बीजेपी-टीएमसी के बीच राजनीतिक अखाड़ा बना असम NRC ड्राफ्ट, कांग्रेस बैकफुट पर

नई दिल्ली। एनआरसी को लेकर हंगामा जारी है. विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना लिया है. संसद में भी इस मसले को लेकर बवाल चल रहा है. दोनों पक्ष इस मसले को तूल दे रहे हैं. विपक्ष की तरफ से लोकसभा में दो स्थगन प्रस्ताव भी दिया गया है. एक कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी की तरफ से दूसरा टीएमसी के सौगत राय की तरफ से. वहीं टीएमसी की अध्यक्ष के दिल्ली दौरे से इस मामले में और भी राजनीतिक उबाल आ गया है. ममता बनर्जी ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की है, वहीं बीजेपी के दो बागी नेताओं के साथ इस पूरे मसले पर राय मशविरा कर रही हैं, जिसमें यशंवत सिन्हा और राम जेठमलानी शामिल हैं.

टीएमसी के सांसदों ने संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने धरना भी दिया है. टीएमसी सांसदो का एक दल हालात का जायज़ा लेने के लिए असम जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि एनआरसी का मसला एकबार फिर बीजेपी और टीएमसी के बीच फ्लैश प्वाइंट बनता जा रहा है. टीएमसी उन 40 लाख लोगों को बंगाल में बसाने की पेशकश कर रही है. वहीं बीजेपी बंगाल में एनआरसी जैसी प्रक्रिया अपनाने को लेकर बयानबाज़ी कर रही है. हालांकि इस पूरे राजनीतिक माहौल में कांग्रेस अलग-थलग दिखाई दे रही है. वैसे राज्यसभा में कांग्रेस ने इस मसले को पुरज़ोर ढंग से उठाने का प्रयास किया है.

ममता-माया साथ-साथ

इस पूरे मामले में ममता बनर्जी ने राजनीतिक बाज़ी मार ली है. ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इस मुद्दे पर विपक्ष उनके पीछे खड़ा हुआ है. मायावती ने सरकार से सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है. मायावती ने ममता के सुर में सुर मिलाया है. दोनों का आरोप है कि सरकार इस मुद्दे को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रही है. मायावती ने आरोप लगाया है कि सरकार इसका चुनावी फायदा उठाना चाहती है. बीएसपी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि असम में रह रहे 40 लाख से अधिक धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के नागरिकता को ही समाप्त करके बीजेपी की केंद्र और असम सरकार ने अपनी स्थापना के संकीर्ण और विभाजनकारी राजनीतिक मकसद को हासिल कर लिया है. लेकिन इससे जो नई उन्मादी समस्या पैदा हो रही है उसके दुष्प्रभाव को संभालना मुश्किल होगा. इसलिए सरकार को बैठक बुलाकर इसपर सुरक्षात्मक कार्रवाई करनी चाहिए.

बीजेपी का रूख सख्त

इस मसले को लेकर राज्यसभा में भी काफी हंगामा हुआ है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस को घेरा है. अमित शाह ने कहा कि एनआरसी कांग्रेस लेकर आई है. ये राजीव गांधी के वक्त असम एकॉर्ड का हिस्सा था. लेकिन इसको लागू नहीं किया गया था. बीजेपी की सरकार आने पर लागू किया गया है, क्योंकि बीजेपी ने हिम्मत दिखाई है.

ज़ाहिर है कि अमित शाह को लग रहा है कि बीजेपी के लिए एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा साबित हो सकता है इसलिए बीजेपी इस मसले पर कांग्रेस को घेर रही है. बीजेपी को चुनाव से पहले इतना बढ़िया मुद्दा नहीं मिल सकता है. बीजेपी लगातार कहती रही है कि असम में अवैध रूप से विदेशी बंग्लादेशी नागरिक रह रहे हैं, जिससे निजात पाना ज़रूरी है. हालांकि, एनआरसी का ये फाइनल ड्राफ्ट नहीं है लेकिन 40 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल खड़ा हो गया है. बीजेपी ने इस मुद्दे को बढ़ाते हुए बंगाल को भी घेरने की कोशिश की है. बीजेपी के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि बीजेपी को बंगाल की सत्ता हासिल हुई तो राज्य में एनआरसी की व्यवस्था लागू करेगी. ज़ाहिर है कि निशाने पर ममता बनर्जी हैं. बीजेपी का आरोप है कि टीएमसी अवैध रूप से रह रहे लोगों को भारत में बसाने का प्रयास कर रही है. बंगाल में बीजेपी की जद्दोजहद जारी है. पार्टी अपने विस्तार के लिए मुद्दों की तलाश में है.

कांग्रेस बैकफुट पर

इस मसले को लेकर कांग्रेस परेशान है. बंगाल में पार्टी की स्थिति और खराब हो सकती है. इसका उदाहरण संसद परिसर में देखने को मिला है. जब केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी चौबे और कांग्रेस के नेता प्रदीप भट्टाचार्य में तीखी बहस हो गई. इससे पता चलता है कि कांग्रेस के बंगाल के नेता किस तरह दबाव में हैं. कांग्रेस को लग रहा है कि बंगाल में बचा-खुचा कांग्रेस का मुस्लिम वोट टीएमसी में शिफ्ट कर सकता है.

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मनमोहन सिंह ने इसकी शुरूआत की थी. ये असम समझौते का हिस्सा था लेकिन जिस तरह इसको अमली जामा पहनाया गया है, ये सही नहीं है. कांग्रेस ने इस मसले को ज़ोरदार ढंग से उठाया है. लेकिन इसका कांग्रेस को राजनीतिक फायदा होगा ये कहना मुश्किल है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने नपे-तुले शब्दों का इस्तेमाल किया है. गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि एनआरसी को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए, इसका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. ये मानवाधिकार का मामला है, हिंदू मुस्लिम का नहीं है. कांग्रेस को लग रहा है ये मसले पार्टी के लिए दोधारी तलवार हैं. अगर बोले तो बीजेपी मुस्लिमपरस्त साबित करने की कोशिश करेगी. अगर नहीं बोले तो पार्टी के धर्मनिरपेक्षता वाली छवि को नुकसान हो सकता है.

गोगोई की चाल नाकामयाब

असम में ज्यादातर लोग इस हंगामे के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार मानते हैं. कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बयान से पार्टी की जान सांसत में है. पंद्रह साल राज्य के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई ने कहा कि एनआरसी कांग्रेस लेकर आई थी. हालांकि इस तरह से लोगों के बेदखल करने का विरोध पूर्व मुख्यमंत्री ने किया है. लेकिन कांग्रेस के हाथ से ये मुद्दा निकल गया है. कुल मिलाकर इस मसले पर कांग्रेस फंस गई है. कांग्रेस को नहीं लग रहा था कि इतनी बड़ी तादाद में लोग रजिस्टर से बाहर हो जाएंगे, जो राजनीतिक बिसात बिछाने की कोशिश तरुण गोगई ने की थी, उसका फायदा बीजेपी ने उठा लिया है. कांग्रेस के हाथ में कुछ नहीं आया है.

जानकार कहते हैं कि तरुण गोगोई ने एआईयूडीएफ के विरोध में कांग्रेस को असम में बहुसंख्यक पार्टी बनाने की तैयारी की थी. लेकिन बीजेपी के हिंदुत्व के आगे गोगोई की ये चाल फेल हो गई है. कांग्रेस के पास हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. हालांकि मुस्लिम जमात इस मसले पर अभी सरकार के रुख का इंतज़ार कर रहे हैं. जमीयत उलेमा हिंद के अरशद मदनी ने कहा है कि घबराने की जरूरत नहीं है. अभी ये फाइनल लिस्ट नहीं है. जमीयत के कार्यकर्ता सभी को अपना नागरिकता साबित करने में मदद करेंगे इसलिए लोग संयम से काम लें. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि ये फाइनल लिस्ट नहीं है.

 

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