प्रधानमंत्री जी जरा, इस पर भी भागीदारी देख लें

भूख से मौत मामले में भारत 67वें नंबर पर

राजेश श्रीवास्तव 

एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास और नये भारत की बात कर रहे हैं। लेकिन आज के इस आधुनिक दौर में भी क्या कोई भूख से मौत की बात की कल्पना कर सकता है। जी हां, यह कोरी कल्पना नहीं बीते दिनों दिल्ली में तीन मासूम बच्चियों की मौत ने पूरे देश को हिला कर ररख दिया। लेकिन केंद्र और दिल्ली सरकार ने एक-दूसरे पर मामला डाल कर मामले की इतिश्री कर दी। आखिर कोई क्यों इसे मुद्दा बनाये, इनका कोई वोट बैंक तो है नहीं। प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि वह गरीबों के भागीदार हैं। मैं भागीदार हूं गरीबों की तकलीफों का, मैं भागीदार हूं उस मां की पीड़ा का जो चूल्हे के धुएं में आंखें खराब करती है। मैं भागीदार हूं उस किसान के दर्द का जिसकी फसल सूखे या पाले में बर्बाद हो जाती है, मैं भागीदार हूं उस गरीब परिवार की पीड़ा का जो इलाज के लिए जमीन बेचने को मजबूर हो जाता था। मैं भागीदार हूं उस कोशिश का जो गरीबों को छत दे रही है। मैं भागीदार हूं उस कोशिश का जो युवाओं को रोजगार के अवसर उलब्ध कराए। गरीबी ने मुझे ईमानदारी व हिम्मत दी है। गरीबी की मार को झेला है, देखा है। तो क्या इन बच्चों की भूख मिटाने का भागीदार कोई और बनेगा। भारत ने तरक्की की राह पर लंबा सफर तय तो कर लिया लेकिन लोगों की भूख मिटाने में उसे अब तक कामयाबी नहीं मिली। हर दिन दो वक्त की रोटी से महरूम लोगों की तादाद में कोई खास कमी नहीं आई है। अमेरिकी नीति निर्धारण संस्था का दावा है कि दुनिया भर में 92.5 करोड़ लोग भूख और कुपोषण के शिकार है। हर छह सेकेंड में कहीं न कहीं कोई बच्चा भूख के कारण दम तोड़ रहा है। भारत में भी उसके पड़ोसी देशों के मुकाबले भूखे पेट सोने वाले लोगों की तादाद कहीं ज्यादा है। अमेरिका में नीतियां बनाने वाली संस्था आईएफपीआरआई के रिसर्च में सामने आए नतीजे चौकाने वाले हैं। संस्था के मुताबिक 84 देशों की सूची में भारत 67वें नंबर पर है जो एक खतरनाक संकेत है। विकास की तेज रफ्तार ने भूखे लोगों की संख्या कम करने में कोई भूमिका नहीं निभाई है। आईएफपीआरआई ने दुनिया के अलग अलग देशों में भूखे लोगों की संख्या के आधार पर इस साल का हंगर इंडेक्स तैयार किया है। संस्था के एशिया निदेशक अशोक गुलाटी कहते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था भारत से चार गुनी बड़ी है और उसने अपने देश में भूखे लोगों की संख्या को कम करने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। नतीजा ये हुआ है कि चीन इस सूची में नौवें नंबर पर पहुंच गया है। 2००9-1० में भारत की अर्थव्यवस्था का विकास दर 7.4 फीसदी रहा है जबकि इस साल ये दर 8.5 फीसदी रहने की उम्मीद है। अशोक गुलाटी ने बताया कि चीन ने अर्थव्यवस्था के विकास के साथ ही एक तरफ कृषि क्षेत्र में सुधार किए हैं तो दूसरी तरफ उत्पादन और सेवा क्षेत्र को भी बेहतर बनाया है। इसके विपरीत भारत के विकास की कहानी मुख्य रुप से सेवा क्षेत्र के विकास पर आधारित है उसमें भी आईटी और टेलिकॉम सेवा की इसमें ज्यादा बड़ी भूमिका है। भारतीय खेती आज भी सुधार होने के इंतजार में है। इतना ही नहीं आर्थिक मामले में पिछड़ा होने के बावजूद पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका ने अपने नागरिकों की भूख मिटाने में अच्छी सफलता पाई है। इस सूची में श्रीलंका 39वें नंबर पर है जबकि म्यांमार 5०वें नंबर पर और पाकिस्तान 52वें नंबर पर। बांग्लादेश भारत से सिर्फ एक स्थान नीचे है 68वें नंबर पर। गुलाटी ने बताया कि कृषि में एक फीसदी का सुधार भूखे लोगों की तादाद 2 से 3 फीसदी की कमी लाता है। फिलहाल खेती को सुधारने के लिए कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा। खासतौर से सेवा और आईटी क्षेत्र के लिए जितना कुछ किया जा रहा है उसके मुकाबले तो खेती कहीं टिकती ही नहीं। भारतीय खेती की विकास दर 2००9-1० में घट कर ०.2 फीसदी रह गई जबकि पिछले साल ये 1.2 फीसदी थी। इस वर्ष के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक सूची में निचले स्थान पर मौजूद भारत में बच्चों का जरूरत से कम वजन होना आम बात है। इसकी वजह महिलाओं की खराब दशा जिन्हें भोजन भरपेट नहीं मिलता।

 

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