भाई के साथ नहीं बल्कि बेटे अखिलेश के साथ जायेंगे मुलायम

लखनऊ। शिवपाल और अखिलेश के बीच झगड़े में मुलायम भी शिवपाल के साथ नहीं बल्कि बेटे अखिलेश के साथ रहेंगे. ऐसा संकेत उन्होंने खुद दिया है. शिवपाल यादव के अखिलेश से बगावत कर‘समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा’ बनाने के बाद अखिलेश यादव के करीबी एक बड़े नेता मुलायम सिंह से मिले तो उन्होंने उनसे कहा कि वह पार्टी को मजबूत करने के लिए यूपी के हर मंडल में सभा करना चाहते हैं, जिसका इंतजाम किया जाए. बहुत लंबे अर्से बाद अब पार्टी दफ्तर भी आने-जाने लगे हैं.

अखिलेश यादव की हुकूमत के दौरान मुलायम तमाम मौकों पर सरकार के कामकाज की आलोचना करते रहे हैं. कई बार वह अखिलेश के खिलाफ भी सार्वजनिक मंचों से बोलते रहे हैं. पिछले साल 25 नवंबर को मुलायम के करीबी लोगों ने मीडिया को खबर दी कि सभी लोग लोहिया ट्रस्ट के ऑफिस पहुंच जाएं, क्यों वहां नेताजी अखिलेश के खिलाफ नई पार्टी बनाने का ऐलान करेंगे. देश का सारा मीडिया वहां पहुंच गया. सारी ओबी वैन तैनात हो गई. लोग. लोग सांस बांधे उन्हें देखते रहे कि जिस बेटे को उन्होंने अपना ताज खुद दिया था, कैसे उसके खिलाफ वह पार्टी बनाने का ऐलान करते हैं.

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मुलायम सिंह यादव के साथ शिवपाल यादव

मुलायम आये. उन्होंने बोलना शुरू किया और नरेंद्र मोदी से लेकर चीन तक हर विषय पर बोले, सिवाय अखिलेश के. लोगों ने उनसे सवाल किया तो कहने लके कि ‘मेरा बेटा है और बेटे के नाते मेरा आशीर्वाद उसके साथ है.’ हर नाजुक वक्त में मुलायम के अंदर का ‘बाप’ उनके अंदर के ‘नेता’ पर भारी पड़ जाता है.

इस बीच शिवपाल यादव ने अपने फेसबुक पेज से समाजवादी पार्टी के सारे निशान हटा दिए हैं. अब उन्हें समाजवादी सेक्यूलर मोर्चे का नेता बताया गया है. उन्हें एमएलए तो बताया गया है, लेकिन पार्टी का नाम नहीं है. उन्होंने ट्विटर पर भी समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को अनफॉलो कर दिया है, लेकिन मुलायम के साथ के बिना वह बड़ी ताकत नहीं बनते.

वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी कहते हैं कि, ‘लगता चहै कि शिवपाल अखिलेश से अपने लिए कुछ बारगेन करने के लिए ये सब कर रहे हैं और जहां तक मुलायम सिंह का सवाल है तो पुराना तजुर्बा तो यही बताता है कि आखिरकर वह अखिलेश के साथ ही रहेंगे. उनका बुरा नहीं होने देंगे.’

फिर सवाल यह है कि मुलायम के साथ के बिना शिवपाल की बगावत लोक सभा चुनाव में क्या रंग दिखाएगी और खासकर तब जबकि समाजवादी पार्टी और  बीएसपी के चुनावी गठबंध का ऐलान हो चुका है. सियासत के जानकार कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में वह इटावा, फिरोजाबाद में कुछ वोट काटने के अलावा कोई बड़ा नुकसान नहीं कर सकेंगे. वैसे भी अलग पार्टी बनाने लायक दौलत भी शिवपाल के पास नहीं है और न ही इस उम्र में इतनी ऊर्जा.

 

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