मैनेजर vs मैनेजर: कैसे चला अमित शाह और अहमद पटेल के बीच शह-मात का खेल

नई दिल्ली। गुजरात राज्यसभा चुनाव का रण थम चुका है. देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों के दो बड़े चेहरों के चलते यह चुनाव आम की जगह बेहद खास हो गया और देशवासी नींदें खराब कर चुनाव परिणाम का इंतजार करते रहे. तीन सीटों पर हुए चुनाव पर एक सीट का दंगल इस कदर था कि मंगलवार को तकरीबन 10 घंटे हाईवोल्टेज ड्रामा चला. चुनाव में बीजेपी दो सीटें जीती और कांग्रेस ने एक, लेकिन चर्चा कांग्रेस के ही एक सीट की हो रही है. बीजेपी ने इस सीट को हथियाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन उनके हाथ हार ही लगी. दरअसल यह लड़ाई राज्यसभा सीटों की थी ही नहीं. यह लड़ाई थी दो ‘मैनेजरों’ की. एक ओर थे बीजेपी के सबसे कामयाब मैनेजर अमित शाह तो दूसरी ओर खड़े थे कांग्रेस के मैनेजर और सोनिया के सियासी सलाहकार अहमद पटेल. दोनों का ही गृह राज्य गुजरात ही है. ऐसे में शाह अहमद पटेल को उनके घर में हराकर देश और कांग्रेस को बड़ा संदेश देना चाहते थे. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस चाहती थी कि कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले वह बीजेपी को तगड़ी सीख देने के साथ जनता को कांग्रेस की ताकत का एहसास कराना चाहती थी. इसी वजह से यह राज्यसभा चुनाव दोनों मैनेजरों के साथ-साथ दोनों ही सियासी दलों के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था.

राज्यसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टियों ने अपनी जीत पहले ही सुनिश्चित करनी शुरू कर दी. बीजेपी की नजर लंबे समय से कांग्रेस से नाराज चल रहे शंकर सिंह वाघेला पर पहले से ही थी. जन्मदिन के दिन वाघेला ने इस बात का ऐलान भी कर दिया. दरअसल कांग्रेस को राज्यसभा चुनावों में क्रॉस वोटिंग का डर पहले से सता रहा था. इसी वजह से उसने वाघेला के पर कतरने की तैयारी कर ली थी. वाघेला के जाने के बाद कांग्रेस के तमाम विधायकों ने ताबड़तोड़ इस्तीफे देने शुरू किए. कांग्रेस छोड़ने वाले 6 विधायकों में वाघेला के समधी, कांग्रेस के चीफ व्हिप और राज्यसभा सीट के लिए बीजेपी के तीसरे उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत भी शामिल थे.

आपको बता दें कि इस जंग की शुरुआत 22 जुलाई को हुई थी जब गुजरात से राज्यसभा की खाली हो रही तीन सीटों के लिए अधिसूचना जारी हुई थी. क्योंकि कांग्रेस के अहमद पटेल और बीजेपी के दो सांसदों, सुरेंद्र पटेल और प्रवीण नायक का अगस्त में कार्यकाल खत्म हो रहा था. उससे पहले चुनाव प्रक्रिया शुरू कर देनी थी.

नामांकन के आखिरी दिन बीजेपी ने अपनी दो सीटों की जगह तीनों सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला लिया. अव्वल तो उसने अपनी दो सीटों पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को उतारा ही उसके अलावा तीसरी सीट जो कांग्रेस के खेमे में थी और अहमद पटेल के नाम थी उसके लिए बीजेपी ने कांग्रेस छोड़ पार्टी में बलवंत सिंह राजपूत को नाम सामने किया. मजेदार बात यह थी कि बलवंत सिंह राजपूत को कभी अहमद पटेल ने ही गुजरात कांग्रेस में आगे बढ़ाया था और अब वे उनके सामने ही चुनाव लड़ रहे थे.

अहमद पटेल को पांचवी बार राज्यसभा में इंट्री के लिए सिर्फ 45 वोटों की जरूरत थी. इस्तीफों से घबराई कांग्रेस ने अपने विधायकों को सबसे पहले बेंगलुरू भेज दिया और उन्हें कड़ी निगरानी में रखा. कांग्रेस ने उनके किसी से भी बातचीत पर पाबंदी लगा दी. इधर राज्यसभा, लोकसभा से लेकर चुनाव आयोग और सड़कों तक उसने बीजेपी पर ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ का आरोप लगाना शुरू कर दिया.

विधायकों के इस्तीफे से जुझ रही कांग्रेस को 1 अगस्त को चुनाव आयोग ने भी तगड़ा झटका दे दिया. चुनाव आयोग ने साफ किया कि राज्यसभा चुनावों में चार उम्मीदवारों के अलावा पांचवा विकल्प NOTA भी होगा. कांग्रेस इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गई लेकिन उसे वहां से मायूसी ही मिली. दरअसल कांग्रेस को डर था कि उसके विधायक अहमद पटेल के खिलाफ नोटा का विकल्प चुन सकते हैं.

बेंगलुरू में कांग्रेस के विधायक जिस रिसॉर्ट में ठहरे थे उसके मालिक और कर्नाटक के ऊर्जा मंत्री डीके शिवकुमार के ठिकानों पर 2 अगस्त को आयकर विभाग ने बड़े स्तर पर छापा मारा. रेड के दौरान अधिकारियों ने कांग्रेस विधायकों के कमरों के अलावा वहां मौजूद सभी वाहनों की भी तलाशी ली. सूत्रों के मुताबिक, आयकर विभाग को शक था कि रिजॉर्ट में बड़ी मात्रा में नकदी छुपा कर रखी गई थी.

इस बीच 4 अगस्त गुजरात दौरे पर गए कांग्रेस उपाध्यक्ष की गाड़ी पर पत्थर से हमला भी हुआ हालांकि इस घटना का राज्यसभा चुनाव से सीधा जुड़ाव नहीं था लेकिन यह हुआ उसी दौरान जिस वक्त कांग्रेस और बीजेपी के दोनों ‘मैनेजर’ सीटें जीतने के लिए विधायक मैनेज करने में लगे थे.

9 दिन बाद रक्षाबंधन के दिन 7 अगस्त को कांग्रेस के 44 विधायक वापस गुजरात आए. अहमदाबाद में भी इन विधायकों को एक रिसॉर्ट में ठहराया गया जहां इन लोगों ने राखी का त्योहार भी मनाया.

 वोटिंग से ठीक पहले कांग्रेस के सहयोगी दलों NCP और JDU ने अपना रुख स्पष्ट किया और कहा कि उनके विधायक बीजेपी को वोट करेंगे. कांग्रेस इस फैसले के बाद और सतर्क हो गई.

कांग्रेस के पास अब भी कुल 44 विधायक थे. जीत के प्रति आश्वस्त अहमद पटेल ने अंतिम वक्त तक भिड़े रहना नहीं छोड़ा शायद यही वजह थी कि कम संख्या बल के बावजूद उनके हाथ जीत लगी. वोटिंक के लिए रिसॉर्ट से जब कांग्रेस के सभी विधायक बस में गांधीनगर के लिए रवाना हुए तो उस बस के आगे अहमद पटेल की गाड़ी थी.

जिस बात की चर्चा जुलाई से ही शुरू हो गई थी वह वोटिंग के दिन दिखाई भी दिया. वाघेला ने वोट देने के बाद स्पष्ट कहा कि उन्होंने अहमद पटेल को वोट नहीं दिया उनके जीतने के कोई चांस नहीं हैं. तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के 44 विधायकों में से एक विधायक ने क्रॉस वोटिंग कर दी. क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक करमासी बृजभाई पटेल थे. गुजरात के साणंद से विधानसभा से वे पहली बार 2012 में विधायक चुने गए थे.

जेडीयू नेता के सी त्यागी के दावे को धत्ता बताते हुए जेडीयू विधायक छोटू बसावा ने अहमद पटेल को अपना वोट दिया. इसके चलते जेडीयू में ही बवाल उठ गया. एक ओर जहां छोटू बसावा ने के सी त्यागी को अपना नेता मानने से ही इंकार कर दिया तो वहीं दूसरी ओर JDU ने कार्रवाई करते हुए गुजरात प्रभारी अरुण श्रीवास्तव को पार्टी से निकाल दिया. महासचिव पर विधायक तक संदेश न पहुंचाने का आरोप लगाकर पार्टी से बाहर किया गया.

राज्यसभा चुनाव की वोटिंग के बाद मंगलवार को करीब 10 घंटे के हाई-वोल्टेज ड्रामे के बाद नतीजे सामने आए, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को 46-46 वोट मिले, वहीं अहमद पटेल ने 44 वोटों के साथ जीत दर्ज की. राज्य की 176 सदस्यीय विधानसभा में 2 कांग्रेसी विधायकों के वोट रद्द होने के बाद जीत का आंकड़ा 43.51 पहुंच गया. दरअसल चुनाव में कुल 176 वोट किए गए थे, जिनमें से 2 वोट रद्द होने के बाद 174 की काउंटिंग की गई.

मंगलवार शाम वोटिंग खत्म होने के बाद कांग्रेस ने रिटर्निंग ऑफिसर से अपनी पार्टी के दो बागी विधायकों के खिलाफ शिकायत दर्ज की. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि दोनों विधायकों ने वोटिंग के दौरान अपने बैलेट अमित शाह को दिखाए, जो नियम के खिलाफ है. हालांकि, बीजेपी इसे नकारती रही.

इधर दिल्ली में कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला और आरपीएन सिंह ने चुनाव आयोग जाकर मामले की शिकायत की. साथ ही उन्होंने अपनी दलील पेश करते हुए दो विधायकों के वोट रद्द करने की अपील की. कांग्रेस की इस प्रयास को कमजोर करने के लिए बीजेपी ने 6 केंद्रीय मंत्रियों का डेलीगेशन चुनाव आयोग भेजा. वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में रविशंकर प्रसाद, पीयूष गोयल, मुख्तार अब्बास नकवी, निर्मला सीतारमण और धर्मेंद्र प्रधान ने चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचकर कांग्रेस की अपील को दरकिनार करने की मांग की. माहौल इस कदर था कि चुनाव आयोग में दोनों दलों ने ताबड़तोड़ तीन-तीन दौरे किए. एक निकलता तो दूसरा दल पहुंचता, दूसरा निकलता तो पहला वापस फिर अंदर. इसके बाद चुनाव आयोग में घंटों तक माथापच्ची चली. आखिरकार रात करीब 12 बजे आयोग ने कांग्रेस के दोनों बागी विधायकों के वोट रद्द करने का आदेश दिया. इस आदेश के साथ ही आयोग ने वोटों की काउंटिंग के भी निर्देश दिए. हालांकि, बीजेपी ने आयोग के इस फैसले को गलत ठहराया.

कई घंटों के इंतजार के बाद आखिरकार रात करीब 1.30 बजे वोटों की गिनती शुरू हुई. मतदान केंद्र से बाहर निकलकर कांग्रेस विधायक शैलेष परमार ने अहमद पटेल को 44 वोट मिलने के साथ उनकी जीत का दावा किया.

 

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