पांच देशों के दौरे पर रवाना मोदी, अफगानिस्तान में डैम के इनॉगरेशन से होगी शुरुआत

एनएसजी में भारत की सदस्यता के लिए मांग सकते हैं सहयोग

04modiwww.tahalkaexpress.com नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी शनिवार सुबह पांच देशों के दौरे पर रवाना हो चुके हैं। आज वे हेरात शहर में डैम के इनॉगरेशन के लिए अफगानिस्तान पहुंचने वाले हैं। इसके बाद वे कतर, स्विट्जरलैंड, अमेरिका और मैक्सिको जाएंगे। 6 दिन के इस दौरे में वे 45 घंटे यानी करीब दो दिन हवा में रहेंगे। इस दौरान सभी पांच देशों में 40 से ज्यादा ऑफिशियल प्रोग्राम्स में हिस्सा लेंगे।
मोदी पिछले दो साल में 50 से ज्यादा देशों का दौरा कर चुके हैं। इस दौरे पर टेक्नालॉजी ट्रांसफर, फॉरेन इन्वेस्टमेंट और बिजनेस पर फोकस रहेगा। इसके अलावा भारत न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की मेंबरशिप पाने के लिए इन देशों से समर्थन भी जुटाएगा। इस पर इसी महीने फैसला होना है। अमेरिका, स्विट्जरलैंड और मैक्सिको इस 48 मेंबर वाले स्पेशल ग्रुप के मेंबर्स हैं। अमेरिका पहले ही भारत का सपोर्ट कर चुका है।
मैक्सिको से होगी वापसी
मैक्सिको से लौटते वक्त मोदी का प्लेन फ्यूल भरवाने के लिए जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में लैंडिंग करेगा। मोदी इस मौके को जर्मनी के साथ दोतरफा बातचीत में भुना सकते हैं। इसी तरह मोदी पिछले साल आयरलैंड में रुके थे।
पहला पड़ाव : अफगानिस्तान (4 जून) : हेरात का करेंगे दौरा
क्यों जा रहे हैं?
यहां मोदी 551 मीटर लंबे सलमा डैम की शुरुआत करेंगे। भारत की मदद से बने सलमा डैम पर 1437 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। 1976 में यह डैम गृहयुद्ध में तबाह हो गया था। अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में चिश्ती शरीफ के पास हरिरुद नदी पर भारत ने सलमा बांध बनवाया है। इस बांध को बनाने का फैसला जनवरी 2006 में लिया गया था। उसी साल काम शुरू हुआ। यह 107 मीटर ऊंचा, 550 मीटर लंबा और 500 मीटर चौड़ा है। वैसे तो ये डैम एक साल पहले ही बन गया था, लेकिन पिछले साल जुलाई में इसके गेट बंद कर दिए गए। नदी में पानी का बहाव कम होने से करीब 20 किलोमीटर लंबे और 3.7 किलोमीटर चौड़े इस डैम को भरने में एक साल लग गया। इस पर 42 मेगावाट बिजली भी बनाई जाएगी। इससे करीब 80 हजार हेक्टेयर खेतों में सिंचाई भी हो सकेगी। बता दें कि मोदी ने पिछले साल अफगानिस्तान के नए पार्लियामेंट हाउस का भी उद्घाटन किया था। ये भी भारत ने ही बनवाया है।
स्ट्रैटजिक इम्पॉर्टेंस: तालिबान की पैठ बढ़ रही है। ऐसे में मोदी का यह दौरा राष्ट्रपति अशरफ गनी को मजबूती देगा।
फॉरेन मामलों के एक्सपर्ट रहीस सिंह बताते हैं- अफगानिस्तान दौरा अहम है, क्योंकि ईरान से चाबहार समझौते के बाद अफगानिस्तान के जरांज-डेलारम हाइवे की अहमियत बढ़ गई है। भारत को इसका फायदा उठाने के लिए अफगानिस्तान के साथ मिलकर नई कोशिशें करनी होंगी। लेकिन इसका स्ट्रैटजिक फायदा तभी मिलेगा, जब वह पाक को बड़ा भाई मानने के सिंड्रोम से बाहर आए।
दूसरा पड़ाव : कतर (4-5 जून) : आठ साल में भारत के किसी पीएम का पहला दौरा
क्यों जा रहे हैं?
खाड़ी क्षेत्र में बिजनेस पार्टनरशिप जरूरी है। 2014-15 में कतर के साथ ट्रेड 15 अरब डाॅलर के आंकड़े को पार कर गया था।नेचुरल गैस मुहैया कराने वाला सबसे बड़ा सोर्स। पिछले साल 65% सीएनजी कतर से आई थी। छह लाख से ज्यादा भारतीय यहां रहते हैं।
मोदी के दौरों का मेन एजेंडा क्या है?
एक्सपर्ट रहीस सिंह के मुताबिक, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्मार्ट सिटी मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट हैं। लेकिन जरूरी कैपिटल और टेक्नोलॉजी का इन्फ्लो भारत की तरफ नहीं दिखा है। सुस्त नौकरशाही, हाई टैक्स रेट्स और स्किल्ड वर्कर्स की कमी के चलते इन्वेस्टर्स उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। मोदी इन कमियों को दूर करने का भरोसा जगा सकते हैं।
तीसरा पड़ाव : स्विट्जरलैंड (5-6 जून) : काला धन वापस लाने और इन्वेस्टमेंट पर जोर
क्यों जा रहे हैं?
टेक्नोलॉजी, इन्वेस्टमेंट और ब्लैकमनी पर बात होगी। भारतीय टेक्नोलॉजी को मॉडर्नाइज करने और बड़े कैपिटल इन्वेस्टमेंट के लिए खाका तैयार हो सकता है। मोदी स्विस बैंकों में इंडियन अकाउंट होल्डर्स की जानकारी मांग सकते हैं।
इसलिए उम्मीद:स्विट्जरलैंड भारत के साथ टैक्स इन्फॉर्मेशन साझा करने वाले ऑर्डिनेंस पर विचार कर रहा है।
क्या चाहते हैं मोदी?
स्विट्जरलैंड ने कनाडा, जापान और कुछ अन्य देशों के साथ टैक्स नियमों के वॉयलेशन की इन्फॉर्मेशन साझा करने का करार किया है। मोदी भी यही चाहते हैं। भारत में इन्वेस्टमेंट के मामले में 10 बड़े देशों में है स्विट्जरलेंड। 30,760 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट भारत में है। देश में 250 स्विस कंपनियां हैं।
रहीस सिंह बताते हैं- इकोनॉमिकली मजबूत कतर और स्विट्जरलैंड से मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया प्रोजेक्ट पर समझौते हो सकते हैं। मुमकिन है कि इसके लिए दोनों देशों मे पहले से ही होमवर्क हुआ हो। कतर की टॉप लीडरशिप इंडियन इकोनॉमी पर भरोसा जता चुकी है। इसलिए कतर से ज्यादा उम्मीद की जा रही है।
चौथा पड़ाव : अमेरिका (6-7 व 8 जून): चीन, पाक और रूस की रहेगी नजर
मोदी जब मार्च में न्यूक्लियर समिट के लिए अमेरिका गए थे तो ओबामा ने उन्हें बायलैटरल विजिट के लिए न्योता दिया था। मोदी अमेरिकी कांग्रेस के ज्वाइंट सेशन को भी एड्रेस करेंगे।
कौन-कौन से एग्रीमेंट्स होंगे?
डिफेंस, सिक्युरिटी, एनर्जी जैसे सेक्टर्स में हुए डेवलपमेंट्स का रिव्यू। डिफेंस सेक्टर और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर एग्रीमेंट होंगे। अमेरिकी कंपनियों के CEOs से मुलाकात करेंगे।
अमेरिका की चौथी विजिट, मोदी-ओबामा की सातवीं मुलाकात, पहली बार स्टेट गेस्ट
बता दें कि ओबामा का दूसरा टर्म जनवरी में खत्म हो रहा है। 2014 से अब तक दोनों नेताओं की ये 7th मुलाकात है। इस बार मोदी कांग्रेस (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट) में भी स्पीच देंगे। वॉशिंगटन में ‘कार्नेजी एन्डोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ के एक्सपर्ट एश्ले टेलिस के मुताबिक, ‘2014 में मोदी के पीएम बनने के बाद दोनों नेताओं की ये 7th मीटिंग होगी। ये अपने आप में इंप्रेसिव आंकड़ा है।’ ‘दोनों के बीच पर्सनल रिलेशनशिप जैसा भी है। ये बात जरा चौंकाती है।’ टेलिस के मुताबिक, ‘चीन को काउंटर करने के लिए अमेरिका भारत को एक अहम पार्टनर मानता है।’ ‘दोनों देशों के बीच मिलिट्री कोऑपरेशन को लेकर समझौते हो सकते हैं। इसके तहत अमेरिका भारत को हाईटेक्नोलॉजी वेपन्स देने पर सहमति जता सकता है।’ ‘दोनों देशों के बीच ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज को लेकर समझौता हो सकता है। वहीं कम्युनिकेशन और डाटा ट्रांसफर को लेकर बातचीत हो सकती है।’
2005 के बाद किसी इंडियन पीएम का यूएस कांग्रेस में एड्रेस
मोदी यूएस कांग्रेस की ज्वाॅइंट मीटिंग को एड्रेस करेंगे। ऐसा करने वाले मोदी 5th और 2005 के बाद पहले पीएम होंगे  स्पीकर ऑफिस ने बताया कि 10 दिसंबर 1824 को पहली बार किसी विदेशी पीएम ने यूएस कांग्रेस को एड्रेस किया था।
वहीं, भारत से 1949 में पंडित नेहरु, 1985 में राजीव गांधी, 1994 में नरसिंह राव, 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी और 2005 में मनमोहन सिंह ने ज्वाइंट सेशन को एड्रेस किया था।
फॉरेन मामलों के एक्सपर्ट रहीस सिंह के मुताबिक, चीन न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की एंट्री का विरोध कर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान सपोर्ट में है। उम्मीद है कि मोदी स्विट्जरलैंड, मैक्सिको का भी समर्थन हासिल करेंगे।  न्यूक्लियर वेपन बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामान की सप्लाई पर एनएसजी का कंट्रोल है। मेंबरशिप मिलने से यूरेनियम आसानी से मिल सकेगा।
पांचवां पड़ाव : मेक्सिको (9 जून) : स्पेस और एग्रीकल्चर पर एग्रीमेंट हो सकते हैं
अमेरिका से वापसी में वे मेक्सिको जाएंगे, जहां भारत की नजरें बिजनेस और इन्वेस्टमेंट पर लगी हैं। स्पेस, साइंस, एनर्जी, एग्रीकल्चर और टेक्नॉलाजी से जुड़े समझौते हो सकते हैं। पिछले साल सितंबर में न्यूयॉर्क में मोदी और मेक्सिको के राष्ट्रपति एनरिक पेना नीटो मिले थे।
 

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