‘भीम आर्मी कश्मीरी पत्थरबाजों की तरह प्रशिक्षित’

लखनऊ। पश्चिमी यूपी खासकर सहारनपुर में जातीय हिंसा को रोकना योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए कड़ी चुनौती है। इस बीच यूपी पुलिस और खुफिया विभाग ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी है वह चिंताएं बढ़ाने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भीम आर्मी के कार्यकर्ता जिस तरह अपनी पहचान छिपाने के लिए चेहरे को ढक रहे हैं और अपने प्रदर्शनों के दौरान पुलिस पर पत्थरबाजी कर रहे हैं, उससे इशारा मिलता है कि उन्होंने कश्मीरी पत्थरबाजों की तरह प्रशिक्षण लिया है जो सेना के जवानों और पुलिस पर पत्थरबाजी करते हैं।’ सहारनपुर हिंसा में भीम आर्मी के हाथ होने की बात सामने आने के बाद इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है।

इसके अलावा रिपोर्ट में इस दलित संगठन की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता का भी जिक्र किया गया है, जिसे पश्चिमी यूपी के जिलों, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा के दलितों के बीच भीम सेना के नाम से भी जाना जाता है। इसके संयोजक चन्द्रशेखर को दलित समुदाय से जबरदस्त समर्थन और सहानुभूति हासिल हो रही है। इतना ही नहीं, रिपोर्ट के मुताबिक दलित समुदाय चंद्रशेखर को वित्तीय मदद देने को भी तैयार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भीम सेना का विस्तार चिंता की बात है और इसके हमदर्दों पर निगाह रखने की जरूरत है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चंद्रशेखर का उभार कोई एक दो दिनों में नहीं हुआ बल्कि वह पिछले 5 से ज्यादा सालों से समुदाय के बीच काम कर रहे थे। 2008-09 में उन्होंने सहारनपुर के एएचपी इंटर कॉलेज में पीने के पानी को लेकर हुए विवाद में सवर्ण छात्रों, मुख्य तौर पर राजपूत छात्रों को चुनौती दी थी।इस कॉलेज में 2 अलग-अलग नल थे। एक दलितों के लिए तो दूसरा सवर्णों के लिए। चन्द्रशेखर ने इस भेदभाव को चुनौती दी और कॉलेज प्रबंधन को सभी छात्रों के लिए एक ही नल की व्यवस्था करने को मजबूर किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस घटना ने दो जातियों के सदस्यों के बीच कटुता को बढ़ाया।

तभी से चंद्रशेखर ने दलितों के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। पुलिस और खुफिया विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक इसी बीच एक और दलित ऐक्टिविस्ट सतीश कुमार का भी उभार हुआ जो जिले के चुटमल कस्बे के रहने वाले हैं। कुमार शिवसेना जैसा संगठन खड़ा करना चाहते थे। जब उन्होंने चंद्रशेखर में ‘काबिलियत’ देखी तो उन्होंने उसे भीम आर्मी के नेता के तौर पर तराशना शुरू कर दिया। इस संगठन का अब तक रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है।

चन्द्रशेखर खुद को ‘रावन’ कहा जाना पसंद करते हैं। फेसबुक पर उनकी कई आईडी हैं। भीम आर्मी सबसे पहले 17 अप्रैल 2016 को तब सुर्खियों में आई जब राजपूतों ने दलितों की एक बारात को अपने दबदबे वाली कॉलोनी दरियापुर गांव से गुजरने से रोक दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके कुछ दिनों बाद दलितों ने घरकौली गांव के प्रवेश मार्ग पर ‘जय भीम, जय भारत, दी ग्रेट चमार घरकौली’ के होर्डिंग लगा दिए। इससे दलितों और राजपूतों में टकराव हुआ। पुलिस ने होर्डिंग पर काला पैंट लगा दिया जिससे एक बार फिर राजपूतों और दलितों में तनाव बढ़ा और चंद्रशेखर को अपनी ताकत दिखाने और भीम आर्मी के नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने का मौका मिला।

इस महीने भीम आर्मी ने तब फिर सुर्खियां बटोरी जब उसके सदस्यों ने राजपूतों द्वारा निकाले जा रहे राणा प्रताप जयंती के जुलूस पर आपत्ति की। भीमसेना के इस समय 7,000 से ज्यादा सक्रिय सदस्य हैं जो संगठन के लिए समर्थन बढ़ाने में जुटे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दलित उत्पीड़न से जुड़े मामलों का जल्द से जल्द निपटारा होना चाहिए क्योंकि भीम आर्मी के नेता ऐसी परिस्थितियों को अपने हक में भुनाने का मौका नहीं छोड़ते हैं। रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि अगर भीम आर्मी का कोई भी पदाधिकारी कानून तोड़ता है तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि भीम आर्मी के सभी मुख्य पदाधिकारियों और सदस्यों के मोबाइल को सर्विलांस पर रखा जाना चाहिए और उनकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है।

 

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