्र बसपा के संगठन में सीधी दखल नहीं रखते हैं, लेकिन अधिकतर पदाधिकारी और नेता गर्दन उठाकर बात करने की हैसियत में नहीं हैं। अपनी बात बसपा सुप्रीमो मायावती तक पहुंचाने के लिए सतीश चंद्र मिश्र ही माध्यम बनते हैं। इस वजह से पार्टी में उनकी जबरदस्त पकड़ है। सतीश चंद्र मिश्र मायावती की हर कमजोरी को भली-भांति से जानते हैं।  उनको पता है एक दिन उनको भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। इसी वजह से पार्टी में अपनी स्थिति उन्होंने कानूनी तौर पर भी काफी मजबूत की है।

साथ ही अन्य पार्टी के नेताओं में भी अपने संबंध मधुर किए हैं, क्योंकि मायावती किसी भी सरकारी और गैर सरकारी कार्यक्रम में बसपा की तरह से शामिल नहीं होती हैं। इसके साथ ही मायावती के कई ट्रस्टों में भी अहम पदों पर काबिज हैं। यही कमजोरी मायावती को बसपा से बाहर निकालने का कारण बनेगी। 2003 से बसपा के जरिए सतीश चंद्र मिश्र की राजनीति में इंट्री हुई। 14 साल की राजनीति के दौरान जहां सतीश चंद्र मिश्र ने अपनी छवि पर एक भी छींट तक नहीं आई वहीं मायावती की छवि दौलत की बेटी के रूप में उभरी। साथ ही कई राजनीतिक विवाद भी उत्पन्न हुए। मायावती ने भले ही राजनीतिक और आर्थिक विरासत सौंपने के लिए अपने भाई आनंद को सामने लाई हो, लेकिन बसपा के चाणक्य के आगे बच्चा साबित होंगे। आय से अधिक सम्पत्ति को लेकर अभी से मायावती के भाई विवादों में आ गए हैं। जिसको लेकर मायावती ने अम्बानी से तुलना करके अपने भाई की सम्पत्ति को लेकर सफाई दी है। बसपा सूत्रों का कहना है कि फिलहाल अभी बसपा के कद्दावर नेता इंद्रजीत सरोज के दिन गर्दिश में आने वाले हैं। इसकी स्क्रिप्ट तैयार हो चुकी है।

 

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