बसपा के असंतुष्ट बनेंगे भाजपा की मुसीबत

Page-1_1_22कुमार श्यामल

दिल्ली में पैराशूट नेताओं की आमद और उसके परिणाम एवं मीडिया द्वारा चेताए जाने के बाद यूपी भाजपा ने चित्रकूट में मंथन किया कि वह किसी भी दूसरे दल के असंतुष्टï नेताओं को भाजपा में या तो आने नहीं देंगे या फिर किसी बड़े पद पर काबिज नहीं होने देंगे। भाजपा के मंथन से ऐसा लगा था कि दिल्ली की गल्ती से यूपी की भाजपा चेत गई है, लेकिन जिस तरह से पार्टी के बड़े नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते दूसरे दलों के असंतुष्टïों को आर्थिक योगदान के चलते पार्टी में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं वह बेहद खतरनाक है। पार्टी के बड़े नेता स्वयं तो नहीं लेकिन अपने रिश्तेदारों को बीच में रखते हुए इस तरह की घटिया हरकत करते मिल जाएंगे। काफी दिनों पहले इस सिलसिले में गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे का भी नाम उछला था। उन पर यह भी आरोप लगा कि पार्टी की छवि को दरकिनार करते हुए राजनाथ सिंह के बेटे ने पैसे लेकर टिकट देने की परंपरा शुरू की थी। जिसका पूरे दल ने विरोध भी किया था। पार्टी इस समय विकास की बातें कर रही है जो जनता को बेहद पसंद आ रही है और शायद आम जनता ऐसे ही दल का और ऐसे ही नेताओं का इंतजार कर रहे हैं जो उनके विकास की बात करे। पार्टी के विकास के एजेंडे को जहां लोकसभा में जबरदस्त बढ़त मिली उसके बाद राजस्थान, हरियाणा, जम्मू कश्मीर में भी भाजपा के विकास के एजेंडे को जनता ने खुशी-खुशी स्वीकारा। दिल्ली में भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी, लेकिन आखिरी समय में बाकी दूसरे दलों के असंतुष्टïों को भाजपा में सम्मिलित करना और तो और अपने पुराने नेताओं के टिकट काटकर उन पैराशूट नेताओं को टिकट देना भाजपा के लिए विष का काम किया। आई वॉच इंडिया ने भाजपा को उसकी इसी गल्ती की चेतावनी दी थी। उस चेतावनी का ही नतीजा था कि उत्तर प्रदेश भाजपा चित्रकूट में इस मुद्दे पर मंथन करने के लिए मजबूर हो गई कि उन्हें उत्तर प्रदेश में भी दिल्ली जैसी गल्ती नहीं करनी है। पार्टी का यह सोचना बहुत ही सार्थक परिणाम लाएगा लेकिन पार्टी को अपने उन नेताओं पर भी नजर रखनी होगी जो पार्टी के हित को दरकिनार करते हुए इन पैराशूट नेताओं को पार्टी में सम्मिलित करना चाहते हैं। भारतीय जनता पार्टी में भी कुछ बड़े नेता ऐसे हैं जो सिर्फ और सिर्फ स्वयं की खुशी को ज्यादा तवज्जो देते हैं, पार्टी की मर्यादाओं को दरकिनार करते हुए। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा बहुजन समाज पार्टी के असंतुष्टï और निष्कासित नेताओं से खतरा है। बसपा के ये नेता हर संभव प्रयास करके भाजपा में शामिल होने की चेष्टïा में लगे हुए हैं। इन नेताओं को भाजपा का भविष्य फिलवक्त सबसे ज्यादा उज्ज्वल दिख रहा है। उसी के चलते वह पार्टी में आने और उचित स्थान पाने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती का अपने पुराने वोट बैंक की तरफ रुख करने के चलते पार्टी के सवर्णों में खलबली मची हुई है। इस सवर्णों को अहसास हो गया है कि आने वाले समय में इनका अस्तित्व बहुजन समाज पार्टी में कुछ भी नहीं होगा। उसी बौखलाहट का नतीजा होगा कि ये सारे असंतुष्टï अपना रुख भारतीय जनता पार्टी की तरफ कर रहे हैं। जब बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार थी तो इन्हीं सवर्णों की कार्यशैली से जनता की नाराजगी पार्टी को प्रदेश की सरकार से हटा दिया था। सरकार जाने के बाद बसपा सुप्रीमो को इसका अहसास हुआ उसी के चलते मायावती अपना ध्यान फिर से अपने दलित वोटरों की तरफ लगा रही हैं। इसका प्रमाण उन्होंने एमएलसी चुनाव के दौरान भी दे दिया था। इतना तो तय है कि 2017 का चुनाव पूर्णतया भाजपा और बसपा के बीच लड़ा जाएगा और इस लड़ाई में सबको भरोसा है कि भारतीय जनता पार्टी अपार बहुमत के साथ सरकार में आएगी और इसी भरोसे ने बाकी दलों के असंतुष्टïों को भाजपा की तरफ आकर्षित कर दिया है, लेकिन इन बागी नेताओं का भाजपा के प्रति आकर्षण उत्तर प्रदेश में भाजपा के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा साबित होगा।
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