मोदी को ‘इतिहास की पर्ची’ कौन बनाकर देता है ? पीएम को बार -बार कौन फंसा देता है ?

अजीत अंजुम

कर्नाटक में आखिरी दौर की चुनावी रैली में पीएम मोदी तो बोलकर निकल गए लेकिन पीछे छोड़कर अपने इतिहास ज्ञान का ऐसा नमूना , जिसका सेंपल साइज लेकर लोगों ने आनन -फानन में जांच रिपोर्ट पेश कर दी है . मोदी के इतिहास बोध की जांच में एक बार रिपोर्ट निगेटिव आई है . शहीद भगत सिंह का जिक्र करते हुए मोदी ने जो कहा , उसका सच से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं . एक बार पीएम ने इतिहास के बारे गलतबयानी की है , वो भी डंके की चोट पर . हजारों की भीड़ में . दर्जनों लाउडस्पीकर पर दहाड़ते हुए . निशाने पर नेहरु थे . कंधा भगत सिंह था . जुबान मोदी की थी . मौका चुनाव का था .

पिछले सप्ताह ही मोदी अपनी रैली में फील्ड मार्शल करियप्पा और जनरल थिमय्या से नेहरु सरकार के वर्ताव के बारे में उल्टा -पुल्टा और बेसिर पैर की बातें सुनाकर कई दिनों तक आलोचना के शिकार बने रहे . अब उन्होंने फिर नेहरु और कांग्रेस को निशाना बनाने के लिए भगत सिंह जैसे शहीदों के संदर्भ में जो बातें कही , वो झूठ और आधारहीन साबित हो गई है .

हालांकि मोदी ने इस बार इतिहास में गोंता लगाने से पहले शुरुआत ही डिस्कलेमर के साथ की थी . पीएम मोदी ने अपनी बात कहने से पहले कहा – ‘ भाइयों एवं बहनों , अगर आपमें से किसी को जानकारी है तो जरुर बताना . मुझे नहीं है . मैंने जितना इतिहास पढ़ा है , मेरे ध्यान में नहीं आया . फिर भी आपमें से किसी को जानकारी हो तो मैं सुधार करने के लिए तैयार हूं . ‘ . फिर उन्होंने भीड़ के सामने लाहौर जेल में बंद भगत सिंह और उनके साथियों का जिक्र करते हुए पूछा – जब आजादी के वीर शहीद जेल में बंद थे तो कोई कांग्रेसी परिवार का उनसे मिलने गया था क्या ? ऐसे ही सवाल उन्होंने अंडमान जेल में बंद वीर सावरकर के बारे में भी पूछा कि कोई उनसे मिलने गया था क्या ? अब जैसा कि हमेशा होता है , मोदी बोलकर निकल लेते हैं , बाकी लोग उनके इतिहास ज्ञान को चेक करके सही तथ्य पेश करने में जुट जाते हैं . इस बार भी ऐसी ही हुआ . कुछ ही देर में कई इतिहासकारों ने तारीख और वक्त के साथ नेहरु और भगत सिंह की जेल में मुलाकात का ब्योरा पेश कर दिया .

लाहौर जेल में भगत सिंह से मिले थे नेहरु
नेहरु न सिर्फ जेल में भगत सिंह और उनके साथियों से मिलने गए थे , बल्कि उनसे अपनी मुलाकात का जिक्र भी अपनी किताब में किया है . नेहरु ने लिखा है – ‘ मैं कल सेंट्रल जेल गया था . सरदार भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त , जतिन्द्र नाथ दास और लाहौर केस के सभी आरोपियों को देखा , जो भूख हड़ताल पर थे . सभी को जबरन खिलाया जा रहा है . कुछ को इस तरह जबरन खिलाया जा रहा है कि उन्हें चोट पहुंच रही है . जतिन्द्र नाथ दास की स्थिति काफी खराब है . वो काफी कमजोर हो चुके हैं , चल फिर नहीं सकते . बोल नहीं सकते , सिर्फ बुदबुदाते हैं . उन्हें दर्द इतना है कि ऐसा लगता है कि इस दर्द से मुक्ति के लिए वो प्राण त्याग देना चाहते हों . मैंने शिव वर्मा और अजय घोष को भी देखा .मुझेअसाधारण रुप से बहादुर जवानों को इस स्थिति में देखना पीड़ादायक लगा . उन जवानों से मिलकर यही लगा कि वो अपनी प्रतिज्ञा पर कायम हैं , चाहे जो नतीजा हो . बल्कि वे अपने बारे में जरा भी परवाह नहीं करते . सरदार भगत सिंह ने वहां की स्थिति बताई कि कत्ल के अपराध को छोड़कर सभी राजनीतिक बंदियों से विशिष्ट व्यवहार होना चाहिए . मुझे पूरी उम्मीद है इन नौजवानों का आत्मत्याग सफल होगा ‘ . नेहरु और भगत सिंह की मुलाकातों के ब्यौरे इतिहास में जगह -जगह दर्ज हैं .

उस समय के अखबार ट्रिब्यून में नेहरु और भगत सिंह से मुलाकात के बारे में 10 अगस्त 1929 में विस्तार से खबर भी छपी थी . नेहरु ने भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के हाल में बारे में अखबार वालों को बताया था . इतिहासकार एस इरफान हबीब ने नेहरु और भगत सिंह की मुलाकात का जिक्र तथ्यों के साथ अपनी किताब में किया है . मोदी ने सावरकर के बारे में सवाल पूछा है . ये तो और बड़ा मजाक है . सावरकर जब अंडमान जेल में थे , तब नेहरु राजनीति में ही नहीं थे . इरफान हबीब के मुताबिक 1910 से 1920 के बीच के उस दौर में नेहरु कांग्रेस की राजनीति का हिस्सा ही नहीं थे तो फिर वो क्यों सावरकर से मिलने जाते . वैसे भी सावरकर की सोच उस दौर के कांग्रेसी नेताओं की सोच से मेल नहीं खाती थी . तो फिर ये सवाल वैसे भी बेमानी है .

ऐसी ही फजीहत पीएम मोदी की पिछले सप्ताह हुई , जब उन्होंने फील्ड मार्शल करियप्पा और जनरल थिमय्या के साथ नेहरु और उनके रक्षा मंत्री मेनन की तरफ से किए गए अपमान का जिक्र किया था . मोदी ने कहा था कि इतिहास में इस बात का सबूत है कि 1948 में पाक को हराने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु और तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन ने जनरल थिमय्या की बेइज्जती की थी और इस वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था . मोदी के इस भाषण के बाद इतिहास के निकलकर उस वक्त के सारे तथ्य उनका मजाक उड़ाने लगे . पहली बात तो ये कि कृष्णा मेनन देश रक्षा मंत्री ही 1957 में बने थे , तो 1948 में उन्होंने बतौर रक्षा मंत्री जनरल थिमय्या की बेइज्जती कैसे कर दी ? उस वक्त सरदार बलदेव सिंह रक्षा मंत्री थे . दूसरी बात जनरल थिमय्या ने इस्तीफा न दिया था , न देने की बात की थी . उन्हें तो पद्मभूषण समेत कई अवार्ड दिए गए थे .

ऐसी गलत बातें मोदी फील्ड मार्शल करियप्पा के बारे में भी कह गए . मोदी ने 1962 में भारत -चीन युद्ध में करियप्पा की भूमिका का जिक्र करते हुए उनके अपमान की बात कह दी , जबकि करिय्पा भारत -चीन से नौ साल पहले 1953 में रिटायर कर चुके थे . नेहरु ही थे , जिनकी सरकार ने 1949 में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया था . राजीव गांधी की सरकार ने उनका सम्मान करते हुए फील्ड मार्शल की उपाधि दी थी . इतिहास के ऐसे तथ्य आसानी से गूगल पर भी उपलब्ध हैं , तो फिर पीएम मोदी बार -बार इतिहास के साथ ऐसी छेड़ -छाड़ क्यों कर रहे हैं ? ये सवाल पीएम से बीते चार सालों में दर्जनों बार पूछे गए हैं क्योंकि ऐसी गलतियां उन्होंने कई बार की है .

कांग्रेस और नेहरु परिवार के उनकी चिढ़ हो सकती है लेकिन क्या ये चिढ़ क्या उन्हें इतिहास को झूठा ठहरा कर अपने मनमाफिक इतिहास गढ़ने की इजाजत देता है ? मोदी बार -बार सिर्फ नेहरु से सवाल पूछते , जबकि उस दौर में सुभाष चंद्र बोस से लेकर राजेन्द्र प्रसाद और पटेल तक थे . यही सवाल उन्होंने कभी पटेल के लिए तो नहीं पूछा . यही सवाल उन्होंने उस दौर और बड़े कांग्रेस नेताओं से तो नहीं पूछा .

(चर्चित टीवी पत्रकार अजीत अंजुम के फेसबुक वॉल से )
 

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