भारतीय राजनीति नेहरू की कुनीतियों का अबतक है शिकार

जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने थे, हालांकि वो कैसे बने थे वो एक बहस का मुद्दा है. उन्होंने एक तरह से गाँधी जी पर अपना प्रभाव का इस्तेमाल किया और सरदार पटेल को रास्ते से हटा दिया, अन्यथा सरदार पटेल ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते. चलिए यहां तक तो ठीक था, लेकिन उसके पश्चात नेहरू ने अपने साशन काल में इतने गलत निर्णय लिए, जिनका परिणाम देश को आज तक भुगतना पड़ रहा है।

आज हम आपको बताएँगे जवाहर लाल नेहरू के कुछ ऐसे निर्णय जिनके बारे में या तो कम जानकारी है या जानबूझ कर दबा दी गयी है।

भारत – नेपाल विलय – क्या आपको पता है कि नेपाल भी कभी भारत में विलय करने को तैयार था? 1952 में नेपाल के तत्कालीन राजा त्रिभुवन विक्रम शाह ने नेपाल के भारत में विलय का प्रस्ताव नेहरू के सामने रखा। लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू ने ये कहकर उनकी बात टाल दी कि इस विलय से दोनों देशों को फायदे की बजाय नुकसान ज्यादा होगा। यही नहीं, इससे नेपाल का पर्यटन भी खत्म हो जाएगा।जबकि असल वजह ये थी की नेपाल जम्मू कश्मीर की तरह विशेष अधिकार के तहत अपनी हिन्दू राष्ट्र की पहचान को बनाये रखना चहता था जो की नेहरू को मंजूर नही थी,और इस वजह से भारत के हाथ से एक स्ट्रेटेजिक जगह निकल गयी.

कोको द्वीप – कोको द्वीप एक बहुत ही सुन्दर और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र था, लेकिन आपको यह जानकार झटका लगेगा कि 1950 में नेहरू ने भारत का ‘कोको द्वीप समूह’ बर्मा को गिफ्ट दे दिया। यह द्वीप समूह कोलकाता से 900 KM दूर समंदर में है।अगर यह द्वीप भारत के पास होता तो बंगाल कि खाड़ी में भारत के पास एक सामरिक इलाका होता और यहां से दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशो पे नज़र रखनी आसान होती, और साथ ही साथ चीन के खिलाफ हमारे पास एक फॉरवर्ड बेस स्थापित करने का मौका होता. अत्यंत दुःख की बात है कि बाद में बर्मा ने यह द्वीप समूह चीन को दे दिया, जहाँ से आज चीन भारत पर नजर रखता है।

काबू वैली मणिपुर – यह जानकारी शायद अभी तक नहीं आयी होगी, आपको यह जान कर झटका लगेगा. काबू वैली मणिपुर का ही एक इलाका था जिसका  क्षेत्रफल लगभह 11,000 वर्ग किमी है और कहते हैं कि यह कश्मीर से भी अधिक खूबसरत है। इसके अलावा यहाँ नेचुरल रिसोर्सेज भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं. जवाहर लाल नेहरू ने 13 Jan 1954 को भारत के मणिपुर प्रांत की काबू वैली मित्रता के तौर पर बर्मा को दी। बर्मा ने काबू वैली का कुछ हिस्सा चीन को दे रखा है। चीन यहां से भी भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देता है, कुल मिलाकर भारत ने एक और सामरिक क्षेत्र को खो दिया.

सुरक्षा परिषद स्थायी सीट – यह भारत के लिए बहुत बड़ा झटका था. जवाहर लाल नेहरू ने 1953 में अमेरिका की उस पेशकश को ठुकरा दिया था, जिसमें भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल होने को कहा गया था। नेहरू ने इसकी जगह चीन को सुरक्षा परिषद में शामिल करने की सलाह दी और अंततः चीन को सुरक्षा परिषद में जगह मिल गयी। वही चीन आज पाकिस्तान का हम दर्द बना हुआ है। और अपने मित्र पाकिस्तान को बचाने के लिए भारत के कई प्रस्तावों को सुरक्षा परिषद में नामंजूर कर चुका है। पिछले ही दिनों उसने आतंकी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के भारतीत प्रस्ताव को कई बार वीटो किया है।

 

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