पार्टी में खुद का कद न बढ़ पाने से इतनी आगबबूला थी सोनिया गांधी कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री के शव से भी लिया था बदला

28 जून को भारत के नौवें प्रधानमंत्री रह चुके पी.वी. नरसिम्हा राव का जन्मदिन होता है। 1991 से 1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे नरसिम्हा राव पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जो दक्षिण भारत से थे। राजनीती की समझ रखने वाले जानते हैं और मानते भी हैं कि नरसिम्हा राव को अपने कार्यकाल के दौरान भारत में आर्थिक मजबूती के लिए किए गए कई कामों के लिए जाना जाता है। कहते हैं जिस वक्त नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री पद की ज़िम्मेदारी दी गयी उस वक्त देश की आर्थिक स्थिति बहुत खराब चल रही थी। उस वक्त देश में विदेशी मुद्रा का भार बहुत अधिक था, तब देश की ऐसी स्थिति देखकर नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया और उनके साथ देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने की दिशा में कई महत्वपूर्ण काम किए।

कहा जाता है कि नरसिम्हा राव दक्षिण भारत के उन चुनिंदा लोगों में से थे जो इतने ऊंचे ओहदे तक ना सिर्फ पहंचे बल्कि उस पद की गरिमा बढ़ाने में शायद ही कोई कसर छोड़ी| पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने में उनका भाग्य का बहुत बड़ा हाथ था।  21 जून 1991 में राजीव गांधी की  दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद जब चुनाव हुए तो ऐसे में  कांग्रेस पार्टी को बेहिसाब सहानुभूति वोट मिला जिससे वो उन चुनाव में देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।  ज़ाहिर है चुनाव जीते तो सवाल खड़ा हुआ कि अब कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद पर किसको बैठाया जाये| इस मुद्दे को लाकर अब पार्टी में ज़ोरोशोरों से विचार किया जाने लगा गया| तब सोनिया गाँधी भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को देश का प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव लेकर आयीं लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था|  अपने पक्ष में लिए गए इस बड़े फैसले का शंकर दयाल ने सोनिया गाँधी को आभार व्यक्त तो किया लेकिन अपने बिगड़े स्वास्थ का हवाला देकर कहा कि वो इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं उठा पाएंगे और अंततः पार्टी ने नरसिम्हा राव को ये ज़िम्मेदारी सौंपने का फैसला किया|

बताया जाता है कि नरसिम्हा राव के बढ़ते राजनीतिक सफ़र को उस वक़्त बड़ा धक्का लगा था जब  उनके सामने 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया और वो कुछ नहीं कर पाए|  ख़बरों की माने तो बताया जाता है कि जिस वक़्त कारसेवकों द्वारा  मस्जिद को गिराया जा रहा था उस वक़्त नरसिम्हा राव अपने निवास के पूजाघर में बैठे हुए थे| कहते हैं वो वहाँ से तभी उठे जब मस्जिद का आख़िरी पत्थर हटा दिया गया|  देखा जाये तो नवंबर 1992 में दो विध्वंसों की योजना बनाई गई थी जिनमे से एक था बाबरी मस्जिद विध्वंस तो दूसरा था नरसिम्हा राव के राजनितिक भविष्य का विध्वंस|  अबतक नरसिम्हा राव को इस बात की ठीक-ठाक भनक लग चुकी थी कि बाबरी मस्जिद गिरे न गिरे उनके विरोधी अब किसी भी हाल में उन्हें 7- आरसीआर से बाहर खदेड़ना चाहते हैं|

हालाँकि नरसिम्हा राव को  कांग्रेस और देश का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी सोनिया गांधी ने ही दी थी लेकिन कुछ दिनों के अंदर ही दोनों के बीच ग़लतफ़हमियाँ पैदा हो गईं|  इसका एक तर्क ये भी दिया जाता है कि सोनिया गाँधी को उस समय राजनीति की ज्यादा समझ नहीं थी और शायद इसी वजह से धीरे-धीरे उन दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ती चली गईं| राजनीती में एक वक़्त ऐसा भी आया जब लगभग रोज़ फोन पर बात करने वाले नरसिम्हा राव और सोनिया गाँधी यहाँ भी एक दूसरे को नज़रंदाज़ करने लगे थे| बताया जाता है कि इन दोनों के बीच दूरियां इस कदर बढ़ चुकी थी कि अब सोनिया गाँधी नरसिम्हा राव का फोन तक होल्ड पर डाल दिया करती थीं| इसी वाकये का ज़िक्र करते हुए एक बार नरसिम्हा राव ने बताया था कि, “हालाँकि सोनिया द्वारा मेरा फ़ोन होल्ड पर किये जाने के मुद्दे पर  मुझे निजी तौर पर कोई एतराज़ नहीं है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को ज़रूर है|”

बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी अपने परिवार के कई लोगों के मरने के बाद चाहती थीं कि सत्ता उनके हाथ आए और पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री न बने, लेकिन सोनिया की चली नहीं और राव साहब देश 9वें प्रधानमंत्री बनें। सरकार कांग्रेस की थी लेकिन प्रधानमंत्री सोनिया गांधी नही नरसिम्हा राव थे और इसकी टीस सोनिया को अंदर-ही-अंदर खाए जा रही थी। सोनिया और नरसिम्हा राव के बीच नफरत के फावड़े ने इस कदर खाई खोद दी थी कि सोनिया गांधी नरसिम्हा राव को देखना भी नही पसंद करती थी फिर भी जैसे तैसे करके राव 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक, मतलब 4 साल और 330 दिन तक भारत के प्रधानमंत्री बने रहे। इस अंतर्विरोध से कांग्रेस में फूट की लौ जलनी शुरू हो चुकी थी।

प्रधानमंत्री पद जाने के बाद से नरसिम्हा राव की राजनीति धीरे-धीरे धूमिल हो रही थी और पार्टी के सभी बड़े फैसले सोनिया गांधी की चौखट से होने लगे। एक वक्त ऐसा भी आया जब सोनिया गांधी ने नरसिम्हा राव के साथ कुछ ऐसा कर दिया जिसे कोई अपने दुश्मन के साथ भी न करता हो। बात 2004 की है जब नरसिम्हा राव का निधन हुआ तो उनकी लाश के साथ ऐसी बर्बरता हुई कि वहां उपस्थित सभी लोगों की रूह कांप गई।

 

नरसिम्हा राव के जीवन की साँध्यबेला में स्वयं उनकी पार्टी ने उनसे किनारा कर लिया| वो बहुत एकाकी और अपमानित होकर इस दुनिया से विदा हुए| न सिर्फ़ उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया गया, बल्कि उनके पार्थिव शरीर को भी कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड के अंदर नहीं आने दिया गया|

 

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