पाकिस्तान के युवाओं में चीनी भाषा सीखने की लगी है होड़, जानें क्यों?

क्या कोई देश पैसा कमाने के लिए अपनी संप्रभुता को गिरवी रख सकता है ? ऐसा सिर्फ वही देश करते हैं जहां लोकतंत्र का नहीं बल्कि आतंकवादियों का शासन होता है. यहां तक कि आतंकवादी भी जिस ज़मीन के टुकड़े के लिए लड़ते हैं उसे लेकर वो गंभीर होते हैं. लेकिन पाकिस्तान जैसे देश के नेता आतंकवादियों से भी गए गुज़रे हैं. क्योंकि वो पैसे कमाने के लालच में सिर्फ अपनी ज़मीन ही नहीं बल्कि अपनी सभ्यता, संस्कृति और भाषा से भी समझौता करने के लिए तैयार रहते हैं. ख़बर ये है, कि पाकिस्तान ने एक तरह से चीन की गुलामी मंज़ूर करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा लिया है. हालांकि, इस ख़बर में बहुत सारे Twist और Turns हैं.

आज सुबह ये ख़बर आई, कि पाकिस्तान की Senate ने चीन की भाषा Mandarin को, पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया है. ये ख़बर पाकिस्तान के News Channel, ‘अब तक News’ पर दिखाई गई थी.. लेकिन ये ख़बर पूरी तरह सही नहीं थी. इस News Channel का रिपोर्टर, शायद इस ख़बर को ठीक से समझ नहीं पाया. सोमवार को पाकिस्तान के Senate में चीनी भाषा से संबंधित एक Motion ज़रुर लाया गया था. लेकिन उसमें Mandarin को आधिकारिक भाषा बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं था.

People’s Party of Pakistan की Senator, खालिदा परवीन ने प्रस्ताव दिया था, कि C-PEC यानी China–Pakistan Economic Corridor को ध्यान में रखते हुए, पाकिस्तान में चाइनीज़ भाषा सिखाई जानी चाहिए. ताकि, जो लोग इस परियोजना के लिए काम कर रहे हैं, उन्हें कोई परेशानी ना हो. उन्होंने अपने प्रस्ताव में C-PEC और Official शब्द का ज़िक्र किया था, और इसीलिए ये सारा Confusion पैदा हुआ.

पाकिस्तानी News Channel के रिपोर्टर ने Official शब्द का ज़िक्र आते ही, चीन की भाषा Mandarin को, पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा घोषित किए जाने की Reporting कर दी. लेकिन सच कुछ और ही है. पाकिस्तान की संसद के Upper House ने एक प्रस्ताव पास किया है. जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि वहां की सरकार चीन की भाषाएं सिखाने वाले.. language courses की शुरुआत करे. इससे Pakistan और China के संबंध और अच्छे होंगे और CPEC को मज़बूती मिलेगी. 14 Senators ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया.. और 9 Senators ने इसके खिलाफ वोट दिया.

पाकिस्तान में वैसे तो कई भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन पिछले 70 वर्षों में उसने तीन ऐसी भाषाओं को आधिकारिक भाषा बनाया है, जो वहां रहने वाले ज़्यादातर लोगों की मातृ-भाषा है ही नहीं. ये तीन भाषाएं हैं – अंग्रेज़ी, उर्दू और Arabic. अब वहां पर चीन की भाषा Mandarin के प्रचार और प्रसार के लिए भी खूब हाथ-पैर मारे जा रहे हैं.

वैसे ये भी, एक विरोधाभास ही है…कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बोली जाने वाली पंजाबी भाषा या पश्तो जैसी दूसरी भाषाओं को आज तक पाकिस्तान की Official Language घोषित नहीं किया गया है.

और इसकी एक बड़ी वजह है, पाकिस्तान का अपना निजी एजेंडा. पाकिस्तान को अपने नागरिकों के हितों की परवाह नहीं है. वहां सत्ता में बैठे नेताओं और सेना की पूरी कोशिश ये रहती है कि किसी तरह  भारत को नुकसान पहुंचाया जाए. लेकिन पाकिस्तान को इस बात की समझ नहीं है कि नफ़रत के बीज से विकास की फसल नहीं उगाई जा सकती.

अब पाकिस्तान में Mandarin भाषा की ज़बरदस्त एंट्री का मतलब ये होगा, कि पाकिस्तान और चीन भारत के लिए दो अलग अलग मोर्चे नहीं रह जाएंगे. इसके बाद वो एक साथ मिलकर भारत के हितों को नुकसान पहुंचाएंगे.

अब इस फैसले की कूटनीति और रणनीति को समझिए. पाकिस्तान में चाइनीज़ भाषा को Launch करने के पीछे ये दलील दी जा रही है, कि इससे चीन और पाकिस्तान के रिश्ते और भी ज़्यादा मज़बूत होंगे. इसके अलावा, C-PEC यानी China–Pakistan Economic Corridor से जुड़े लोगों को मदद मिलेगी. पाकिस्तान के युवाओं में इन दिनों चीनी भाषा सीखने की होड़ लगी हुई है. वहां के युवा नौकरियों की उम्मीद में हैं, जबकि विश्लेषक इसे पाकिस्तान की गुलामी बता रहे हैं.

वर्ष 2015 में C-PEC की घोषणा हुई थी और उसी के बाद पाकिस्तान में चीनी भाषा सीखने वाले लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ी. इस्लामाबाद की National University of Modern Languages में C-PEC परियोजना आने से पहले सिर्फ 200 छात्र चीनी भाषा सीख रहे थे. लेकिन इस परियोजना के Launch होते ही ये संख्या 2 हज़ार से ज़्यादा हो गई.

70 के दशक में इस University में चाइनीज़ भाषा का विभाग इसलिए शुरू किया गया था, ताकि पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को चीनी संस्कृति के बारे में सिखाया जा सके. बाद में इसे आम नागरिकों के लिए भी शुरू कर दिया गया. लेकिन पिछले दो वर्षों में जिस तरह की भीड़ वहां देखी गयी है, वैसा भीड़ वहां कभी नहीं देखी गई थी.

वैसे इसका एक दूसरा पहलू ये है, कि हमारा पड़ोसी पाकिस्तान, चीन के एहसानों के नीचे इतना दब चुका है, कि अब उसके पास कोई दूसरा रास्ता बचा ही नहीं है. मई 2017 में पाकिस्तान के अखबार Dawn ने एक खबर छापी थी, जिसमें कहा गया था, कि चीन,  पाकिस्तान की हज़ारों एकड़ कृषि भूमि का अधिग्रहण करना चाहता है.

ये ज़मीनें चीन की कंपनियों को Lease पर दी जाने वाली थीं. इसके अलावा चीन, पेशावर से लेकर कराची तक जाने वाले रास्ते पर Surveillance कैमरे लगाने वाला था, जो 24 घंटे व्यापारिक मार्ग की निगरानी करते.

इसी योजना के मुताबिक चीन, पाकिस्तान में Internet के लिए Optical fibre बिछाना चाहता था. जिसके सहारे Chinese मीडिया में आने वाले कार्यक्रमों का प्रसारण पाकिस्तान में किया जा सके. ताकि पाकिस्तान के लोग चीन की संस्कृति को करीब से समझ पाएं.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान में लगभग चार लाख चाइनीज़ लोग रहते हैं. और CPEC के तहत करीब 30 हज़ार चाइनीज़ नागरिक, पाकिस्तान में काम कर रहे हैं. वहां का मीडिया इसे ‘चीनी क्रांति’ कह रहा है. जो पूरे देश में फैल चुकी है.

आज की स्थिति ये है, कि पाकिस्तान के समाज में चीन काफी अंदर तक प्रवेश कर चुका है. वहां के स्थानीय मीडिया, टेलीविज़न, रेडियो, प्रिंट, विज्ञापन और सिनेमा में इस बात के सबूत स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं. चीनी भाषा का पाकिस्तान में प्रकाशित होने वाला पहला अख़बार है ‘हुआशांग’. जिसे इस्लामाबाद से प्रकाशित किया जाता है.

दो साल पहले शुरू हुए इस अख़बार के चीनी भाषा और अंग्रेज़ी भाषा के संस्करण की लगभग दस हज़ार प्रतियां प्रकाशित की जाती हैं. और आपको ये जानकर हैरानी होगी, कि पाकिस्तान में इसके करीब साठ हज़ार पाठक हैं. कुछ और उदाहरण देखिए. अप्रैल 2017 में पाकिस्तान में एक फिल्म रिलीज़ हुई थी, जिसका नाम था…’चले थे साथ’

इस फिल्म की कहानी में भी चीन से मज़बूत रिश्तों को दिखाया गया था. ये एक प्रेम कहानी थी, जिसमें सीमा के पार मौजूद एक चीनी व्यक्ति और पाकिस्तानी महिला के प्रेम की कहानी दिखाई गई थी. दिसंबर 2016 में पाकिस्तान और चीन ने एक साथ मिलकर ‘FM 98 दोस्ती’ नामक एक रेडियो चैनल शुरू किया था. पहले तो इसका प्रसारण दिन में कुछ घंटों तक ही सीमित था. लेकिन बाद में इसका प्रसारण 24 घंटे होने लगा.

इस बीच चीन, ग्वादर बंदरगाह का इस्तेमाल C-PEC परियोजना के तहत कर रहा है. उसका मकसद, पाकिस्तान को अपनी एक Colony यानी उपनिवेश बनाने का है. और इसी मकसद से चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के निर्माण में निवेश किया है.

1947 में भारत और पाकिस्तान को एक साथ अंग्रेज़ों से आज़ादी मिली थी. लेकिन अब ऐसा लगता है कि पाकिस्तान को आज़ादी की एक और लड़ाई लड़नी होगी और ये लड़ाई उसे चीन से लड़नी होगी, क्योंकि आने वाले वक़्त में वो चीन का उपनिवेश बन जाएगा.

पाकिस्तान को याद रखना चाहिए कि दुनिया में जितने भी देशों को उपनिवेश बनाया गया..उनमें से ज्यादातर देशों के समुद्री किनारों पर ही आक्रमणकारी सबसे पहले पहुंचे थे. सन 1608 में East India Company के लोग भी सबसे पहले गुजरात के सूरत में समुद्र के रास्ते पहुंचे थे और फिर आगे चलकर ब्रिटेन ने भारत को कई वर्षों तक अपना उपनिवेश और गुलाम बनाकर ऱखा. और लगता है, चीन उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है. चीन इन सारी कोशिशों के ज़रिए पाकिस्तान को अपना आर्थिक उपनिवेश बना रहा है.

वर्ष 1998 में जब पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया था, तब पाकिस्तान के लोगों को लगा था कि अब वो सुरक्षित हो गए हैं. और उनका भविष्य उज्जवल है. लेकिन आज हालत ये है कि परमाणु बम होने के बावजूद पाकिस्तान, हाथ फैलाने वाला देश बनकर रह गया है . और कूटनीति की दुनिया में जो देश हाथ फैलाते हैं.. वो आर्थिक तंगी में फंसते चले जाते हैं.. और आखिर में उनके हाथ कट जाते हैं. परमाणु बम और भारत के प्रति नफरत पर आधारित कूटनीति से सिर्फ विनाशकारी भविष्य की कल्पना ही की जा सकती है. पाकिस्तान को अगर चीन की गुलामी से बचना है.. तो उसे अपना DNA बदलना होगा. वैसे DNA बदलना बहुत मुश्किल होता है.

 

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