मायावती के मुद्दे पर योगी व जेटली में ठनी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो मायावती के मसले पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार दोनों का अलग-अलग स्टैंड है. मायावती को कानून के शिकंजे में कसने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोशिश कर रहे हैं तो वित्त मंत्री अरुण जेटली उसमें अड़ंगा डाल रहे हैं. इसे यूं कहें कि यूपी सरकार बसपाई शासनकाल के घोटालों की जांच कराने का निर्णय लेती है तो केंद्र सरकार उसे कानूनी तौर पर बेअसर कर देती है. ऐसे में सवाल उठता है कि मायावती और अरुण जेटली के बीच कोई रहस्यमय समझदारी है या केंद्र की मोदीनीत बीजेपी सरकार भविष्य (2019) के लिए मायावती को ‘रिजर्व’ में रखना चाहती है. कहीं जेटली को आगे रख कर पीएम मोदी मायावती को बचाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार के छह महीने पूरे होने पर जारी श्वेत-पत्र में भी प्रदेश की करीब दो दर्जन चीनी मिलों को बेचे जाने में हुए अरबों रुपए के घोटाले का उल्लेख किया है. इसके पहले अप्रैल महीने में योगी ने चीनी मिलों के बिक्री-घोटाले की जांच कराए जाने की घोषणा की थी. लेकिन अरुण जेटली के कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय ने इस मामले में कानूनी बखेड़ा खड़ा कर दिया. गौरतलब है कि अरुण जेटली वित्त के साथ-साथ कॉरपोरेट अफेयर विभाग के भी मंत्री हैं. नॉर्थ-ब्लॉक सूत्रों के अनुसार यूपी की चीनी-मिलों को कौड़ियों के मोल बेच डालने के मामले में सुप्रीम कोर्ट से आखिरी फैसला आना बाकी है, लेकिन कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग (कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) ने जो कानूनी रोड़े खड़े किए हैं, उससे घोटाला साबित होने में मुश्किल होगी. चीनी मिल बिक्री घोटाले से मायावती को बेदाग बाहर निकालने की समानान्तर किलेबंदी कर दी गई है.

चीनी मिलों के विक्रय-प्रकरण का पिटारा खुलेगा तो बीजेपी की भी संलिप्तता उजागर होगी. सपा की भूमिका से भी पर्दा हटेगा. बीजेपी इस वजह से भी इस मामले को ढंके रहना चाहती है और योगी आदित्यनाथ इस वजह से भी इसे उजागर करने में रुचि ले रहे हैं. चीनी मिलों को बेचने की शुरुआत बीजेपी के ही शासनकाल में हुई थी. बीजेपी सरकार ने ही चीनी-मिलों पर गन्ना किसानों और किसान समितियों की पकड़ कमजोर करने और बिखेरने का काम किया था. चीनी मिलें बेचने की शुरुआत तत्कालीन बीजेपी सरकार ने की थी, सपा ने अपने कार्यकाल में इसे आगे बढ़ाया और बसपा ने इसे पूरी तरह अंजाम पर ला दिया.

मायावती के कार्यकाल में चीनी मिलों को औने-पौने भाव में कुछ खास पूंजी घरानों को बेचे जाने के मामले की जांच की घोषणा योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्तारूढ़ होने के महीने भर बाद ही अप्रैल महीने में कर दी थी. इस घोषणा से केंद्र सरकार फौरन सक्रिय हो गई और कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने अगले ही महीने यानि, मई महीने में ही अपना फैसला सुनाकर योगी सरकार को झटके में ला दिया. कमीशन ने साफ-साफ कहा कि मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश की सहकारी चीनी मिलों की बिक्री में कोई गड़बड़ी नहीं की. कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया, यानि राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग भारत की संवैधानिक अधिकार प्राप्त विनियामक संस्था है. आयोग ने चार मई 2017 को दिए अपने फैसले में कहा है कि ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है जिसमें कहीं कोई गड़बड़ी पाई गई हो. चीनी मिलों की बिक्री में अपनाई गई प्रक्रिया आयोग की नजर में पूरी तरह पारदर्शी है. आयोग ने यह भी कहा है कि नीलामी से किसी भी पार्टी को रोका नहीं गया और न किसी को धमकी ही दी गई.

संवैधानिक अधिकार प्राप्त केंद्र सरकार की दो संस्थाएं चीनी मिल बिक्री घोटाले में मायावती की संलिप्तता को लेकर दो अलग-अलग परस्पर-विरोधी दिशा में खड़ी हैं. महालेखाकार (सीएजी) की जांच रिपोर्ट कहती है कि चीनी मिलों की बिक्री में घनघोर अनियमितता हुई, लेकिन प्रतिस्पर्धा आयोग कहता है कि बिक्री में कोई अनियमितता नहीं हुई. कैग की जांच रिपोर्ट पहले आ गई थी, आयोग का फैसला अभी हाल में आया है. दो परस्पर-विरोधी रिपोर्टें अपने आप में ही तमाम विरोधाभासों से भरी पड़ी हैं. राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के डायरेक्टर जनरल (डीजी) नितिन गुप्ता ने उत्तर प्रदेश की 10 चालू और 11 बंद चीनी मिलों को बेचे जाने के मामले की गहराई से छानबीन की थी. इस छानबीन में भी चीनी मिलें खरीदने वाले पूंजीपति पौंटी चड्ढा की कंपनी के साथ नीलामी में शामिल अन्य कंपनियों की साठगांठ आधिकारिक तौर पर पुष्ट हुई. यह पाया गया कि नीलामी में शामिल कई कंपनियां पौंटी चड्ढा की ही मूल कंपनी से जुड़ी हैं, जबकि नीलामी की पहली शर्त ही यह थी कि एक मिल के लिए एक ही कंपनी नीलामी की निविदा-प्रक्रिया में शामिल हो सकती है. कानून के विशेषज्ञ कहते हैं कि आयोग के जरिए केंद्र सरकार ने कानूनी पचड़ा फंसाने की कोशिश तो की है, लेकिन आयोग के डीजी की छानबीन रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट की निगाह में है.

एक तरफ प्रतिस्पर्धा आयोग कहता है कि चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं हुई, दूसरी तरफ अगर दस्तावेज देखें तो धांधली साफ-साफ दिखाई देती है. चीनी मिलों की अरबों की चल-अचल सम्पत्ति को कौड़ियों के भाव बेच दिया जाना घोर भ्रष्टाचार की सनद देता है. महालेखाकार की छानबीन में भी यह स्पष्ट हो चुका है कि चीनी मिलों की विक्रय-प्रक्रिया में शामिल नौकरशाहों ने पूंजी-प्रतिष्ठानों के दलालों की तरह काम किया. सीएजी का मानना है कि निविदा की प्रक्रिया शुरू होने के पहले ही यह तय कर लिया गया था कि चीनी मिलें किसे बेचनी हैं. निविदा में भाग लेने वाली कुछ खास कंपनियों को सरकार की बिड-दर पहले ही बता दी गई थी और प्रक्रिया के बीच में भी अपनी मर्जी से नियम बदले गए. मिलों की जमीनें, मशीनें और उपकरणों की कीमत निर्धारित करने में मनमानी की गई. बिक्री के बाद रजिस्ट्री के लिए स्टाम्प ड्यूटी भी कम कर दी गई. कैग का कहना है कि चीनी मिलें बेचने में सरकार को 1179.84 करोड़ रुपए का सीधा नुकसान हुआ. यानि, उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड की चालू हालत की 10 चीनी मिलों को बेचने पर सरकार को 841.54 करोड़ का नुकसान हुआ और उत्तर प्रदेश राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की बंद 11 चीनी मिलों को बेचने की प्रक्रिया में 338.30 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.

 

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