महाराष्‍ट्र: जब सरकार आरक्षण देने को तैयार है, फिर भी मराठा सड़कों पर क्‍यों उतर आए हैं?

दो साल की खामोशी के बाद महाराष्‍ट्र में मराठा समुदाय एक बार फिर सड़कों पर उतर आए हैं. उस दौरान महाराष्‍ट्र में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग के साथ इस समुदाय ने पूरे प्रदेश में मूक मार्च निकाले थे. लेकिन इस बार महाराष्‍ट्र उग्र आंदोलन के कारण सुलग रहा है. जगह-जगह हिंसा हो रही है. उल्‍लेखनीय है कि महाराष्‍ट्र की आबादी में मराठा समुदाय की हिस्‍सेदारी 33 प्रतिशत है.

अब तस्‍वीर का दूसरा पहलू यह है कि इसी 20 जुलाई को महाराष्‍ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने राज्‍य विधानसभा में सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया. सरकार को उम्‍मीद थी कि लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहा मराठा समुदाय इस घोषणा से खुश होगा लेकिन इसके उलटा हुआ. मराठा आंदोलनकारी इस घोषणा से नाराज हो गए और उन्‍होंने घोषणा करते हुए कहा कि यदि मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अषाढ़ी एकादशी पर पूजा करने के लिए पंढरपुर जाएंगे तो उनका घेराव किया जाएगा. नतीजन मुख्‍यमंत्री को अपना वहां जाने का प्‍लान स्‍थगित करना पड़ा और अपने घर पर ही पूजा करनी पड़ी. प्रदर्शनकारियों ने अब मुख्‍यमंत्री के सरकारी आवास के घेराव की बात कही है.

ऐसे में सवाल उठता है कि जब मराठा आंदोलनकारियों की आरक्षण की मांग मान ली गई है तो उसके बावजूद इस तरह के हिंसक प्रदर्शन क्‍यों हो रहे हैं? वैसे तो मराठा समुदाय के कई संगठन हैं लेकिन इस आंदोलन की अगुआई मराठा क्रांति मोर्चा कर रहा है. इसी संगठन के बैनर तले मराठा समुदाय के सभी संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं.

अन्‍य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के दर्जे की मांग
दरअसल आंदोलनकारी मराठा नेताओं का कहना है कि वे आरक्षण नहीं बल्कि अपने समुदाय के लिए अन्‍य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) का दर्जा चाहते हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि कानूनी प्रावधानों के मुताबिक मौजूदा 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण होने की स्थिति में उसको अमल में लाना मुश्किल है. अन्‍य राज्‍यों में इस तरह की घोषणाएं कोर्ट में ठहर नहीं सकी हैं. इसके बजाय यदि मराठा समुदाय को ओबीसी का दर्जा मिल जाएगा तो स्‍वाभाविक रूप से पिछड़े तबके को मिलने वाले आरक्षण के दायरे में आ जाएंगे. इसके संबंध में ये नेता यह भी कहते हैं कि राज्‍य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर महाराष्‍ट्र सरकार मराठों को पिछड़े तबके में शामिल करने के संबंध में अंतिम निर्णय ले सकती है.

हालांकि सरकार का यह कहना है कि पिछड़ा वर्ग आयोग इस प्रस्‍ताव पर पहले से ही विचार कर रहा है और उस दिशा में काम कर रहा है. लेकिन आंदोलनकारियों को सरकार के मंसूबों पर भरोसा नहीं है. उनका कहना है कि आयोग बहुत धीमी गति से काम कर रहा है, इसलिए सरकार को इसकी अंतिम रिपोर्ट आने का इंतजार नहीं करना चाहिए.

 

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