पहली बार भारत और WHO आमने-सामने, इस नए सुझाव को सिरे से नकारा हमारे वैज्ञानिकों ने

नई दिल्ली। कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के इलाज में पहली बार भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सुझावों को ठुकरा दिया है. कोरोना वायरस फैलने में WHO की लापरवाही पर दुनियाभर में किरकिरी होने के बावजूद भारत इस मामले में चुप रहा है. लेकिन कोरोना वायरस के इलाज में WHO के नए सुझावों को इस बार देश के वैज्ञानिकों ने सिरे से नकार दिया है.

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पर WHO की सलाह को मानने से किया इंकार
कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) की दवा के इस्तेमाल को लेकर WHO ने शंका जताई है. साथ ही कहा है कि ये दवा कोरोना वायरस के इलाज लिए सुरक्षित नहीं है. लेकिन इस बार भारत ने अपना कड़ा रुख अपना लिया है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने कहा कि भारत में हुए अध्ययनों में मलेरिया-रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) का कोई प्रमुख दुष्प्रभाव सामने नहीं आया है और इसका प्रयोग कोविड-19 के एहतियाती इलाज में सख्त चिकित्सा पर्यवेक्षण में जारी रखा जा सकता है.

अभी और बढ़ सकता है विरोध
मामले से जुड़े केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि पिछले पांच महीनों से WHO के दिशा-निर्देश कई मामलों में गलत साबित हुए हैं. इसी वजह से अब भारत ने किसी भी अन्य संगठन की सलाह या निर्देश पर काम करने की बजाए खुद इलाज का रास्ता ढूंढने का फैसला किया है. भारत सरकार अब कोरोना वायरस से निबटने के लिए अपनी जांच और शोध पर ही भरोसा करना चाहती है. फिलहाल मंत्रालय ने सिर्फ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मामले में ही WHO की सिफारिश मानने से इंकार किया है. लेकिन आने वाले समय में WHO के साथ कई मामलों में मतभेद सामने आ सकते हैं.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा, ‘कोविड-19 एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में जानकारी धीरे धीरे सामने आ रही है और हमें नहीं पता कि कौन सी दवा काम कर रही है और कौन सी दवा काम नहीं कर रही है. कई दवाएं कोविड-19 के लिए इस्तेमाल के लिए निर्धारित की जा रही हैं, चाहे वह इससे बचाव के लिए हों या इलाज के लिए हों.’

उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने भारत में तैयार होने वाले मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को कोरोना वायरस के खिलाफ सबसे प्रभावी माना है. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी कहा था कि कई अमेरिकी इस दवा के सेवन से पूरी तरह ठीक हो गए हैं. ऐसे में WHO के नए दिशा-निर्देश पर सवाल उठना जायज है.

 

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