बागी IAS सूर्य प्रताप का CM पर बड़ा हमला, ड्रीम प्रोजेक्ट से चहेतों की चांदी

surya-pratap-singh1तहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, लखनऊ।  सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा आईपीएस अमिताभ ठाकुर को कथित तौर पर धमकाने का मामला शांत नहीं हुआ कि बागी आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह ने सीएम अखिलेश के ड्रीम प्रोजेक्ट पर गंभीर सवाल उठा दिए हैं। फेसबुक पर सूर्य प्रताप सिंह ने कहा है कि 15 हजार करोड़ रुपए का लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट इटावा, कन्नौज और चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है।
आईएएस का दावा है कि प्रोजेक्ट का प्लान लीक कर दिया गया। सत्ता पक्ष के नेताओं, दबंगों और नौकरशाहों ने ले आउट में पड़ने वाली और आसपास की जमीनों को किसानों से सस्ते दर पर खरीद लिया। फिर कलेक्टर से मनमाफिक सर्किल रेट बढ़वाए। इसके बाद इनकी जमीन का चार गुना रेट पर अधिग्रहण कर लिया गया। लखनऊ, उन्नाव, कन्नौज, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, इटावा, मैनपुरी आदि 10 जनपदों में अब तक कुल 27 हजार रजिस्ट्रियां हुई हैं। इनमें से 15-20 हजार इन्हीं लोगों की हैं।

सूर्य प्रताप सिंह के मुताबिक 15 मई 2015 तक 3,287.73 हेक्टेयर भूमि अर्जित की जा चुकी है। 160.28 बहुफसली भूमि का अधिग्रहण किया गया। इटावा जनपद में सैकड़ों किसानों ने 13 अक्टूबर 2014 को भूख हड़ताल किया था। उनकी मांग थी कि सैफई के बराबर ही उन्हें भी मुआवजा दिया जाए। कन्नौज जनपद में धरना देते हुए एक किसान की मौत हो गई। इटावा जनपद की इटावा और ताखा तहसील में किसानों को 15-20 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजा दिया गया है, जबकि सैफई में 1.20 से 1.25 करोड़ रुपए करोड़ प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा दिया गया है। आईएएस अफसर का दावा है कि लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट को इटावा-कन्नौज को फायदा पहुंचाने के लिए ही बनाया गया है। पहले इसका रूट 270 किलोमीटर का था, लेकिन सैफई को जोड़ने के लिए 38 किलोमीटर बढ़ा दिया गया। इसके अलावा इसे छह लेन से बढ़ाकर आठ लेन का कर दिया गया। पहले आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे ऊसर भूमि से गुजर रहा था, लेकिन बाद में पांच गांवों की उपजाऊ जमीन को कुछ किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए यह मार्ग बदला गया। सूर्य प्रताप सिंह के मुताबिक, प्रोजेक्ट को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशि‍प) मोड पर पूरा करने का फैसला किया गया। 24 मई 2013 को प्री-बिड कांफ्रेंस में 15 कंपनियों ने भाग लिया, लेकिन किसी भी निवेशक ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। सरकार ने लैंड पार्सल और टोल इनकम का प्रस्ताव रखा। फिर भी कोई तैयार नहीं हुआ। यहां तक कि यमुना एक्सप्रेस-वे को बना चुकी जेपी एसोसिएट/इन्फ्रा ने भी इसे फिजिबल नहीं माना। इसका मुख्य कारण, इस मार्ग पर कम ट्रैफिक होना है। फिर भी यूपी सरकार ने टैक्स पेअर्स के पैसे से नकद अनुबंध पर प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का फैसला किया।

20 हजार करोड़ तक जाएगी लागत
सूर्य प्रताप सिंह का कहना है कि पीपीपी मोड में यह लागत करीब पांच हजार करोड़ रुपए आंकी गई थी, जो लगातार बढ़ती जा रही है। यह लागत दिसंबर 2013 में 8,944 करोड़ रुपए थी। अब यह बढ़कर 15 हजार करोड़ रुपए हो चुकी है। प्रोजेक्ट पूरा होने तक लागत 20 हजार करोड़ रुपए हो सकती है। 165 किलोमीटर लंबे यमुना एक्सप्रेस-वे को वर्ष 2012 में 12,839 करोड़ रुपए की लागत से बनाना बताया गया था। कैग के अनुसार इसमें राज्य सरकार को 1.68 लाख करोड़ रुपए का चूना लगाया गया। अधिक समय तक और अधिक टोल वसूलने के चक्कर में इस प्रोजेक्ट को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। वास्तविक लागत 4,488 करोड़ रुपए ही थी।
दो वैकल्पिक रास्ते मौजूद
आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह ने लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पहले से ही दो मार्ग मौजूद हैं। पहला NH 2/SH-62: लखनऊ-आगरा वाया कानपुर-इटावा-फिरोजाबाद। 367 किलोमीटर की दूरी कार से 6.10 घंटे या फिर वाया फतेहाबाद 360 किलोमीटर की दूरी 6.16 घंटे में पूरी की जा सकती है। दूसरा NH-91/NH-93 से लखनऊ-कन्नौज-एटा-आगरा होते हुए 354 किलोमीटर का सफर साढ़े सात घंटे में पूरा हो सकता है। लखनऊ-आगरा के बीच इतने टूरिस्ट तो नहीं हैं कि 2-3 घंटे का सफर कम करने के लिए 15 हजार करोड़ रुपए खर्च कर दिए जाएं।
 

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