मोदी फ्लाइट मोड में और अच्छे दिन नॉट रीचेबल

राजेश श्रीवास्तव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गये हैं । पूरे देश में जश्न का माहौल है। सत्ता पक्ष से जुड़े लोग और नेता जहां बता रहेे हैं कि मोदी सरकार ने जितना काम किया है उतना आजादी के बाद से अब तक कि किसी भी सरकार ने नहीं किया है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो उनकी तारीफ में कसीदे भी पढ़े। लेकिन अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल का ठीक से विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि प्रधानमंत्री के किये वायदे ज्यादातर अभी भी आध्ो-अधूरे हैं। कोई भी योजना अब तक पूरी तरह परवान नहीं चढ़ सकी है। दिलचस्प यह भी है कि प्रधानमंत्री अब जितने भी ऐलान कर रहे हैं। सबके लिए 2०19 का नहीं बल्कि 2०22 का वक्त मांग रहे हैं। चाहे आम आदमी को आवास उपलब्ध कराने का सपना दिखाना हो या फिर देश से पूरी तरह गरीबी खत्म करने का सुनहरा सपना। आगे आने वाले समय में यह वायदे कितने परवान चढ़ेंगे यह तो समय बतायेगा। लेकिन बीते लोकसभा चुनाव के दौरान किये गये वायदों को ही तीन साल बीतने के बावजूद पूरा नहीं किया जा सका है।
देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हैं। पीओके में आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक और नौश्ोरा में हमला करके भले ही मोदी सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह पाकिस्तान को सबक सिखाने में पीछे नहीं है। लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान से हमले बढ़े हैं, वह चिंता का सबब हैं। घाटी में आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं। नौजवानों को रोजगार मुहैया कराने की बात अभी तक सिर्फ नारों तक ही सीमित रहना भी सरकार पर सवाल है। मोदी सरकार ने अपने सभी सांसदों को एक-एक गांव गोद लेकर उसका विकास करने का काम सौंपा था। लेकिन पहले वित्तीय वर्ष में ही गोद लिये गांवों का काम पूरा नहीं हो सका। गंगा की सफाई का मुद्दा भी ऐसा है जिस पर सरकार का काम जमीन पर नहीं दिखायी दे रहा है। कश्मीर में हिंसा और काले धन की वापसी पर भी सवाल लगातार उठायी दे रहे हैं। अफसरशाही को नियंत्रित करने के लिए मोदी सरकार के प्रयास पूरी तरह कारगर नहीं दिखायी दे रहे हैं। कश्मीर पर जारी वीडियो, जवानों के सिर काटने की घटना, सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी, छत्तीसगढ़ के सुकमा में जवानों पर नक्सली हमले की घटनाएं बताती हैं कि सरकार कोे अभी और सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
सरकार पिछड़ों की सुधि लेने में भी पूरी तरह कामयाब नहीं रही है। बैंकों और सरकारी दफ्तरों का ढर्रा और रवैया आम दलित को स्टार्टअप व स्टैंडअप जैसी योजनाओं को आकार लेने में रोक रहा है। स्मार्ट सिटी का ख्वाब दो साल भी अधूरा पड़ा ह।। बुलेट ट्रेन का सपना भी अभी अधर में हैं। इसके लिए अभी कारीडोर बनना ही शुरू नहीं हुआ है। कृषि सुधार की गति भी बेहद धीमी है। गन्ना किसानों को अभी तक उनकी लागत के हिसाब से उसमें 5० फीसद जोड़कर जो भुगतान का वायदा किया था, वह भी पूरा नहीं हो सका है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतनी हवाई यात्राएं कर रहे हैं लेकिन उनका प्रतिफल देश की जनता को नहीं मिल रहा है। आम आदमी को अच्छे दिनों का अहसास अभी भी नहीं हो रहा है। आम आदमी तो यही कहने लगा है कि तीन साल बाद भी अच्छे दिन नॉट रीचेबल हैं और प्रधानमंत्री फ्लाइट मोड में।

 

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