नोटबंदी: रैलियों के लिए पैसे का जुगाड़ न होने से माया के उड़े होश

mayawati-bjp-modiलखनऊ। पांच सौ और एक हजार रुपये की नोटबंदी की यूपी में सबसे ज्यादा गाज बसपा को चुकानी पड़ रही। मायावती ने लगातार सूबे के कोने-कोने महारैलियां करने की घोषणा की थी, मगर अब बसपा के खेमे में सन्नाटा पसर गया है। क्योंकि किसी भी रैली के लिए  टेंट-तंबू, गाड़ी-घोड़े औ हलवाई तक को एडवांस कैश में भुगतान करना पड़ता है। मगर आठ नवंबर को नोटबंदी के बाद से बसपा के पास अरबों की नकद करेंसी बेकार हो गई है तो उसे पार्टी प्रत्याशियों को भुनाने के लिए वापस कर दिया है। एक रैली में करोडों का खर्च आता है, मगर बैंकों से निकासी सीमित होने से पार्टी पैसे की व्यवस्था नहीं कर पा रही। इससे बसपा सुप्रीमो मायावती के होश उड़ गए हैं। खास बात है कि मायावती के खास कहे जाने वाले मिश्राजी यानी सतीश मिश्रा भी पार्टी की रैलियों के फंड के लिए कोई तरकीब नहीं निकाल पाए हैं।

यूं तो अखिलेश यादव के समाजवादी विकास रथ का पहिया भी नोटबंदी ने फिलहाल जाम कर रखा है। मगर चूंकि पार्टी सत्ता में है तो पूरी सरकारी मशीनरी अखिलेश के हाथ में है। ऐसे में कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री  अखिलेश यादव को चुनावी रैलियों के आयोजन और यात्राओं को निकालने में पैसे की व्यवस्था करने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। हर जिले के अफसरों को कैश जुटाने का जिम्मा सौंपने की तैयारी चल रही है। जिस तरह से बसपा सरकार में मंत्री जिलों के अफसरों के जरिए से पैसा जुटाते रहे।

यूपी में भाजपा की तैयारियों पर भी नोटबंदी का असर पड़ा है। चूंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है, सभी केंद्रीय एजेंसियों का गिरेबान पार्टी के पास है। इस बदौलत देश के सभी बड़े कारपोरेट घराने भी मोदी सरकार की पकड़ में है। ऐसे में भाजपा की यूपी में परिवर्तन यात्राओं और रैलियों पर भी फर्क नहीं पड़ने वाला है। क्योंकि भाजपा सत्ता में होने से ऊपर से धन का जुगाड़ यूपी में प्रचार के लिए करने में सक्षम है।

 

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