पश्चिम बंगाल: सत्ताधारी पार्टी निरंकुश बन सकती है क्योंकि स्थानीय मीडिया दब्बू है और विपक्ष सहमा है

स्रीमोय तालुकदार  

भारत की मुख्यधारा की मीडिया की पहचान बताने वाला पाखंड बुधवार को पश्चिम बंगाल में युवा दलित छात्र की कथित हत्या के मामले से फिर सामने आया है. त्रिलोचन महतो की गलती बस इतनी थी कि वो बीजेपी के युवा मोर्चा के सदस्य थे और व्यापक पैमाने पर हिंसा के शिकार हुए हालिया पंचायत चुनाव में उन्होंने पार्टी के लिए कड़ी मेहनत की थी. इन चुनावों में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को भारी सफलता मिली, लेकिन पुरुलिया जिले का बलरामपुर उन गिनी-चुनी जगहों में शामिल रहा, जहां बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया.

कमीज के पीछे लिखा था ‘बीजेपी की राजनीति करने का अंजाम’

पीड़ित सुपुर्दी गांव में पेड़ से लटका पाया गया. उसकी सफेद कमीज के पीछे बंगाली में संदेश लिखा था- ‘यह 18 साल की उम्र से बीजेपी की राजनीति करने का अंजाम है. वोटिंग के दिन से ही तुम्हें मारने की कोशिश थी. आज तुम मारे गए.’ एनडीटीवी में छपी खबर के मुताबिक यही संदेश शव के नजदीक कागज के एक टुकड़े पर लिखा मिला. त्रिलोचन की नई साइकिल समेत उसका सामान शव से कुछ ही दूरी पर पड़ा मिला.

bengal bjp worker

त्रिलोचन के पिता और स्थानीय नेता हरिराम की पंचायत चुनाव के दौरान बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन में अहम भूमिका थी. प्रखंड में बीजेपी ने सभी नौ ग्राम पंचायत और दो जिला परिषद सीटें जीती है. उन्होंने टेलीग्राफ अखबार को बताया- ‘वो मंगलवार रात घर नहीं लौटा. उसने कॉल करके हमें बताया कि टीएमसी समर्थकों ने उसे अगवा कर लिया है. बुधवार सुबह हमें उसका शव मिला.’ हरिराम ने टीएमसी के छह स्थानीय कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है. पुलिस के मुताबिक ये सब फरार हैं.

टीएमसी कार्यकर्ताओं ने दी थी मारने की धमकी: त्रिलोचन की मां

त्रिलोचन बलरामपुर कॉलेज में इतिहास ऑनर्स में तृतीय वर्ष का छात्र था. वो दोपहर में अपनी साइकिल लेकर स्टडी मटीरियल की फोटो कॉपी कराने निकला था. उसके भाई शिबनाथ ने आनंदबाजार पत्रिका को बताया कि जब शाम तक त्रिलोचन घर नहीं लौटा तो हमें चिंता होने लगी. शिबनाथ ने कहा कि वो शाम से ही अपने भाई को लगातार फोन कर रहा था लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा था. ‘रात करीब पौने नौ बजे त्रिलोचन ने फोन कर मुझे बताया कि वो मुझे मोटरसाइकिल पर ले जा रहे हैं. मेरी आंखों पर पट्टी बंधी है. मैं कुछ नहीं देख पा रहा हूं. वो मुझे मार सकते हैं. कृपया मेरी मदद करो.’ शिबनाथ का कहना है कि फोन बीच में ही कट गया.

संयोग से, त्रिलोचन की मां ने बंगाली अखबार को बताया कि चुनाव नतीजों के बाद टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी. ‘शुरुआती जांच के बाद’ पुरुलिया के पुलिस अधीक्षक ने दावा किया कि इस हत्या के पीछे ‘निजी खुन्नस हो सकती है न कि राजनीति.’

अभीषेक बनर्जी

अभिषेक बनर्जी

मंगलवार को टीएमसी सांसद, पार्टी की युवा इकाई के अध्यक्ष और ममता बनर्जी के उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी के हवाले से एक बंगाली अखबार ने लिखा कि टीएमसी पुरुलिया को ‘विपक्षविहीन’ कर देगी.

टीएमसी के स्थानीय नेता सृष्टि धर मंडल ने हत्या के लिए बीजेपी की अंदरुनी कलह को जिम्मेदार ठहराया और राज्य की सीआईडी से जांच की मांग की.

वरिष्ठ नेता और टीएमसी महासचिव पार्था चटर्जी ने मीडिया से कहा: ‘पीड़ित के पीठ पर कुछ लिखा होने का अर्थ यह नहीं है कि किसी भी रूप में हत्या में टीएमसी की भूमिका है. ऐसी धारणाएं बना लेना अपमानजनक है.’

विपक्ष डरा हुआ है, पुलिस पार्टी कार्यकर्ता की तरह व्यवहार कर रही है

यह कोई नहीं जानता की ‘हास्यास्पद’ क्या है. चटर्जी की ‘धारणाएं’ या फिर सामने आए तथ्य. जो जानकारी सामने आई है वो पश्चिम बंगाल की दयनीय स्थिति बताने के लिए काफी है, जहां लोकतंत्र में शासन की जगह हिंसा हावी है. जहां पुलिस कानून का राज कायम करने वालों की जगह पार्टी कार्यकर्ता की तरह व्यवहार कर रही है.

सत्ताधारी पार्टी जानती है कि वो बेशर्म बन सकती है. स्थानीय मीडिया दब्बू हो गया है, विपक्ष डरा हुआ है और यहां तक कि हिंसा से पत्रकार भी अछूते नहीं हैं.

सवाल यह है कि राष्ट्रीय मीडिया एक युवा दलित की बर्बर हत्या के मामले को प्रमुखता से उठाने में विफल क्यों रहा जबकि मामले को पूरी गंभीरता से लेकर ममता बनर्जी से सवाल पूछे जाने चाहिए थे. यह वही मीडिया है जो बिना तथ्यों की प्रतीक्षा किए कथित रूप से हर अपराध के लिए बीजेपी और उसकी विचारधारा वाले संगठनों को जिम्मेदार ठहराता है.

अपराध में बीजेपी या दक्षिणपंथी संगठनों के शामिल होने के सवाल को छोड़ दीजिए. अगर ये हत्या गुजरात या बीजेपी शासित दूसरे राज्य में हुई होती तो अखबारों के हर संस्करण में बड़े-बड़े अक्षरों में सुर्खियां बनती. सभी टीवी चैनलों पर बिना रुके पैनल डिस्कशन होता. डिजिटल मीडिया में ये चर्चा हो रही होती कि किस तरह नरेंद्र मोदी देश को विनाश के कगार पर ले आए हैं. सोशल मीडिया पर कई हैशटेग ट्रेंड कर रहे होते और इंडिया गेट समेत दूसरे स्मारकों के पास कैंडल मार्च हो रहा होता. पश्चिमी और पश्चिमी एशियाई प्रकाशनों के कॉलम और संपादकीय का पालन किया जाता.

बंगाल के लिए राजनीतिक हिंसा नई नहीं है. लेकिन न्यू मीडिया टूल्स के आने से और जागरूकता बढ़ने के साथ लोकतंत्र में नेता और पार्टियों के लिए ऐसा कारनामों से बच पाना मुश्किल है. लेकिन यह प्रगति लगता है बंगाल में रुक सी गई है.

हमने पाया कि इस मामले की बेदम रिपोर्टिंग हुई, कुछ लोगों ने मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की. सोशल मीडिया में भी नाराजगी नहीं जताई गई. अगर अमित शाह ने ट्वीट नहीं किया होता तो मामला रफा-दफा हो जाता.

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Amit Shah

@AmitShah

Deeply hurt by the brutal killing of our young karyakarta, Trilochan Mahato in Balarampur,West Bengal. A young life full of possibilities was brutally taken out under state’s patronage. He was hanged on a tree just because his ideology differed from that of state sponsored goons.

Amit Shah

@AmitShah

The present TMC govt in West Bengal has surpassed the violent legacy of Communist rule. Entire BJP mourns this tragic loss & stands firmly with Trilochan Mahato’s family in this hour of grief. His sacrifice for organisation & ideology will not go in vain. Om Shanti Shanti Shanti.

पश्चिम बंगाल के बलरामपुर में हमारे युवा कार्यकर्ता त्रिलोचन महतो की बर्बर हत्या से बेहद आहत हूं. संभावनाओं से भरपूर एक युवा जीवन को राज्य के समर्थन से बर्बर तरीके से खत्म कर दिया गया. उन्हें पेड़ से सिर्फ इसलिए लटका दिया गया कि उनकी विचारधारा राज्य समर्थित गुंडों से अलग थी.

 

पश्चिम बंगाल की मौजूदा टीएमसी सरकार ने कम्युनिस्ट शासन की हिंसक विरासत को पीछे छोड़ दिया है. पूरी बीजेपी इस दुखद घटना पर शाकाकुल है और दुख की इस घड़ी में त्रिलोचन के परिवार के साथ दृढ़ता से खड़ी है. संगठन और विचारधारा के लिए उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. ओम शांति शांति शांति.

स्थानीय बंगाली अखबार ई समय ने अपने पहले पेज पर इस खबर को जगह ही नहीं दी. अंदर के पन्ने पर दी गई खबर को इस तरह घुमा-फिराकर लिखा गया कि शेन वार्न भी गर्व करने लगें. एबीपी ने हालांकि इस खबर को बड़े रूप में पेश किया. दक्षिणपंथी समूहों की ‘असहिष्णुता’ को बैनर हेडलाइन बनाने के लिए पहचाने जाने वाले दि टेलीग्राफ ने पहले पेज पर एक कॉलम में खबर छापी और हेडलाइन में मृतक के ‘दलित’ होने का कोई जिक्र नहीं था.

द इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया दोनों ने पहले पन्ने पर खबर को सिंगल कॉलम में जगह दी लेकिन फर्स्टपोस्ट की तरह हेडलाइन में ‘दलित’ शब्द का प्रयोग नहीं किया.

संयोग से, जहां इंडियन एक्सप्रेस ने दिल्ली संस्करण में भी इस खबर को पहले पेज पर जगह दी, वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे नौवें नंबर के पेज पर छापा, जबकि हिंदुस्तान टाइम्स ने 10वें पेज पर छोटी खबर छापी और इसमें भी हेडलाइन में ‘दलित’ शब्द नहीं था. अंग्रेजी के एक चैनल को छोड़ किसी ने भी प्राइम टाइम में इस पर डिबेट नहीं की. शायद महतो का खून पर्याप्त लाल नहीं था या फिर उसके दलित होने पर ही संदेह था. सच्चाई यह है कि दंगों, राजनीतिक हत्याओं, पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा  मुहर्रम के दौरान दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर प्रतिबंध और स्कूल की किताबों में बंगाली नाम रखने के लिए ममता बनर्जी को मीडिया से फ्री पास मिला हुआ है.

यदि ममता की एक शक्तिशाली क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में स्थिति, एक प्रमुख विपक्षी नेता, ‘धर्मनिरपेक्षता की चैंपियन’ और ‘लोकतंत्र और विकास की प्रतीक’ राजनीतिक नेता और प्रशासक के रूप में उनका प्रदर्शन मीडिया के ईमानदार मूल्यांकन के रास्ते में आता है, तो मीडिया को चाहिए कि वो ‘लोकतंत्र का पहरेदार’ होने के अपने हवा-हवाई दावे की पड़ताल करे और नैतिकता के उन उच्च मानदंडों के घेरे से बाहर निकले, जिसमें वो हमेशा रहना चाहता है.

मीडिया के आचरण से पता चलता है कि ‘शक्ति के लिए सच्चाई’ के नैतिक आदर्शों के बजाय नरेंद्र मोदी और बीजेपी का विरोध वैचारिक और राजनीतिक है. यह पूर्वाग्रह उसकी छवि को प्रभावित कर रहा है और उन लोगों के बीच असंतोष को बढ़ा रहा है, जिनकी आवाज़ का प्रतिनिधित्व करने के लिए उसे समर्थम मिला है.

राहुल पंडिता के शब्दों में, ‘भारत के प्रधानमंत्री बन चुके व्यक्ति से भारी नफरत, राजनीति के कई पर्यवेक्षकों को अपनी निष्पक्षता खोने के लिए बाध्य कर रही है. मोदी को घुटनों के बल देखने की उनकी तीव्र इच्छा अस्तित्वहीन है.’ या, जैसा कि जेएनयू के प्रोफेसर और कवि मकरंद परांजपे लिखते हैं, ‘लोकतंत्र में, मीडिया पक्ष ले सकता है और ले. वास्तविक समस्या वह मीडिया है जिसने सत्य की तलाश या रिपोर्ट करना बंद कर दिया है, इसलिए वो भ्रष्ट या भ्रमित है. यह गंभीर असफलता, राष्ट्रीय आपदा है. महतो की मौत पर मीडिया में शांति इन सच्चाइयों को और पुष्ट करता है.

 

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