मध्य प्रदेश: जब राजमाता ने कांग्रेस का कर दिया था तख्तापलट

भोपाल। आने वाले कुछ माह में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी, बसपा से लेकर कांग्रेस तक सभी पार्टियां चुनाव प्रचार में जुटी हुई हैं. इस चुनावी सरगर्मी के बीच aajtak.in आपको मध्य प्रदेश की राजनीति से जुड़े कई दिलचस्प किस्से बताएगा. आज की इस कड़ी में हम आपको बता रहे हैं वो किस्सा जब राजमाता सिंधिया ने किया था कांग्रेस का तख्तापलट…

बात 60 के दशक की है. उस समय मध्य प्रदेश में एक दौर ऐसा भी था जब यहां ना तो कांग्रेस की सरकार थी और ना ही बीजेपी की. दरअसल, उस वक्त सरकार थी संयुक्त विधायक दल (संविदा सरकार) की. जिसे राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस का तख्तापलट करके बनाया था.

उस दौर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया मध्य प्रदेश की राजनीति में दबदबा रखती थीं. उन्होंने कांग्रेस की द्वारका प्रसाद मिश्रा सरकार का तख्ता पलट कर गोविंदनारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया था.

सबसे बड़ी बात तो राजमाता ने 15 फीसदी विधायकों का दल-बदल करवाया था और संयुक्त विधायक दल बनवाया था. उस समय जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस के दल-बदलू विधायक एकजुट हुए थे.

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि संविदा सरकार बनने के पीछे वजह थी वर्चस्व का टकराव जो द्वारका प्रसाद मिश्रा और राजमाता के बीच पचमढ़ी में कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मलेन में हुआ था.

उस समय डीपी मिश्रा ने सम्मलेन में राजशाही पर तीखी टिप्पणी की और लोकतंत्र को इसका दुश्मन बता दिया. यह बात राजमाता सिंधिया को नागवार गुजरी और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी.

इसके बाद 1967 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए. राजमाता गुना संसदीय सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार बनी और जीती भी. इसके अलावा वे शिवपुरी की करैरा सीट से भी जनसंघ की टिकट पर चुनाव लड़ी थी. इस सीट से भी उन्हें जीत हासिल हुई थी. उन्हें विपक्ष का नेता बनाया गया.

उधर, राजमाता के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी में दरारें पड़ने लगीं थी. पार्टी के कई बड़े नेता डीपी मिश्रा के स्वभाव से नाराज चल रहे थे. इसका फायदा राजमाता को मिला.

करीब 35 विधायक सतना के गोविंदनारायण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस से अलग हो गए और राजमाता के पास पहुंचे. देर ना करते हुए राजमाता ने कांग्रेस का तख्ता पलट कर दिया और गोविंदनारायण सिंह को सीएम बनाया. वो खुद सदन की नेता चुनी गई. हालांकि, संविदा करकार महज 19 माह ही चल पाई और गोविन्द नारायण ने 10 मार्च 1969 को इस्तीफ़ा दे दिया.

 

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