मुस्लिम बच्चियों के ऊपर इस्लाम के नाम पर होनेवाले ‘खतना’ जैसे अमानवीय व्यवहार से कब मिलेगा छुटकारा ?

लोगों को लगता है कि मुसलमान महिलाएं केवल तीन तलाक से जूझ रही है। लेकिन अपको यह जानकर बेहद दुख होगा कि धर्म के नाम पर मुस्लिम बच्चियों पर मानवता का सबसे बर्बर और घिनौना पाप किया जाता है। हाल ही में आये एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के दावूदी बॊहरा समुदाय के 75% मुस्लिम महिलाओं के साथ ‘खतना’ जैसे अमानवीय संप्रदाय का पालन किया गया है। यह घिनौना संप्रदाय केवल बॊहरा समुदाय में ही नहीं बल्कि केरल के सुन्नियों में भी पाया जाता है।

हमारे यहां महिलावादी, बुद्दीजीवी और दलाल मीडिया का एक ऐसा ब्रिगेड है जो हिन्दुओं और उनकी मानयताओं पर आरोप लगाती है और छाती कूटते हुए, हो हल्ला मचाती है। लेकिन मुस्लिम औरतों के साथ होनेवाले इस बर्बर व्यवाहार के विरुद्ध लड़ना तो दूर आवाज़ तक नहीं उठाती है। देश में हिन्दुओं के लिए अलग न्याय और मुसलमानों के लिए अलग। हिन्दुओं की मान्यता कुप्रथा है लेकिन धार्मिक अधार पर मुस्लिम महिलाओं के साथ होनेवाली बर्बरता तो ‘अल्लाह का फरमान’ है।

Female Genital Mutilation (FGM) एक ऐसी कुप्रथा है जिसमें 6-7 साल के मुस्लिम बच्चियों का खतना किया जाता है। International Day for Zero Tolerance for FGM के कुछ दिन पूर्व किये गये The Clitoral Hood A Contested Site नामक अध्ययन से यह पता चला है कि 75% बोहरा समुदाय के मुस्लिम महिलाओं का खतना किया गया है। लक्ष्मी अनंतनारायण, शबाना डेलर और नताशा मेनन द्वारा की गयी इस रीसर्च में बॊहरा समुद्दाय और नारी समित मंच के सहायता से यह आंकड़ा प्राप्त हुआ है। दावूदी बोहरा समुदाय, शिया मुस्लिम पंत से ताल्लुक रखता है। लेकिन केरल में मलबार के कुछ सुन्नि मुसलमानों में भी यह कुप्रथा पाई जाती है। शिया इसे ‘खफ़्द’ कहते हैं तो सुन्नी इसे ‘सुन्नत कल्यानम’ कहते हैं। नाम अलग हैं लेकिन प्रथा एक ही है। केरल में बोहरा समुदाय में आमतौर पर सात से आठ सालों के बीच की लड़कियों पर ऐसा किया जाता है, जबकि उनकी पसंदीदा अवस्था बचपन है। माना जाता है कि तीन महीने से एक वर्ष की उम्र के बीच की बच्चियों का खतना करना ज्यादा मुनासिब है!

2015 में केरल के एक ‘फ़्री थिंकर फॊरम’ मे इस बात का उजागर हुआ था कि केरल में यह प्रथा जारी है। ‘WeSpeakOut’ नामक संस्था इस कुप्रथा को हटाने की मांग करते हुए सरकार पर दबाव डालने के साथ साथ अदालत का दरवाज़ा भी खट खटया है। 2012 में संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर में FGM पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक संकल्प अपनाया था। इसके मुताबिक वैध चिकित्सक संबंधी कारणॊं के अतिरिक्त अन्य किसी भी कारण के लिए महिलाओं का खतना नहीं किया जा सकता। ऐसा करना मानवाधिकार का हनन माना जायेगा और उसे कानूनी तौर पर अपराध माना जायेगा। लगभग 41 देशों में मुस्लिम महिलाओं के खतने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

लव जिहाद करनेवालों और गाय चुरानेवालों पर थप्पड़ क्या पड़ता है महिलावादी, सेक्यूलर, मानवाधिकार वाले गली मोहल्ले से बाहर निकलते है। आतंकवादियों को मासूम, बेचारा बताकर उनके मानवाधिकार पर घंटॊ बहस करते हैं। लेकिन मुस्लिम बच्चियों के साथ होनेवाली इस बर्बरता के विरॊध में आवाज़ उठाने के लिए कॊई सामने नहीं आता। रीसर्च में भाग लिए महिलाओं ने अपने साथ हुए इस बर्बर प्रथा के बारे में अपना भयानक अनुभव साझा किया है और बताया है कि किस तरह खतना उनके शारीरिक स्वास्थ्य और वैवाहिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

भारत में मुस्लिम महिलाओं के स्वाभिमान के लिए तीन तलाक जैसे पद्धती को ही हटाने नहीं दे रहे हैं। क्या ऐसे में खतना जैसी घिनौनी प्रथा को हटाने देंगे? बात बात पर पर्सनल लॉ बॊर्ड को सामने लानेवाले इस्लाम के ठेकेदार बच्चियों के ऊपर होनेवाले ऐसे दुर्ववहार को हटाकर उन बच्चियों पर रहम करेंगे? लगता तो नहीं। क्यॊं कि ऐसे अमानवीय प्रथा को भी “धार्मिक अस्ता” बताकर जायज़ ठहरानेवाले लोग हमारे बीच मौजूद है!

 

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