बेरोजगारी : बीते साल देश में 1.10 करोड़ नौकरियां हो गयीं कम

राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ । पिछले दिनों नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने सरकार से निजी कंपनियों को भरोसे में लेने की सलाह देते हुए कहा था कि किसी ने भी पिछले 7० साल में ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया जब पूरी वित्तीय प्रणाली जोखिम में है। राजीव कुमार के मुताबिक नोटबंदी और जीएसटी के बाद कैश संकट बढ़ा है। आज कोई किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा है। प्राइवेट सेक्टर के भीतर कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं है, हर कोई नगदी दबाकर बैठा है। उन्होंने सरकार को लीक से हटकर कुछ कदम उठाने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि नोटबंदी, जीएसटी और आईबीसी (दीवालिया कानून) के बाद हालात बदल गए हैं। पहले करीब 35 फीसदी कैश उपलब्ध होती थी, वो अब काफी कम हो गया है। इन सभी कारणों से स्थिति काफी जटिल हो गई है।
राजीव कुमार के इस बयान को भले ही किसी ने तवज्जो न दी हो लेकिन इतना तय है कि आर्थिक मंदी के जिस दौर से भारत गुजर रहा है वह बेहद चिंताजनक है। सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है और कई कदम उठाने का भी ऐलान कर रही है। लेकिन भारत में रोजगार के लिहाज से साल की शुरुआत ठीक नहीं रही। शुरुआत में खबर आई थी कि बीते साल लगभग 1.1० करोड़ नौकरियां खत्म हुई हैं और अब महीने के आखिर में नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) के एक सर्वेक्षण के हवाले से यह बात सामने आई है कि वर्ष 2०17-18 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बीते 45 वर्षों में सबसे ज्यादा रही। बीते दिनों सरकार ने गरीब सवर्णों को 1० फीसदी आरक्षण का एलान किया था। उस समय भी सवाल उठा था कि जब नौकरियां ही नहीं हैं, तो आरक्षण देने की क्या तुक है।

अंधी गली में भारत की अर्थव्यवस्था (भाग-3)

दो साल पहले हुई नोटबंदी के बाद यह देश में बेरोजगारी पर किसी सरकारी एजंसी की ओर से तैयार सबसे ताजा और व्यापक रिपोर्ट है। इसमें कहा गया है कि देश में वर्ष 1972-73 के बाद बेरोजगारी दर सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है। शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 7.8 फीसदी है, जो ग्रामीण इलाकों में इस दर (5.3 फीसदी) के मुकाबले ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों की शिक्षित युवतियों में वर्ष 2००4-०5 से 2०11-12 के बीच बेरोजगारी की दर 9.7 से 15.2 फीसदी के बीच थी, जो वर्ष 2०17-18 में बढ़ कर 17.3 फीसदी तक पहुंच गई। ग्रामीण इलाकों के शिक्षित युवकों में इसी अवधि के दौरान बेरोजगारी दर 3.5 से 4.4 फीसदी के बीच थी जो वर्ष 2०17-18 में बढ़ कर 1०.5 फीसदी तक पहुंच गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों के 15 से 29 साल की उम्र वाले युवकों में बेरोजगारी की दर वर्ष 2०11-12 में जहां पांच फीसदी थी, वहीं वर्ष 2०17-18 में यह तीनगुने से ज्यादा बढ़ कर 17.4 फीसदी तक पहुंच गई। इसी उम्र की युवतियों में यह दर 4.8 से बढ़ कर 13.6 फीसदी तक पहुंच गई। विशेषज्ञों का कहना है कि खेती अब पहले की तरह मुनाफ़े का सौदा नहीं रही। इसी वजह से ग्रामीण इलाके के युवा रोजगार की तलाश में अब खेती से विमुख होकर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर जाने लगे हैं। शहरी इलाकों में सबसे ज्यादा रोजगार सृजन करने वाले निर्माण क्षेत्र में आई मंदी के चलते नौकरियां कम हुई हैं।
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के अध्यक्ष रहे मोहनन कहते हैं, ’’बीते कुछ महीनों से यह महसूस हो रहा था कि सरकार हमारी बातों को गंभीरता से नहीं ले रही है और हमें अनदेखा किया जा रहा है। आयोग के हाल के फैसलों को भी लागू नहीं किया गया.’’ मोहनन के मुताबिक उक्त रिपोर्ट को बीते दिसंबर में ही सार्वजनिक किया जाना था। लेकिन सरकार इसे दबाने का प्रयास कर रही थी। केंद्र सरकार ने हालांकि इन दोनों के इस्तीफ़े पर सफाई दी है। लेकिन इससे एक गलत संदेश तो गया ही है।
अब सरकार चाहे बेरोजगारी के आंकड़ों को दबाने का जितना भी प्रयास करे, रोजगार परिदृश्य की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। सेंटर ऑफ मॉनीटरिग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) ने अपनी हाल की एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में बीते साल 1.1० करोड़ नौकरियां कम हुई हैं। हर साल एक करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा कर सत्ता में आने वाली एनडीए सरकार के लिए यह स्थित अच्छी नहीं कही जा सकती। रोजगार के अभाव में शिक्षित बेरोजगारों में हताशा लगातार बढ़ रही है। नौकरी के लिए आवेदन करने वालों के आंकड़े इस हताशा की पुष्टि करते हैं।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button