बोपैया से क्यों डर रही कांग्रेस, 2011 में विवादित रहा था उनका यह अहम फैसला
बेंगलुरु। बीएस येदियुरप्पा को कल विधानसभा के पटल पर बहुमत साबित करना है. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा दिए गए 15 दिन के समय में कटौती कर दी. राज्यपाल ने विधानसभा की कार्यवाही के लिए केजी बोपैया की प्रोटेम स्पीकर के तौर पर नियुक्ति की है जिसको लेकर कांग्रेस को ऐतराज है. कांग्रेस इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस बोपैया को लेकर इतनी क्यों डरी हुई है? आइये एक नजर उनके कुछ फैसलों पर डाल लेते हैं जो विवादित रहे.
बोपैया 2009 से 2013 के बीच कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष रहे थे. वह मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के करीबी माने जाते हैं. उन्होंने 2011 में पिछली येदियुरप्पा सरकार की मदद के लिए विश्वासमत से पहले बीजेपी के 11 असंतुष्ट विधायकों और पांच निर्दलीय विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था. उनके फैसले को कर्नाटक हाईकोर्ट ने कायम रखा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया. शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि बोपैया ने हड़बड़ी दिखाई.
पिछली बीजेपी सरकार में थे विधानसभा स्पीकर
बोपैया पिछली बार बीजेपी सरकार में कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर थे. फिलहाल वे विराजपेट सीट से बीजेपी के विधायक हैं. कांग्रेस बोपैया के पिछले कार्यकाल के विवादित फैसले को देखते हुए फूंक-फूंककर कदम उठा रही है और कोई मौका नहीं देना चाहती. शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने रात को फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इस पर क्या फैसला करते हैं. क्या वह कांग्रेस की याचिका को सुनवाई योग्य मानते हैं या नहीं? इसका फैसला कुछ देर में हो जाएगा.
हम कल बहुमत साबित करेंगे: येदियुरप्पा
कल सुबह तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे लिंगायत नेता येदियुरप्पा (75) ने कहा कि वह राज्य विधानसभा में बहुमत साबित करने को लेकर ‘100 प्रतिशत’ आश्वस्त हैं. शीर्ष अदालत के आदेश के तुरंत बाद येदियुरप्पा ने पत्रकारों से कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे. बहुमत साबित करने के लिए हमारे पास 100 प्रतिशत सहयोग एवं समर्थन है.”
येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 111 विधायकों का समर्थन चाहिए. राज्य की 222 सीटों पर हुए चुनावों में बीजेपी को 104 सीटों में जीत मिली है और उसे उम्मीद है कि कांग्रेस तथा जेडीएस के नव निर्वाचित विधायक अपनी पार्टी छोड़ येदियुरप्पा सरकार का समर्थन कर सकते हैं. दो सीटों पर मतदान नहीं होने के कारण 224 सदस्यीय विधानसभा में असरदार संख्या 222 है. जद ( एस ) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और गठबंधन के नेता एच डी कुमारस्वामी ने दो जगहों से जीत दर्ज की है लेकिन वह एक वोट ही डाल पाएंगे.
‘आपरेशन कमल’ दोहराने का प्रयास
कुमारस्वामी ने बुधवार को दावा किया था कि बीजेपी राज्य में सत्ता में आने के लिए ‘आपरेशन कमल’ दोहराने का प्रयास कर सकती है. वर्ष 2008 में ‘ आपरेशन कमल ’ का प्रयोग उस समय किया गया था जब येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी के पास विधानसभा में बहुमत नहीं था और उसके नेता कांग्रेस के तीन और जद ( एस ) के चार विधायकों को इस्तीफा देने के लिए मनाने में कामयाब रहे थे. माना जाता है कि इसमें धन और पद का लालच दिया गया था.
आंकड़े हालांकि स्पष्ट रूप से बीजेपी के खिलाफ है. क्योंकि इसके प्रतिद्वंद्वी गठबंधन के पास 116 विधायकों (78 कांग्रेस, 37 जेडीएस और एक बसपा) का समर्थन है. उसने एक निर्दलीय विधायक के समर्थन का भी दावा किया है. इस बीच , गठबंधन को नजरअंदाज करते हुए येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए न्यौता देने को लेकर पहले ही आलोचना के शिकार राज्यपाल ने नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने तथा शक्ति प्रदर्शन के लिए के जी बोपैया को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया. कांग्रेस ने इसकी आलोचना की है.
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