बलात्कार का आरोपी भी रह चुका है मौत का सौदागर डॉक्टर कफील. नर्स की इज्जत की थी तार तार

 लखनऊ/ गोरखपुर। वेदों के अनुसार जो किसी भी बात को बिना सोचे समझे व् उसकी तह तक गए मान ले वो मूर्ख होता है और विद्वान व्यक्ति की यही निशानी होती है कि वो हर बात की तह तक जाता है और उसके पूर्ण परीक्षण के बाद ही उसको सही या गलत मानता है . अचानक ही एक नया मसीहा खोज कर जिस कफील खान को मीडिया ट्रायल के माध्यम से मसीहा बनाने की कोशिश हो रही थी वो अचानक ही सबके सामने असली रूप में आने लगी है और मसीहा बनने की ख़ुशी में बार बार कभी इस मीडिया तो कभी उस मीडिया के चक्कर लगाता कफील खान असल में एक बेहद ही चरित्रहीन व्यक्ति हो कर सामने आ रहा है।

ज्ञात हो कि कई मासूमो की असमय मौत से अचानक ही सुर्ख़ियों में आ गए गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में जिस डॉक्टर कफील अहमद खान को जिस प्रकार एक वर्ग को बार बार उठाने वाली और दूसरे वर्ग को हमेशा गलत बताने वाली समूह मीडिया ने फरिश्ता बना दिया उस के ऊपर पहले एक निहायत ही निकृष्ट कुकर्म अर्थात बलात्कार का आरोप लग चुका है और इतना ही नाह उस मामले में इस कफील खान ने उस पीडिता को मार डालने की धमकी दी , उसका मुह बंद रखने के लिए ढेरों पैसे आफर किया और यहाँ तक कि उसके परिवार वालों पर भी हर सम्भव दबाव बनाया पर वो लड़की ना ही झुकी और ना ही विचलित हुई।

एक महिला नर्स ने उस पर अपने ही क्लीनिक में बलात्कार का आरोप लगाया था जिसके बाद ये डॉक्टर पहली बार सुर्खियों में आया था , अपने उस मामले को इसने बेहद साजिशन दबवा दिया था और वहीँ से इसको मीडिया आदि के साथ पेश होना और गलत को सही साबित करना आया था जिसका इतेमाल इसने इस गोरखपुर के बेहद संवेदनशील मामले में खुद को चर्चित करने के लिए बाखूबी किया था . सूत्रों की माने तो ये आरोपी डाक्टर बलात्कार के इस मामले में कफील एक साल तक जेल की हवा भी खा चुका है। प्राइवेट प्रैक्टिस के चलते अथाह रुपया कमा चुका ये डाक्टर काफिल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में नौकरी करता है लेकिन उसका खुद का बड़ा नर्सिंग होम भी खोल रखा है जहाँ ये सरकारी अस्पताल से कहीं ज्यादा समय और ध्यान देता है जबकि इसकी जिम्मेदारी सरकारी अस्पताल के दायित्व की ज्यादा थी।

बताया जा रहा है कि वो अपने खुद के नर्सिंग होम में सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक मरीजों को देखता है जो इस बात की गवाह है कि कफील का कितना ध्यान अपनी सरकारी नौकरी और सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीजों पर देता है .. कफील ने लोकल के साथ बड़ी शख्सियतों से अपने कमाए गए अथाह पैसे के दम पर कई दोस्त बना लिए थे और उसने मीडिया की कमजोर नस भी खोज ली थी जिसमे कईयों को अक्सर मुस्लिम मसीहा की तलाश होती है . इस बार इस बेहद संवेदनशील मामले में जिसमे शायद हर व्यक्ति की आँखे जब नम थी तब कफील ने इसमें भी अपने लिए एक मौका खोजा और अपने पैसे के बनाए दम पर उन्ही लोगों का उपयोग किया . उसका वार सही जगह लगा और अचानक ही मीडिया ने भारत को एक बार फिर एक मुस्लिम मसीहा दे दिया वो भी एक भगवाधारी , कर्तव्य परायण मुख्यमंत्री को बदनाम करने की कोशिश के साथ।

एक महिला नर्स ने आरोप लगाया था कि 15 मार्च 2015 जब सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब उस नर्स को कफील और उसके भाई कासिफ जमील ने नौकरी के बहाने क्लीनिक में बुलाकर उसके साथ बलात्कार किया था। पीडिता नर्स जब शिकायत दर्ज कराने थाने गई तो उसे भगा दिया गया क्योंकि बताया जा रहा है कि डाक्टर साहब समाजवादी पार्टी के बेहद करीबी हैं और पुलिस उनके रसूख के आगे उस पीडिता की नहीं सुन सकती थी .. जैसे तैसे 19 अप्रैल को पुलिस ने केस तो दर्ज कर लिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की साथ ही किनारे से डाक्टर को साफ़ बच निकलने का रास्ता बनाती रही . जब समाजवादी शासन में पीडिता को कहीं इन्साफ नहीं मिला तब उसने मजबूर हो कर इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली और न्यायाधीश महोदय ने तीन माह में कार्यवाही के आदेश पुलिस को दिए .. इस बीच में पीडिता हर दिन हर पल खौफ , धमकी के साए में जीती रही।
यहाँ ध्यान देने योग्य ये है कि डॉक्टर कफील का रसूख ऐसा था कि उसको हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस ने उस पर कोई कार्यवाही नहीं की और थक हार कर पीडिता ने एक बार फिर क नर्स ने इंसाफ के लिए कई जगह चक्कर लगाए, आखिर में हारकर वो हाई कोर्ट की शरण में गई। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज ने तीन महीने के अंदर कार्रवाई का आदेश दिया। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। छह महीने बाद महिला ने हाई कोर्ट में अवमानना की याचिका दी और इंसाफ की गुहार लगाई। 30 जनवरी 2016 को इलाहाबाद हाई कोर्टगोरखपुर के एसएसपी लव कुमार को आदेश दिया कि वो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित कराएं।
इसके बाद एसएसपी ने कोतवाली थाने के एसओ को आदेश जारी किए और इसके बाद डॉक्टर कफील अहमद को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। कुछ दिन बाद जमानत पर छूटकर कफील ने फिर से अपना धंधा शुरू कर दिया। अभी रेप का मामला कोर्ट में चल रहा है। मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों को भी इस केस की जानकारी है लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उलटा उसे अस्पताल की परचेज कमेटी का इंचार्ज बना दिया गया। कफील के खिलाफ रेप का आरोप लगने के बाद ये मामला गोरखपुर की लोकल मीडिया की सुर्खियों में रहा था। लेकिन कफील ने बहुत सारे पत्रकारों को भी झांसे में ले रखा है, यहां तक कि उसकी गिरफ्तारी और जेल जाने की खबर किसी अखबार ने नहीं छापी। बदले में कफील ने अखबारों को अपने क्लीनिक का विज्ञापन उन्हें उपहार स्वरूप दिया था ।
 

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