बलात्कारियों के लिए मौत की सज़ा मांगने वाले लोग अपनी दूषित सोच को फांसी नहीं देना चाहते, भारत में हर 14 मिनट में होती है रेप की एक घटना!

नई दिल्ली। आज से ठीक तीन वर्ष पहले दिल्ली की सड़कों पर एक गैंगरेप हुआ था और इस गैंगरेप ने देश के मन में मौजूद आंदोलन की चिंगारी को आग बनाने का काम किया था। सामूहिक बलात्कार की इस वारदात को देश निर्भया रेप केस के नाम से जानता है। 16 दिसंबर 2012 के बाद से हर साल इसी दिन निर्भया को याद किया जाता है। 16 दिसंबर की तारीख को एक तरह से देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाली आपराधिक घटनाओं की राष्ट्रीय समीक्षा का दिन बना दिया गया है।

– बहुत कम लोगों को ये याद होगा कि निर्भया का जन्म 10 मई 1988 को हुआ था और वारदात के 13 दिन बाद 29 दिसंबर 2012 को निर्भया ने सिंगापुर के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली। हम आपको देश को नींद से जगाने वाले कुछ आंकड़े दिखाते हैं जिन्हें जानना जरूरी है–

– नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2014 के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर एक घंटे में 4 रेप की वारदात होती हैं। यानी हर 14 मिनट में रेप की एक वारदात सामने आती है।

– 2014 में रेप के कुल 36 हज़ार 975 मामले दर्ज हुए। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक औसतन हर 2 दिन में पुलिस कस्टडी में कम से कम एक रेप की वारदात होती है और हर वर्ष पुलिस कस्टडी में करीब 197 रेप होते हैं।

– 2014 में पुलिस कस्टडी में हुई गैंग रेप की वारदात की संख्या 7 है।

– देश में औसतन हर 4 घंटे में एक गैंग रेप की वारदात होती है।

– वर्ष 2014 में गैंग रेप के कुल 2361 मामले दर्ज किए गए थे।

– हर दो घंटे में रेप की एक नाकाम कोशिश को अंजाम दिया जाता है।

– हर 13 घंटे में एक महिला अपने किसी करीबी के द्वारा ही रेप की शिकार होती है।

– वर्ष 2014 में रेप की 674 वारदात को महिला के करीबियों ने ही अंजाम दिया।

– 6 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ भी हर 17 घंटे में एक रेप की वारदात को अंजाम दिया जाता है

– महिलाओं के यौन उत्पीड़न और बलात्कार के 31 फीसदी मामले अभी अदालत में लंबित हैं

निर्भया बलात्कार केस के बाद कानूनों में बदलाव किये गये, कानूनों को पहले से ज्यादा सख्त बनाया गया इस उम्मीद में कि शायद महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक वारदात कुछ कम होंगी लेकिन आंकड़े ये बताते हैं कि ना तो महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में कमी आई और ना ही उन्हें न्याय दिलाने की प्रक्रिया ने रफ्तार पकड़ी–

– यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को जल्द से जल्द न्याय दिलाने के लिए देश में 275 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए हैं लेकिन ये कोर्ट भी महिलाओं को कम वक्त में न्याय दिलाने में कामयाब नहीं हो पा रहे।

– महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े 332 से ज्यादा मामले इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।

– देश भर की उच्च न्यायालयों में ऐसे लंबित मामलों की संख्या 31 हज़ार 386 है।

– देश की निचली अदालतों में 95 हज़ार से ज्यादा महिलाओं को न्याय का इंतज़ार है।

Criminal law Amendment Act 2013 कहता है कि रेप के मामलों की सुनवाई निश्चित समय में पूरी की जानी चाहिए लेकिन बहुत कम मामलों में ही ऐसा हो पाता है। अब हम आपको महिलाओं के यौन उत्पीड़न के कुछ चर्चित मामलों और अदालत में उनकी स्थिति के बारे में बताते हैं–

– तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल पर नंवबर 2013 में महिला सहकर्मी का यौन शोषण करने के आरोप लगे। इस मामले में उन्हे जेल भी जाना पड़ा लेकिन जुलाई 2014 में उन्हे बेल मिल गई और 2 वर्ष बाद भी अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू होने का इंतजार किया जा रहा है।

-आध्यात्मिक गुरु आसाराम पर एक नाबालिग समेत 3 महिलाओं के यौन उत्पीड़न और रेप के आरोप लगे। आसाराम को सितंबर 2013 में पुलिस ने गिरफ्तार किया और वो तब से जोधपुर की जेल में बंद हैं लेकिन 2 वर्ष और 2 महीने बीत जाने के बाद भी इस मामले का ट्रायल अभी बाकी है।

– मुंबई के शक्ति मिल रेप केस में पीड़ित को न्याय तो मिल गया लेकिन दोषियों की सज़ा पर अभी तक अमल नहीं हो पाया है। इस मामले में एक नाबालिग समेत पांच लोगों पर महिला के साथ गैंगरेप के आरोप लगे थे। दोषियों को अगस्त 2013 में गिरफ्तार कर लिया गया था और अप्रैल 2014 में मुंबई सेशन कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाई जिसके बाद दोषियों ने हाईकोर्ट का रुख किया और बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभी तक इस मामले पर कोई फैसला नहीं सुनाया है।

– दिल्ली में जनवरी 2014 में डेनमार्क की एक महिला के साथ 3 नाबालिगों सहित कुल 9 लोगों ने गैंगरेप किया था। पुलिस ने दोषियों को गिरफ्तार भी कर लिया लेकिन करीब 2 साल बाद भी इस मामले में अभी तक बयान ही दर्ज किए जा रहे हैं।

अगर आपसे ये पूछा जाए कि एक बलात्कारी को क्या सज़ा मिलनी चाहिए? तो आपमें से बहुत से लोग कहेंगे फांसी की सज़ा लेकिन हैरानी की बात ये है कि बलात्कारियों के लिए मौत की सज़ा मांगने वाले लोग अपनी दूषित सोच को फांसी नहीं देना चाहते। आज हमारे पास देश के युवा छात्रों की सोच से जुड़े कुछ चिंताजनक आंकड़े हैं। Indian Market Research Bureau के एक सर्वे के मुताबिक– 

– कॉलेज में पढ़ने वाले 65 फीसदी छात्र मानते हैं कि दो अलग-अलग धर्मों के लड़के-लड़कियों को सार्वजनिक जगह पर नहीं मिलना चाहिए।

– कॉलेज में पढ़ने वाले 44 फीसदी छात्र मानते हैं कि महिलाओं के पास हिंसा स्वीकरने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

– 51 फीसदी छात्रों ने इस सर्वे ने कहा कि महिलाओं के घर से बाहर निकलने की बजाय घर का कामकाज संभालना चाहिए और बच्चों की देखभाल करनी चाहिए।

आपको याद होगा, फरवरी 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने अपने केंद्रीय बजट में से महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक हज़ार करोड़ रुपयों का निर्भया फंड शुरू किया था। वर्ष 2013-14 से लेकर 2015-16 तक इस फंड में तीन हज़ार करोड़ रूपये दिए जा चुके हैं।

– Ministry of Women and Child Development को इस फंड के सही इस्तेमाल का काम सौंपा गया है। अलग-अलग मंत्रालय और सभी राज्य सरकारें महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए अपने प्रस्ताव भेजकर निर्भया फंड से रकम ले सकती हैं।

– दुखद सच्चाई ये है निर्भया फंड लागू किए जाने के बाद से लेकर अब तक इसमें 2 हज़ार करोड़ रूपये की वृद्धि होने के बावजूद ज़मीनी स्तर पर महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित ठोस कदम दिखाई नहीं दे रहे हैं।

– Ministry of Home Affairs यानी गृह मंत्रालय ने GPS यानी Global Positioning System के लिए Computer Aided Dispatch Platform तैयार करने की योजना बनाई थी जिसकी मदद से पुलिस को जल्द से जल्द पीड़ित महिला के पास पहुंचने में मदद मिलती। ये प्रोजेक्ट 114 अलग-अलग शहरों में लागू किया जाना है। निर्भया फंड से इस प्रोजेक्ट के लिए 321 करोड़ रुपये की रकम भी दे दी गई है लेकिन फिलहाल ज़मीनी स्तर पर कोई काम होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है।

– Ministry of Women and Child Development ने पीड़ित महिला की मदद के लिए दो योजनाएं लागू किए जाने की बात कही थी जिनमें से एक थी हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए One Stop Centre बनाने की योजना। ये 18 करोड़ 58 लाख रुपये की लागत से बननी थी जबकि दूसरी योजना थी Women Helpline की जिसकी लागत 69 करोड़ 49 लाख रुपये थी। इसके लिए वित्तीय वर्ष 2015-16 में रकम जारी करने की अनुमति भी मिल गई थी लेकिन कर्नाटक और केरल को छोड़कर किसी भी दूसरे राज्य ने इस पर अपना Proposal नहीं भेजा है।

– NCRB यानी National Crime Records Bureau के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2012 में जहां 85 महिलाएं एसिड अटैक का शिकार हुईं थीं। वर्ष 2013 में आंकड़ा बढ़कर 128 और 2014 में 137 तक पहुंच गया।

– सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑर्डर में एसिड की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने की बात भी कही थी लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि आज भी पूरे देश में बिना किसी रोक-टोक के एसिड की बिक्री हो रही है।

– सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि एसिड अटैक की पीड़ित को ना केवल मुफ्त इलाज मिले बल्कि उसे कम से कम 3 लाख रुपए का मुआवज़ा भी दिया जाए।

– एसिड अटैक के मामलों से निपटने के लिए Indian Penal Code में सेक्शन 326A और 326B शामिल किया गया है जिसके तहत
कम से कम 10 साल जेल की सज़ा का प्रावधान है जिसे उम्र क़ैद में भी तब्दील किया जा सकता है।

– गृह मंत्रालय एसिड की बिक्री पर नज़र रखने के लिए एक web based application पर भी काम कर रही है।

– आपको ये जानकर हैरानी होगी कि कंबोडिया के बाद एसिड अटैक के मामलों में बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत का नाम आता है।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Back to top button